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बोझ ढोती धरती
Posted on 22 Apr, 2011 11:53 AM

पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत अमेरिका में आज से 41 साल पहले हुई।
इसका लक्ष्य है जीवन को बेहतर बनाया जाय। सवाल है कि जीवन बेहतर कैसे बने। साफ हवा और पानी बेहतर जीवन की पहली प्राथमिकता है लेकिन आज हवा और पानी ही सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। प्रकृति से अंधाधुंध छेड़छाड़ के चलते पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। वातावरण में कार्बन की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ रही है।

प्यासी होती धरती
Posted on 22 Apr, 2011 11:34 AM

हमारे आस-पास के जीव-जन्तु और पौधे खत्म होते जा रहे हैं। हम केवल चिंता और चिंतन का नाटक कर रहे हैं। दूसरों के जीवन को समाप्त करके आदमी अपने जीवन चक्र को कब तक सुरक्षित रख पाएगा? ईश्वर के बनाए हर जीव का मनुष्य के जीवन चक्र में महत्व है। मनुष्य दूसरे जीव के जीवन में जहर घोल कर अपने जीवन में अमृत कैसे पाएगा?

'अगले सौ वर्षों में धरती से मनुष्यों का सफाया हो जाएगा।' ये शब्द आस्ट्रेलियन नेशनल युनिवर्सिटी के प्रोफेसर फ्रैंक फैनर के हैं। उनका कहना है कि ‘जनसंख्या विस्फोट और प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से इन्सानी नस्ल खत्म हो जाएगी। साथ ही कई और प्रजातियाँ भी नहीं रहेंगी। यह स्थिति आइस-एज या किसी भयानक उल्का पिंड के धरती से टकराने के बाद की स्थिति जैसी होगी।’ फ्रैंक कहते हैं कि विनाश की ओर बढ़ती धरती की परिस्थितियों को पलटा नहीं जा सकता। पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि कई लोग हालात में सुधार की कोशिश कर रहे हैं। पर मुझे लगता है कि अब काफी देर हो चुकी है।

धीरे-धीरे धरती से बहुत सारे जीव-जन्तु विदा हो गए। दुनिया से विलुप्त प्राणियों की ‘रेड लिस्ट’ लगातार लम्बी होती जा रही है।
water importance
यमुना बचाओ ऐतिहासिक पद यात्रा का आमरण-अनशन तक का सफर
Posted on 19 Apr, 2011 10:34 AM यमुना बचाओ पदयात्रा जो कि 2 मार्च से हरिनाम संकीर्तन करती हुई इलाहाबाद से शुरू हुई थी 14 अप्रैल को दिल्ली पहुंची। सब यात्री केवल सर्वजनहित की कामना से एक मरणासन्न नदी के पुनर्जीवन के लिए 850 किलोमीटर पैदल तले। सब यात्रियों के मन में आशा थी कि अब हम यमुना में फिर से कलकल करता यमुनोत्री का जल देख कर जाएँगे। 13 अप्रैल को ही कुछ समर्थकों ने सोनिया गाँधी, जयराम रमेश एवं सलमान खुर्शीद से इसी सन्दर्भ में
कैसे चलती है हवा?
Posted on 19 Apr, 2011 10:13 AM तापमान के अलावा भौगोलिक स्थिति, पहाड़, धरती के अपने अक्ष पर घूमने आदि से भी हवा की चाल प्रभावित होती है। धरती के पश्चिम से पूर्व की तरफ घूमने के कारण पछुआ हवाएं चलती हैं।
भूकंप विज्ञान और भूकंप इंजीनियरी में कॅरिअर
Posted on 11 Apr, 2011 01:12 PM भूकंप विज्ञान अपेक्षाकृत एक नया वैज्ञानिक विषय है। हालांकि लोगों की रुचि सैकड़ों वर्षों से भूकंपों के बारे में जानने की रही है परंतु एक अध्ययन विषय के रूप में भूकंप विज्ञान का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है। भूकंप तरंगों को नापने वाले उपकरण सिस्मोमीटर के विकास के साथ ही इस विषय का प्रारंभ माना जाता है। बीसवीं सदी के दौरान भूकंप विज्ञान के क्षेत्र का विस्तार हुआ और इसके दायरे में धरती के आतंरिक भाग
खामोशी का खतरनाक षड्यंत्र
Posted on 11 Apr, 2011 12:38 PM

सभी के लिए संकट


जो लोग बोतलों वाला पानी खरीद सकते हैं, वे सोचते हैं कि जल संकट उनकी समस्या नहीं है। वे गलती कर रहे हैं। महज दो अनियमित मानसून हमें पानी के लिए तरसा सकते हैं।

 

सुनामी हमारे जीवन में उथलपुथल मचा सकती है। भूकंप हमें झकझोर सकता है। हम बूंद-बूंद पानी को तरस सकते हैं लेकिन हमारा जो रवैया है, उसे हरिवंशराय बच्चन की ये अमर पंक्तियां बहुत अच्छी तरह व्यक्त करती हैं : दिन को होली, रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला।

इसमें संदेह नहीं कि हम समृद्धि की राह पर आगे बढ़ रहे हैं और यदि मानसून नियमित रहा और कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई तो हम जल्द ही 9 फीसदी की विकास दर भी हासिल कर लेंगे। शायद इसके बाद हम 10 फीसदी विकास दर के बारे में भी पूरे आत्मविश्वास के साथ विचार करने लगें। लेकिन एक तरफ जहां हम एक खुशहाल ‘कल’ की ओर देख रहे हैं और उसके लिए योजनाएं बना रहे हैं, वहीं सच्चाई यही है कि हमारा जीवन कल में नहीं, ‘आज’ में है। हम आज जीते हैं, आज सांस लेते हैं। सवाल यह है कि हमारा आज कैसा है?

खतरे में नदियां
Posted on 11 Apr, 2011 08:58 AM

विकसित देशों में नदियां सर्वाधिक खतरे में हैं। एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में आ रहे लगातार अवरोधों के कारण नदियों और उसके सहारे चल रहा जीवन और जैव विविधता सभी कुछ संकट में पड़ गए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम पुनः नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को सुनिश्चित करें। सिर्फ मनुष्यों के लिए पानी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु नदियों के प्रवाह पर लगती रोक अंततः विनाशका

<strong>भरतलाल सेठ</strong>
कुदरती खेतीः कुछ तरीके
Posted on 08 Apr, 2011 11:45 AM 1. इस तरह की खेती में दो चीजें जरूरी हैं। एक तो, कम से कम एक पशु का गोबर और पेशाब। देसी गाय को ज्यादा फायदेमन्द बताया गया है। इसलिये शुरू में कम से कम एक देसी गाय जरूर पालें या पड़ौसी या गउशाला से गोबर और पेशाब नियमित तौर पर लेने का प्रबन्ध करें। दूसरी जरूरत है किसी भी तरह की वनस्पति, पत्ते, पराल इत्यादि यानी बायोमास की पर्याप्त मात्रा। अगर यह आपके पास है तो ठीक, नहीं तो शुरू में मोल ले सकते हैं
शुरू कैसे करें?
Posted on 08 Apr, 2011 11:39 AM जाहिर है छोटा किसान, जो खेती पर ही पूरी तरह से निर्भर है, एकदम से पूरी तरह कुदरती खेती नहीं अपना सकता। वह रोजी-रोटी का खतरा मोल नहीं ले सकता परन्तु यदि हमें यह विश्वास है कि अगर पैदावार घटी भी तो 2-3 साल में वापिस बढ़ेगी और मौजूदा रास्ते पर चलना खतरनाक है, तो इस शुरुआती जोखिम को हम आगे के लिये निवेश समझ सकते हैं। इसलिए हम अपनी जमीन के उतने हिस्से- आधा एकड़ या एक-दो एकड़-से शुरू कर सकते हैं जितने क
कुदरती खेती कैसे? मूल सिद्धान्त
Posted on 08 Apr, 2011 11:23 AM कुदरती खेती के कुछ मूल सिद्धान्त हैं। मिट्टी में जीवाणुओं की मात्रा, भूमि की उत्पादकता का सब से महत्वपूर्ण अंग है। ये जीवाणु मिट्टी, हवा और कृषि-अवशेषों/बायोमास में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पोषक तत्त्वों को पौधों के प्रयोग लायक बनाते हैं। इस लिये मुख्यधारा के कृषि-वैज्ञानिक भी मिट्टी में जीवाणुओं की घटती संख्या से चिन्तित है। कीटनाशक फसल के लिये हानिकारक कीटों के साथ-साथ मित्र जीवों को भी मारते हैं
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