निर्मल धारा

गंगा दशहरा पर विशेष


नदी महज बहते पानी का लंबा प्रवाह भर नहीं बल्कि यह हमारे जीवन से गहरी जुड़ी हैं। केंद्र में आई नई सरकार ने गंगा सहित देश की कई प्रमुख नदियों की स्वच्छता के लिए सार्थक पहल की बात कही है। हालांकि पूर्व में भी इस तरह की कुछ कोशिशें हुई हैं पर उनका हासिल सिफर रहा है। इसी मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण तिवारी और ओम प्रकाश की स्टोरी

कहना न होगा कि नदी की निर्मलता और अविरलता सिर्फ पानी, पर्यावरण, ग्रामीण विकास और ऊर्जा मंत्रालय का विषय नहीं है; यह उद्योग, नगर विकास, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, रोजगार, पर्यटन, गैर परंपरागत ऊर्जा और संस्कृति मंत्रालय के बीच भी आपसी समन्वय की मांग करता है। नदी की निर्मल कथा टुकड़े-टुकड़े में लिखी तो जा सकती है, सोची नहीं जा सकती। कोई नदी एक अलग टुकड़ा नहीं होती। नदी सिर्फ पानी भी नहीं होती। नदी एक पूरी समग्र और जीवंत प्रणाली होती है। अतः इसकी निर्मलता लौटाने का संकल्प करने वालों की सोच में समग्रता और दिल में जीवंतता का होना जरूरी है। नदी हजारों वर्षों की भौगोलिक उथल-पुथल का परिणाम होती है। अतः नदियों को उनका मूल प्रवाह और गुणवत्ता लौटाना भी बरस-दो बरस का काम नहीं हो सकता। हां, संकल्प निर्मल हो, सोच समग्र हो, कार्ययोजना ईमानदार और सुस्पष्ट हो, शातत्य सुनिश्चित हो, तो कोई भी पीढ़ी अपने जीवनकाल में किसी एक नदी को मृत्युशय्या से उठाकर उसके पैरों पर चला सकती है। इसकी गारंटी है। दर असल ऐसे प्रयासों को धन से पहले धुन की जरूरत होती है। नदी को प्रोजेक्ट बाद में, वह कोशिश पहले चाहिए, जो पेट जाए को मां के बिना बेचैन कर दे।

इस बात क भावनात्मक कहकर हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। कालीबेई की प्रदूषण मुक्ति का संत प्रयास, सहारनपुर पांवधोई का पब्लिक-प्रशासन प्रयास और अलवर के 70 गांवो द्वारा अपने साथ अरवरी नदी का पुनरोद्धार इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं।

नदी की समग्र सोच यह है कि झील, ग्लेशियर आदि मूल स्रोत हो सकते हैं, लेकिन नदी के प्रवाह को जीवन देने का असल काम नदी बेसिन की छोटी-बड़ी वनस्पतियां और उससे जुड़ने वाली नदियां, झरने, लाखों तालाब और बरसाती नाले करते हैं। इन सभी को समृद्ध रखने की योजना कहां है? हर नदी बेसिन की अपनी एक अनूठी जैव विविधता और भौतिक स्वरूप होता है। ये दोनों ही मिलकर नदी विशेष के पानी की गुणवत्ता तय करते हैं।

नदी का ढाल, तल का स्वरूप, उसके कटाव, मौजूद पत्थर, रेत, जलीय जीव-वनस्पतियां और उनके प्रकार मिलकर तय करते हैं कि नदी का जल कैसा होगा? नदी प्रवाह में स्वयं को साफ कर लेने की क्षमता का निर्धारण भी ये तत्व ही करते हैं। सोचना चाहिए कि एक ही पर्वत चोटी के दो ओर से बहने वाली गंगा-यमुना के जल में क्षार तत्व की मात्रा भिन्न क्यों है?

ताकि नदी ले सके सांस


गाद सफाई के नाम पर हम अमेठी की मालती और उज्जयिनी जैसी नदियों के तल को जेसीबी लगाकर छील दें। उनके ऊबड़-खाबड़ तल को समतल बना दें। प्रवाह की तीव्रता के कारण मोड़ों पर स्वाभाविक रूप से बने 8-8 फुट गहरे कुंडों को खत्म कर दें। वनस्पतियों को नष्ट कर दें और उम्मीद करें कि नदी में प्रवाह बचेगा, उम्मीद करें कि नदी संजय गांधी अस्पताल व एचएएल के बहाए जहर को स्वयं साफ कर लेगी, यह संभव नहीं है।

ऐसी नामसझी को नदी पर सिर्फ स्टॉप डैम बनाकर नहीं सुधारा जा सका। कानपुर की पांडु के पाट पर इमारत बना लेना, पश्चिम उत्तर प्रदेश में हिंडन को औद्योगिक कचरा डंप करने का साधन मान लेना और मेरठ के काली नदी में बूचड़खानों के मांस मज्जा और खून बहाना तथा नदी को एक्सप्रेस वे नामक तटबंधों से बांध देना नदियों को नाला बनाने के काम है। प्राकृतिक स्वरूप ही नदी का गुण होता है। गुण लौटाने के लिए नदी को उसका प्राकृतिक स्वरूप लौटाना चाहिए। नाले को वापस नदी बनाना होगा।

जैव विविधता लौटाने के लिए नदी के पानी की जैव ऑक्सीजन मांग घटाकर 4-5 लानी होगी, ताकि नदी को साफ करने वाली मछलियां, मगरमच्छ, घड़ियाल और जीवाणुओं की बड़ी फौज इससे जिंदा रह सके। नदी को इसकी रेत और पत्थर लौटाने होंगे, ताकि नदी सांस ले सके। कब्जे रोकने होंगे, ताकि नदियां आजाद बह सके नहरी सिंचाई पर निर्भरता कम करनी होगी। नदी से सीधे सिंचाई अक्टूबर के बाद प्रतिबंधित करनी होगी, ताकि नदी के ताजा जल का कम से कम दोहन हो। भूजल पुनर्भरण हेतु तालाब, सोखता पिट, कुंड और अपनी जड़ों में पानी संजोने वाली पंचवटी की एक पूरी खेप ही तैयार करनी होगी, भूजल को निर्मल करने वाले जामुन जैसे वृक्षों को साथी बनाना होगा। इस दृष्टि से प्रत्येक नदी जलग्रहण क्षेत्र की एक अलग प्रबंध एवं विकास योजना बनानी होगी।

वाराणसी का गंगा घाट

कितनी बिजली : कैसी बिजली


वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश कपूर दावा करते हैं कि आज भारत में जितनी बिजली बनती है, उससे पांच गुना अधिक बिजली उत्पादन क्षमता हवा और अंडमान द्वीप समूह से भूतापीय स्रोतों में मौजूद है। सबसे अच्छी बात तो यह कि हवा, सूर्य और भू-तापीय स्रोतों से खींच ली गई ऊर्जा वैश्विक तापमान के वर्तमान के संकट को तो नियंत्रित करेगी ही, भूकंप और सुनामी के खतरों को भी नियंत्रित करने में मददगार होगी।

कहना न होगा कि नदी की निर्मलता और अविरलता सिर्फ पानी, पर्यावरण, ग्रामीण विकास और ऊर्जा मंत्रालय का विषय नहीं है; यह उद्योग, नगर विकास, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, रोजगार, पर्यटन, गैर परंपरागत ऊर्जा और संस्कृति मंत्रालय के बीच भी आपसी समन्वय की मांग करता है।

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