Posted on 03 Dec, 2013 12:22 PMडूबने से पहले मां की काया अपनी सतह पर तूफान में घिरी कश्ती की तरह हिचकोले खा रही है। हम पलंग के किनारे खड़े हैं। खिड़की के पार का संसार खाली होना शुरू हो गया है। पिता की आकाश के पीछे से चहलकदमी की आवाजें धीरे-धीरे नीचे की ओर झरने लगी है। हलके से प्रकाश में क्षण-भर को मां के दांत चमकते हैं और फिर सब शांत हो जाता है।
Posted on 03 Dec, 2013 12:21 PMवह आकाशगंगा में बहते-बहते मेरे स्वप्न के किनारे आ लगी है। मैं अपने प्रेम में बहता उसके अभाव में फैल गया हूं चुपचाप। वह चमचमाती बालू पर लड़खड़ाकर चल रही है। अंतरिक्ष का सुनसान उसके पैरों की थापों से धीरे-धीरे कांप रहा है। उसके लंबे खुले बालों में सीपियां, शंख और घोघें उलझ गए हैं।