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कुदरती खेती के अनुभव
Posted on 07 Apr, 2011 09:34 AM आम तौर पर यह माना जाता है कि रासायनिक खाद का प्रयोग न करने पर उत्पादन घटता है, विशेष तौर पर शुरु के सालों में। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। अगर पूरी तैयारी के साथ कुदरती खेती अपनाई जाए (यानी कि पर्याप्त बायोमास- हर प्रकार का कृषि-अवशेष या कोई भी वनस्पति-पराली, पत्ते, इत्यादि-हों, और पूरे ज्ञान के साथ, समय पर सारी प्रक्रिया पूरी की जायें तथा अनुभवी मार्गदर्शक हो) तो पहले साल भी घाटा नहीं होता
अब करें कुदरती खेती
Posted on 07 Apr, 2011 09:28 AM

ताज्जुब तो इस बात का है कि इस कुकर्म में राजनेता, वैज्ञानिक, तथाकथित गांधीवादी संत और विचारक सब

भारत में प्रयोग होने वाले खेती के नाप
Posted on 07 Apr, 2011 09:01 AM

भारत के अधिकांश भागो में खेतों के नाप के लिए गज, हाथ, कट्ठा, जरीब, बिस्साz, बिस्वॉ:नसी,उनवांनसी, कचवानसी, बीधा, किल्लाp, एकड, हेक्टेकयर आदि मात्रकों का प्रयोग होता हैं। देखें उनसे सम्ब धित जानकारी
 

नापने का पैमाना

 

कुदरती खेती क्यों?
Posted on 06 Apr, 2011 04:36 PM इस तरह की खेती अपनाने के पीछे निम्नलिखित मुख्य कारण हैं।
1. रसायन एवं कीटनाशक आधारित खेती टिकाऊ नहीं है। पहले जितनी ही पैदावार लेने के लिए इस खेती में लगातार पहले से ज्यादा रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है।

2. इस से किसान का खर्चा और कर्ज बढ़ रहा है और बावजूद इसके आमदनी का कोई भरोसा नहीं है।
वर्षाजल संचयन पर एक ऑडियो
Posted on 06 Apr, 2011 02:55 PM

पूरी दुनिया आज जल संकट से जूझ रही है। विशेषज्ञों का मानना है वर्षाजल संरक्षण ही जल संकट से उबरने का महत्वपूर्ण स्रोत है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब वन वर्ल्ड साउथ एशिया की टीम ने सर्वे के दौरान कुछ लोगों से पूछताछ की तो नतीजे बेहद चौकाने वाले थे। क्योंकि अधिकांश ने कहा कि उंहे वर्षाजल संरक्षण के बारे में पता ही नहीं।

rainwater harvesting
ऐसे साफ होगी यमुना
Posted on 06 Apr, 2011 01:07 PM

यमुना प्रदूषण के सवाल पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साधु-संत और मौलवी-उलेमा उसी तरह सजग होते जा रहे हैं, जिस तरह दो साल पहले महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के संत हुए थे। संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर के भक्ति आंदोलन से जन्मे वारकरी संप्रदाय का पश्चिमी महाराष्ट्र और विदर्भ के किसानों में व्यापक जनाधार है। नदी जल प्रदूषण के सवाल पर पुणे के किसान आंदोलन को जब राज्य सरकार के दमन और हाई कोर्ट के स्टे न

कुदरती खेतीः बिना कर्ज, बिना जहर
Posted on 06 Apr, 2011 09:50 AM कर्ज और जहर बगैर खेती के कई रूप और नाम हैं- जैविक, प्राकृतिक, जीरो-बजट, सजीव, वैकल्पिक खेती इत्यादि। इन सब में कुछ फर्क तो है परन्तु इन सब में कुछ महत्वपूर्ण तत्त्व एक जैसे हैं। इसलिये इस पुस्तिका में हम इन सब को कुदरती या वैकल्पिक खेती कहेंगे। कुदरती खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और बाहर से खरीदे हुए पदार्थों का प्रयोग या तो बिल्कुल ही नहीं किया जाता या बहुत ही कम किया जाता है। परन
साफ नदी होगी साफ सोच से
Posted on 05 Apr, 2011 11:10 AM

यमुना की सफाई दिल्ली में एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद यमुना का दिल्ली में एक गंदे नाले के रूप में बहते रहना निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है। वर्तमान में दिल्ली में यमुना की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा प्रति लीटर 4.0 मिलीग्राम की सामान्य स्थिति के मुकाबले शून्य से 1.79 मिलीग्राम प्रति लीटर है। यानी यमु

यमुना
दैनिक भास्कर का जल स्टार अवार्ड
Posted on 05 Apr, 2011 08:13 AM जल संरक्षण के लिए राज्य स्तर पर ‘डीबी जल स्टार’ सम्मान देने की शुरुआत इस वर्ष से दैनिक भास्कर समूह ने की है। इस सम्मान का उद्देश्य पानी की बचत को बढ़ावा देते हुए इस कार्य में जुटे लोगों, समूह, संस्थाओं को रेखांकित कर समाज के सामने लाना है। ताकि समाज उनसे प्रेरित हो और इस अहम कार्य में अपनी भूमिका के लिए उत्साहित हो सके।

मानव और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक है
Posted on 04 Apr, 2011 06:22 PM

पृथ्वी सदियों से मानव जाति को आश्रय प्रदान करती आ रही है। मानव जीवन के आस्तित्व के लिए धरती ने हवा, पानी, खाद्य सामाग्री आदि अनेकों उपहार दिए हैं। पेड़ पौधों ने धरती को हरा भरा बना कर प्राणी जगत को जीवंत किया है।

world earth day
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