दिल्ली

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यमुना के हत्यारे
Posted on 14 Dec, 2013 12:41 PM दिल्ली के धरती पर हृदय धमनियों की तरह बहने वाली जीवनदायिनी यमुना की मंदिर, मेट्रो, मॉल तथा अवैध निर्माण के नाम पर लूट-पाट जारी है। यमुना तट की भूभौगोलिक परिस्थितियों की अनदेखी की जा रही है। हमारे समाज के कुछ लोग इस बात से बहुत खुश हैं कि यमुना तट पर अंधाधुंध निर्माण से रीयल एस्टेट के दाम घटेंगे पर मंदिर, खेलगांव के शोर में यमुना के दर्द को जानने-समझने का शायद किसी के पास वक्त है। दिल्ली में प्र
असमानता के धरातल पर बसा शहरी गरीब लोक
Posted on 14 Dec, 2013 11:08 AM आज गाँवों के बिगड़ते हालात और त्रासदी भरे जीवन से तंग आकर लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिसमें भार
जौ व जई से पर्यावरण बचाने की मुहिम
Posted on 14 Dec, 2013 10:37 AM पर्यावरण को स्वच्छ रखना हम सब की ज़िम्मेदारी है। ग्लोबल वार्मिंग का
आंदोलन का पुनर्गठन जरूरी
Posted on 13 Dec, 2013 01:01 PM बिहार भूदान यज्ञ समिति के अध्यक्ष कुमार शुभमूर्ति से प्रसून लतांत की बातचीत।

भूदान को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर क्या करने की जरूरत है?
भूला भटका भूदान
Posted on 13 Dec, 2013 12:59 PM विनोबाजी का भूदान आंदोलन कभी भारत के भूमिहीनों के लिए एक बड़ा सपना बन कर आया था। लेकिन सरकारों की इच्छाशक्ति में कमी, लालफीताशाही और जमींदारों की कुटिल चालों ने इस महत्वाकांक्षी अभियान को ध्वस्त कर दिया। इस आंदोलन को फिर से जांचा-परखा जा रहा है। इसकी जरूरत और अहमियत की पड़ताल कर रहे हैं प्रसून लतांत।
vinoba jee ka bhoodaan
मानवाधिकारों को सहेजने का जतन
Posted on 12 Dec, 2013 01:15 PM देश की मौजूदा व्यवस्था में मानवाधिकारों के प्रति असंवेदनशीलता का प
मेरे शहर की नदी
Posted on 09 Dec, 2013 03:20 PM मेरे शहर से होकर
जाती है एक नदी
कभी बहती है
कभी रूकती है
रोती ही रहती है
अपनी दुर्दशा पर
गंदे नाले जो गिरते हैं
इस नदी में उन्होंने
नदी को ही अपने जैसा
बना लिया है
मेरा शहर जो कि
दिल है मेरे देश का
देश को जीवंत करता है
उसकी नदी का
जीवन कहीं खो गया है
जिस सूर्य सुता का जल
सत्ता के अभिनव दुर्ग के
जीवन की जीत
Posted on 08 Dec, 2013 10:51 AM राजाराम रावत ‘पीड़ित’ पहाड़ी (चिरगांव)बहती जाती थी वेत्रवती, उर विकल किंतु करती कल-कल।
कहती जाती थी वेत्रवती, जागृत जन से चल-चल, चल-चल।।
गति रोक न पल-भर को अपनी, मत कर विराम की तनिक चाह।
जीवन बस तब तक जीवन है, जब तक है उसमें कुछ प्रवाह।।
बनती-मिटती लहरें मानों, बोधित करती है बार-बार।
बनने-मिटने को मत समझो, जीवन की अपनी जीत-हार।।
अपूर्व छटा छिटकाती हुई
Posted on 08 Dec, 2013 10:31 AM अचला वृत्त है अचला जिसपै बनराजि छटा दिखला रही है।
विटपावलि पुष्पित हो करके निज सौरभ पुंज लुटा रही है।।
द्रुम पल्लवों में छिपी श्यामा जहां मन-मोहन गान-सुना रही है।
सिखला रही राग-विहाग भरा अनुराग का पाठ पढ़ा रही है।।
गिरि बिन्ध्य की गोद सजाती हुई सुख प्राणियों में सरसाती हुई।
गुण गाती हुई मनभावन के इठलाती हुई बलखाती हुई।।
मेरे वतन पै, बेतवा
Posted on 08 Dec, 2013 10:26 AM सीने में दिल है एक तो, “मायूसियां” हजार।
मेरे वतन पै, बेतवा हंसती है बार-बार।।
आबादियों से दूर चट्टानों के सिलसिले-
राहों में कच्चे-पक्के मकानों के काफिले।
ढोरों के गोल लौटते जंगल से दिन ढले,
जंगल के और बस्ती के ’महदूद’ फासले।।
पेड़ों की छांव में टूटे हुए मजार।
आता है याद मुझको उजड़ा हुआ ‘दयार’।।
यह ‘ईसुरी’ का देश है, केशव की ‘वादियां’,
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