Posted on 17 Dec, 2014 11:56 AMपहले लोग दहेज में हाथी घोड़े मांगते थे, फिर जमाना बदला गाँव-गाँव, शहर-शहर बिजली आई तो लोग टी.वी., पंखा, गाड़ी आदि माँगने लगे। अगर हम बढ़ते जल संकट के बारे में न
Posted on 14 Dec, 2014 10:24 AMकेंद्र की नई सरकार में पर्यावरण की अनदेखी तो मन्त्रिमण्डल गठन से ही प्रारम्भ हो गई थी जब कोई पूर्णकालीन पर्यावरण व वन मन्त्री नहीं बनाया गया। प्रकाश जावड़ेकर को वन व पर्यावरण मन्त्रालय के साथ सूचना व प्रसारण दिया गया था। इसके बाद निर्धारित समय में सर्वोच्च न्यायालय में मन्त्रालय ने उत्तराखण्ड की जलविद्युत परियोजनाओं से जैव विविधता पर पड़ रहे प्रभाव की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की। यह रिपोर्ट 10 अक्टूबर 2014 को न्यायालय में प्रस्तुत की जानी थी। इस लेटलतीफी से नाराज होकर न्यायालय ने सरकार से कहा कि वह कुम्भकर्ण जैसा व्यवहार कर रही है।
पिछली यूपीए सरकार में पर्यावरण सम्बन्धित काफी कठोर नियम कानून बनाए थे, जिससे कई उद्योगपति एवं औद्योगिक घराने नाराज थे। यह दलील दी जा रही थी कि कठोर नियम कानून से देश में पूँजी निवेश एवं आर्थिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
Posted on 13 Dec, 2014 02:19 PM महात्मा गांधी मानते थे कि गाँवों की सेवा करने से ही सच्चे अर्थों में ग्राम स्वराज की स्थापना होगी। उनकी कल्पना का गाँव ऐसा आदर्श गाँव था जो अपनी महत्वपूर्ण जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर हो। इतना आत्मनिर्भर होगा कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये पड़ोसियों पर भी निर्भर नहीं होगा। यदि कुछ जरूरतें, जिनके लिये सहयोग अनिवार्य है, बच रहतीं हैं, तो वह पड़ोसियों की मदद लेगा। गाँव में अपनी खु