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चना में सरदी बहुत समाई
Posted on 23 Mar, 2010 02:57 PM
चना में सरदी बहुत समाई।
ताको जान गधैला खाई।।


भावार्थ- चना अधिक पानी नहीं चाहता क्योंकि उसमें सर्दी अधिक लगती है और जब ऐसा हो तो समझो उसको गंधेला नामक कीड़ा खा जायेगा और पैदावार कम हो जायेगी।

गोहूँ गेरुई गाँधी धान
Posted on 23 Mar, 2010 02:55 PM
गोहूँ गेरुई गाँधी धान।
बिना अन्न के मरा किसान।।


भावार्थ- जब गेरुई नामक रोग गेहूँ में और गन्धी नामक कीड़ा धान में लग गया तब समझो कि किसान को अन्न मिलने वाला नहीं है। वह अन्न के बिना ही मरेगा।

कर्क बुवावै काकरी
Posted on 23 Mar, 2010 02:53 PM
कर्क बुवावै काकरी, सिंह अबोनो जाय।
ऐसा बोले भड्डरी, कीड़ा फिर फिर खाय।।


भावार्थ- ककड़ी की बोवाई कर्क राशि में करनी चाहिए क्योंकि सिंह राशि में बोने से उसमें कीड़ा बार-बार लग जाता है, ऐसा भड्डरी का कथन है।

कुम्भे आवै मीने जाय
Posted on 23 Mar, 2010 02:51 PM
कुम्भे आवै मीने जाय।
पेड़ी लागै पातौ खाय।।


भावार्थ- कुम्भ राशि में गेहूँ की फसल में गेरुई रोग लगने लगता है और मीन राशि में समाप्त हो जाता है। यह रोग तने से शुरू होकर पत्तियों को खा जाता है।

फसल रोग सम्बन्धी कहावतें
Posted on 23 Mar, 2010 02:27 PM
ऊख कनाई काहे से।
स्वाती क पानी पाये से।।


शब्दार्थ- कनाई- ईख का एक रोग जिसमें उसके अन्दर के रेशे लाल हो जाते हैं और मिठास भी कम हो जाती है।

भावार्थ- स्वाती नक्षत्र का पानी पाने से ईख कन्नी हो जाती है अर्थात् उसमें रोग लग जाता है।

सावन भादों खेत निरावै
Posted on 23 Mar, 2010 02:25 PM
सावन भादों खेत निरावै।
तब गृहस्थ बहुतै सुख पावै।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि यदि किसान सावन और भादों मास में खेत की निराई करवा दे तो आगे उसे बहुत सुख मिलेगा।

दो पत्ती क्यों न निराये
Posted on 23 Mar, 2010 02:23 PM
दो पत्ती क्यों न निराये।
अब बीनत क्यों पछिताये।।


भावार्थ- जब कपास में दो पत्तियाँ निकली थीं तभी उसकी निराई क्यों नहीं की? अब कपास चुनते हुए क्यों पछताते हो अर्थात् कपास के पौधे में जब दो पत्तियाँ निकलें तभी उसकी निराई करवा देनी चाहिए। इससे फसल अच्छी होती है।

तीन पानी तेरह गोड़
Posted on 23 Mar, 2010 02:22 PM
तीन पानी तेरह गोड़।
तब देख ऊखी कै पोर।।


भावार्थ- यदि ईख को तीन बार सींचा जाये और तेरह बार गोड़ा जाये तो ईख के पोर लम्बे होते हैं अर्थात् फसल बहुत अच्छी होती है।

जो कपास को नाहीं गोड़ी
Posted on 23 Mar, 2010 02:18 PM
जो कपास को नाहीं गोड़ी।
ताके हाथ न आवै कौड़ी।।


भावार्थ- जिस किसान ने कपास की थोड़ी सी भी गोड़ाई नहीं की उसके हाथ एक कौड़ी भी नहीं लगेगी।

चना सींच पर जब हो आवै
Posted on 23 Mar, 2010 02:16 PM
चना सींच पर जब हो आवै।
ताको पहिले तुरत खुँटावै।।


भावार्थ- चने की फसल जब सिंचाई के लायक हो जाये तो उसे तुरन्त खुटाना चाहिए। इससे उसकी पैदावार बढ़ जाती है।

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