सन् 1980 में निटाया में आयोजित 10 दिवसीय पर्यावरण शिविर में भी रामकुमार चौधरी प्रमुख कर्ताधर्ताओं में थे। इस शिविर में दिल्ली से अनुपम मिश्र एवं उत्तरांचल से चिपको आन्दोलन का एक दल भी आया था। इस शिविर में निटाया एवं उसके आसपास के गांवों में बांस, शीशम, अकेशिया और सेमल के वृक्ष लगाये गये थे। आज भी निटाया आश्रम में लगाये गये बांस की बाउन्ड्री-वॉल न केवल दर्शनीय है वरन् बहुउपयोगी सिद्ध हो रही है।
होशंगाबाद जिले के लोकप्रिय गांधीवादी, सर्वोदयी लेखक एवं समाजसेवी (स्व.) बनवारीलाल चौधरी को कौन नहीं जानता। बनवारीलाल जी के पदचिन्हों पर चलने वाले उनके छोटे भाई रामकुमार आधुनिक समय के लक्ष्मण ही थे। बनवारी लाल चौधरी के सर्वोदयी कामों को पूरा करने में रामकुमार भाई अंतिम सांसों तक लगे रहे। रामकुमार भाई देश का बंटाधार करने वालों के समाचारों पर उन्मुक्त हंसते थे। उनका हंसना स्थिति का मजाक उड़ाना नहीं पर इस भाव से हंसना होता था कि क्या ऐसा भी संभव है? हंसी उनका आश्चर्य भाव होती थी। वे अक्सर हंसते हुए कहते थे कि भइया पूछो ही मत। उनकी यह प्रतिक्रिया एक आम आदमी की प्रतिक्रिया होती थी। पूरे देश के नये संदर्भों में यह कहा जा सकता है कि इस समय हमारे देश का राष्ट्रीय वाक्य है- पूछो ही मत! उनकी चिंता के विषयों में एक भी व्यक्तिगत दुख का विषय नहीं था। वे भारतीय ग्रामीण समाज और कृषि-अर्थव्यवस्था में उत्पन्न अंतर्विरोधों से काफी चिंतित रहते थे। वे पिछले एक-दो वर्षों से मुझसे एक ही बात पूछ रहे थे उप्पल जी, खेती की जमीन कितनी कम हो गई है, यदि इसके आंकड़े मिलें तो बतायें?वे देश की चिन्ता का बड़ा विषय उद्योगीकरण, व्यावसायीकरण और शहरीकरण आदि से खेती की लगातार कम होती जा रही भूमि को मानते थे। उनका मानना था कि हमारे देश में खेती की भूमि कम हो जाने के बाद सरकार द्वारा रासायनिक खेती और अमेरिका की तरह कंपनी की फार्म खेती को प्रोत्साहन दिया जायेगा। भारत पेट्रोलियम पदार्थों की तरह बड़ी मात्रा में खाद्यान्न का आयात करने एवं दूर-दराज के गरीबों तक पहुंचाने में कभी सफल नहीं होगा। वे खेती की भूमि के निरन्तर कम होते जाने को एक ‘महासंकट’ मानते थे। उनका मानना था कि लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन किसी बड़े संकट का पूर्वाभास है। यह पलायन शहरों की चमक-दमक का आकर्षण नहीं वरन् ढहती जा रही ग्रामीण-सामाजिक-व्यवस्था का द्योतक है। भारत के बिखरे हुए सात लाख गांवों को कोई केन्द्रीय व्यवस्था संभाल नहीं पायेगी।
चार भाईयों में सबसे छोटे रामकुमार का जन्म जून 1925 में होशंगाबाद जिले के ग्राम रैसलपुर में हुआ था। उनकी शिक्षा अपने गांव एवं पवारखेड़ा स्थित कृषि विद्यालय में हुई थी। अपने स्कूल के दिनों में वे जिला स्तर के बालीवाल के प्रसिद्ध खिलाड़ी बन गये थे। गांधी जी के आह्वान पर भाई बनवारी लाल चौधरी 1942 में उड़ीसा सरकार के कृषि विभाग में उपनिदेशक का पद छोड़कर वर्धा आ गये थे। वे नई तालीम शिक्षा पद्धति के अंतर्गत वर्धा में कृषि विषय पढ़ाया करते थे। रामकुमार भी अपनी विद्यालयीन शिक्षा पूर्ण कर सेवाग्राम चले गये थे। जहां उन्होंने गौशाला पाठ्यक्रम की शिक्षा ग्रहण की थी। रामकुमार भाई ने सेवाग्राम से आकर होशंगाबाद शहर के पास स्थित रसूलिया ग्राम में 20 वर्षों तक गांव के बच्चों का एक विद्यालय चलाया था। 1947 में स्वतंत्रता के बाद बनवारी लाल चौधरी भी सर्वोदय का काम करने अपने घर आ गये थे। रामकुमार भाई ने अपने शिक्षक साथियों पुरुषोत्तम दीक्षित, सुरेश दीवान और राकेश दीवान के साथ मिलकर सन् 1973 में ‘आचार्य कुल’ की होशंगाबाद इकाई का गठन किया था। जिले में कई बैठकें कर उन्होंने शिक्षकों को आचार्यकुल से जोड़ा था।
रामकुमार भाई ग्राम निटाया में संचालित ग्राम सेवा समिति के सभी कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेते थे। परन्तु 1980-81 में वे परिवार सहित अपने भाई के साथ रहने निटाया आ गये थे। बनवारी लाल चौधरी के मार्गदर्शन में उन्होंने ग्राम सेवा समिति और निटाया में संचालित कस्तूरबा छात्रावास स्कूल आदि की देखरेख के काम करना शुरु कर दिया था। बनवारी लाल चौधरी की अस्वस्थता के बाद रामकुमार भाई दूर-दूर तक आश्रम का काम करने जाते थे। सन् 1980 में निटाया में आयोजित 10 दिवसीय पर्यावरण शिविर में भी वे प्रमुख कर्ताधर्ताओं में थे। इस शिविर में दिल्ली से अनुपम मिश्र एवं उत्तरांचल से चिपको आन्दोलन का एक दल भी आया था। इस शिविर में निटाया एवं उसके आसपास के गांवों में बांस, शीशम, अकेशिया और सेमल के वृक्ष लगाये गये थे। आज भी निटाया आश्रम में लगाये गये बांस की बाउन्ड्री-वॉल न केवल दर्शनीय है वरन् बहुउपयोगी सिद्ध हो रही है। इसके कुछ समय बाद निटाया से कार्यकर्ताओं का एक दल चिपको आन्दोलन में भाग लेने चमोली जिले में गोपेश्वर भी गया था।
बनवारी लाल जी चौधरी के मार्गदर्शन में चलने वाले कार्यक्रमों में होशंगाबाद जिले का देशव्यापी प्रसिद्ध कार्यक्रम ‘मिट्टी-बचाओ अभियान’ था। अनुपम मिश्र एवं बनवारी (बाद में सहायक संपादक ‘जनसत्ता’) ने न केवल मिट्टी-बचाओ अभियान’ में सक्रिय भागीदारी की थी बल्कि अपने आलेखों द्वारा पूरे देश में इस अभियान के संदेश को भी पहुंचाया था। अनुपम मिश्र ने 1981 में ‘मिट्टी बचाओ अभियान’ नामक एक पुस्तक भी लिखी थी। रामकुमार चौधरी के साथी के रूप में सुरेश दीवान और राकेश दीवान ने आचार्य कुल में काम किया था। ये तीनों मित्र शिक्षक का पद छोड़कर ‘मिट्टी बचाओ अभियान’ में जुड़ गये थे। रामकुमार चौधरी और सुरेश दीवान ग्राम सेवा समिति तरोंदा-निटाया के माध्यम से होशंगाबाद जिले के ग्रामीणों एवं किसानों के उत्थान के लिए समर्पित कार्यकर्ता के रूप में पहचाने नाम हैं। राकेश दीवान शिक्षकीय पद छोड़ने के बाद पत्रकारिता और बड़े आन्दोलनों से जुड़ गये।
85 वर्ष की आयु में रामकुमार चौधरी ने 25 जुलाई को देह त्याग दी। वे अब अपने राम से पुनः मिल गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनी काम करने वालों के लिए बनवारी लाल चौधरी और उनके लक्ष्मण जैसे भाई रामकुमार सदा पथ प्रदर्शक बने रहेंगे। ऐसे संकटपूर्ण समय में ग्रामीणों और किसानों ने अपना एक हितचिंतक साथी खो दिया है। गांधीवादी एवं सर्वोदयी समाज की ऊर्जा से भरपूर एक दीपक के बुझ जाने से होशंगाबाद के ग्रामीण आकाश में अंधेरा कुछ और बढ़ गया है।
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