दिल्ली

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पुराना मनाली
Posted on 03 Dec, 2013 12:23 PM देवदार के पेड़ अभी जागे नहीं
छतें चमकती हैं व्यास के पार
बर्फीली चोटियों की तरह

जुट गए मजदूर सुबह ही
काम पर पत्थरों को तराशने
नदी की तरह,
बादल अभी पीछे ही है
चोटियों से फिसलती है ओस
तंबू पर वनस्पतियों पर पहली रोशनी-सी गिरती
झरती देवदार की शाखाओं से

अपने बारे में देखा था कोई सपना
रात में जो याद नहीं अब
कश्ती
Posted on 03 Dec, 2013 12:22 PM डूबने से पहले मां की काया अपनी सतह पर तूफान में घिरी कश्ती की तरह हिचकोले खा रही है। हम पलंग के किनारे खड़े हैं। खिड़की के पार का संसार खाली होना शुरू हो गया है। पिता की आकाश के पीछे से चहलकदमी की आवाजें धीरे-धीरे नीचे की ओर झरने लगी है। हलके से प्रकाश में क्षण-भर को मां के दांत चमकते हैं और फिर सब शांत हो जाता है।
वह
Posted on 03 Dec, 2013 12:21 PM वह आकाशगंगा में बहते-बहते मेरे स्वप्न के किनारे आ लगी है। मैं अपने प्रेम में बहता उसके अभाव में फैल गया हूं चुपचाप। वह चमचमाती बालू पर लड़खड़ाकर चल रही है। अंतरिक्ष का सुनसान उसके पैरों की थापों से धीरे-धीरे कांप रहा है। उसके लंबे खुले बालों में सीपियां, शंख और घोघें उलझ गए हैं।

सिंध
Posted on 03 Dec, 2013 12:19 PM सिर्फ नदी नहीं है यह

अपनी छाती में असीम दूध बसाए
पूरे गांव की मां है

इसकी सजल निर्मलता बसती है
पक्षियों के कंठ में
पहाड़ की आंखों
पेड़ की जड़ों
अन्न के दानों
और बादल के हृदय में

माएं नवजात के साथ
करती है पहला स्नान यहां
दूल्हा-दुल्हन टेकते है माथा
नहलाए जाते हैं गाय-बैल
धोई जाती हैं भुजरिएं
रेवा रूप कथा
Posted on 03 Dec, 2013 12:18 PM नैहर नरबदा के रूप कुमारी, थिरकत अंग पराग झरे।
रसना रंगी रंग अंग, रूप में रूप के बौर फरे।

रूपमती जागी चहुंदिसि में, रूप को रूप की सुध न रही।
रूपहि गावे रूप को ध्यावे, रूप ने रूप को वीणा गही।

रूप की राजि में भूप शिकारी, रूप की ओट से रूप निहारे।
रूप पे रीझि के बाज बहादुर, बन-बागन फिरे सांझ-सकारे।
नदी पर अंधेरा
Posted on 03 Dec, 2013 12:17 PM आखिरी स्टीमर के
चलने का वक्त
अंधेरे के
नदी पर छाने का वक्त
होता है।

एक संयत बेचैनी से भरी
नदी
कुछ उभर आती है
आसमान की ओर।

आसमान
आधा नदी के भीतर
और आधा नदी के करीब
उसके बाहर होता है।
उजाला
एक ललाए कोने में
सिमटता जाता है।

सूरज
आधा नदी के छोर पर
डूबता है
और आधा
पुल के नीचे
आधे सिर का दर्द
Posted on 03 Dec, 2013 12:15 PM नौका हिलती है
रक्त की नदी में

इस तरफ पहाड़
उस तरफ बांध
झरने की ऊंचाई
या कि गहराई
कहीं-कहीं डुबोने को
उद्यत एक भंवर भी
बेकाबू नौका
दौड़ती है
रक्त की नदी में

यहीं कहीं स्मृति थी
ऊबड़-खाबड़ स्वप्न थे
एक परिचित दुनिया थी
उसके होने की सांत्वना थी
अचानक यह क्या हो गया?

किनारे खड़ी नौका का
बांध विजय गाथा -संघर्ष लंबा है, भाग -3
Posted on 02 Dec, 2013 01:46 PM संघर्षों के परिणामस्वरूप सरकारें एक तरफ कानून बना रही हैं तो दूसरी तरफ उनसे बचने के प्रयास करती हैं। ब
गंगा में शिशुमार
Posted on 02 Dec, 2013 11:12 AM पानी में अचानक एक अजीब-सी आकृति निकली
और डूब गई
दशाश्वमेध घाट से कोई सौ मीटर दूर
जब कोई इसके लिए तैयार नहीं होता
वे बचे-खुचे परिवार
देशकाल की संधियों को छेड़ते हैं
उन्हें बचपन से बनारस में देखा है
कैलीफॉर्निया के नमकीन पानी में
उन्हें करीब से छूने के बरसों पहले
और बाद में भी
और अब उन्हें ब्रह्मपुत्र में देखा
गंगा केवल एक नदी का नाम नहीं
Posted on 02 Dec, 2013 10:13 AM मैं जब-जब इसके घाटों पर खड़ा होता हूं
मुझे मां की आंखों की याद आती है

मेरे लिए यह सिर्फ एक नदी नहीं
मां है
मेरे थके तलुए सहलाती हुई
और मेरी फटी बिवाई में मोम भरती हुई

मां
इसका पानी
अपने घर में अमृत की तरह संजोकर रखती है
और पीढ़ियों तक सींचती है इससे
अपने घर की जड़ों को

मां को इस नदी के घाटों पर स्वर्ग दिखता है
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