यमुना बचाओ ऐतिहासिक पद यात्रा का आमरण-अनशन तक का सफर

यमुना बचाओ पदयात्रा जो कि 2 मार्च से हरिनाम संकीर्तन करती हुई इलाहाबाद से शुरू हुई थी 14 अप्रैल को दिल्ली पहुंची। सब यात्री केवल सर्वजनहित की कामना से एक मरणासन्न नदी के पुनर्जीवन के लिए 850 किलोमीटर पैदल तले। सब यात्रियों के मन में आशा थी कि अब हम यमुना में फिर से कलकल करता यमुनोत्री का जल देख कर जाएँगे। 13 अप्रैल को ही कुछ समर्थकों ने सोनिया गाँधी, जयराम रमेश एवं सलमान खुर्शीद से इसी सन्दर्भ में मुलाकात की जिसमें सोनिया की वाणी से यह आश्वासन मिला कि हाँ यह होना चाहिए।

फिर 14 अप्रैल को यह यात्रा दिल्ली पहुँच गई और अपनी आवाज जन-साधारण एवं सरकार तक पहुँचाने के लिए एक पत्रकार सम्मलेन किया गया। उस सम्मलेन में अपनी वही मांगें दोहराई गईं जो सोनिया जी, जयराम रमेश जी एवं सलमान खुर्शीद जी के समक्ष रखी गई थीं। इस सम्मलेन में आए हुए पत्रकारों ने भी इस सन्दर्भ में अपने शुभ विचार जताए।

फिर 15 अप्रैल को, यह यात्रा करीब 3000 किसानों, साधू-संतों एवं अन्य श्रद्धालुओं का समूह बना कर जंतर मंतर पर केवल हरिनाम संकीर्तन करती हुई सरकार के नीतिपूर्ण विचार-फल की प्रतीक्षा करती रही। शाम के करीब 4 बजे ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन आए। उन्होंने आकर जल छोड़ने का केवल आश्वासन मात्र दिया एवं किसी भी योजना के क्रियान्वयन की बात नहीं की।

जंतर मंतर पर धरनारत किसानों एवं साधू-संतों ने सरकार को मांगें स्वीकारने के लिए एक दिन का समय दिया। उसी शाम को फिर से मथुरा के विधायक श्रीमान प्रदीप माथुर का फोन आया जिसमें उन्होंने बताया कि सरकार यमुना जी का जल छोड़ने को तैयार है। इसी सन्दर्भ में अगले दिन, यानि 16 अप्रैल को सलमान खुर्शीद जी से मुलाकात हुई, परन्तु उस मुलाकात में भी उन्होंने कोरे आश्वासन ही दिए। फिर 17 अप्रैल की सुबह ही सरकार के रवैये से परेशान करीब 70 किसानों एवं साधू-संतों ने आमरण-अनशन का निश्चय किया। परन्तु इस से भी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ।

18 अप्रैल को दोबारा, सरकार ने मथुरा के विधायक प्रदीप माथुर से यह कहलवाया की सलमान खुर्शीद जी अनशनकारियों का उपवास खुलवाने (यानि मांगें स्वीकारने) शाम 6 बजे उनसे मिलने आ रहे हैं, परन्तु काफी इंतजार के बाद मालूम हुआ कि वे नहीं आ रहे हैं।

आज आमरण-अनशन पर बैठे लोगों को 2 दिन हो गए हैं, परन्तु सरकार को कोई लेना-देना नहीं। प्रदर्शनरत लोग पत्रकारों एवं अन्य प्रकाशन मीडिया को समय-समय पर जानकारी देते रहे परन्तु हर बार सरकार के झूठे बयानों की वजह से वह सूचना असत्य साबित हुई।

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