भारत

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दवा का मर्ज बन जाना
Posted on 15 Jul, 2011 12:19 PM

रासायनिक सहायक औषधि मात्र 4 माह तक औषधि को सुरक्षित रख पाती है। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने

जल बचाएं और मानसून से संबंध प्रगाढ़ बनाएं
Posted on 15 Jul, 2011 09:10 AM

हमारे शहरों और खेतों में होने वाली बारिश का उत्सव कैसे मनाया जाए?

जनसंख्या के महत्वपूर्ण आँकड़े
Posted on 14 Jul, 2011 04:56 PM

भारत की जनसंख्या की गणना हर दस साल बाद होती है। इसमें 1911-21 की अवधि को छोड़कर प्रत्येक दशक में आबादी में वृद्घि दर्ज की गई 1 करोड़ 84 लाख आबादी 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में रहती थी, जो 21वीं शताब्दी में एक अरब 2 करोड़ 80 लाख तक पहुँच गई।

उद्योग, विकास और पर्यावरण
Posted on 14 Jul, 2011 04:22 PM

हमें यह सोचना होगा कि पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना औद्योगीकरण कैसे हो सकता है ताकि रोज़गार के

आम आदमी के हिस्से में अंधेरा
Posted on 14 Jul, 2011 01:39 PM

सरकार की रणनीति है कि आम आदमी को अंधेरे में रखो। इससे बिजली उत्पादन बढ़ाने के पक्ष में जनमत बन

जल जीव भी हैं खतरे में
Posted on 14 Jul, 2011 08:31 AM

कभी बड़ी संख्या में पाए जाने वाले घड़ियाल, कछुआ, मछली और मेंढक जैसे जल-जीवों का अस्तित्व संकट में है। इनमें कुछ जीव संरक्षित घोषित हैं फिर भी इनका अवैध शिकार हो रहा है। कछुए को 1985 में संरक्षित घोषित किया गया था। कुछ माह पूर्व उत्तराखंड के शिकारगंज में चार लोगों के पास दुर्लभ जाति के 80 कछुए बरामद हुए। नवम्बर 2010 में बंगलुरू में शिकारियों के पास 128 कछुए पकड़े गये। देश में प्रतिवर्ष हजारों कछ

मगरमच्छ
पवन : मंद समीर या भयावह चक्रवात
Posted on 13 Jul, 2011 10:44 AM सामान्य आदमी के लिए पवन का अर्थ मंद-मंद बहने वाली बयार भी हो सकता है और तबाही का तांडव नृत्य करने वाला चक्रवात भी; मन को प्रफुल्लित कर देने वाली समीर भी हो सकता है और रेगिस्तान के धूल भरे अंधड़ भी; तपती दोपहरी की लू भी हो सकता है और जीवनदायनी वर्षा लाने वाला मानसून भी। परंतु मौसम-वैज्ञानिक की दृष्टि से “पवन” बहती हुई पवन है जिसमें ऊर्जा कूट-कूट कर भरी होती है। यह ऊर्जा अत्यंत विलक्षण कार्य कर सकती
कहां गया पानी!
Posted on 12 Jul, 2011 12:43 PM

जल: आज जो पानी हम पीते हैं, वही पानी करोड़ों साल पहले विशालकाय डायनासोरों के युग में एक या अन्य रूपों में मौजूद था। वायुमंडल में रिसाइकिल होकर हमारे गिलास तक पहुंचने वाले धरती पर मौजूद इस स्वच्छ जल की मात्रा इतने वर्षों से तकरीबन लगातार स्थिर है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह पानी गया कहां?

प्रदेशों की परेशानी
Posted on 12 Jul, 2011 12:08 PM

उत्तर प्रदेश


आवश्यकता: 20 हजार एमएलडी उपलब्धता: 15 हजार एमएलडी

जल संरक्षण प्रदेश में जल संरक्षण और प्रबंधन के नाम पर कागज की नाव ही तैरायी गयी है। यहां न बड़े भवनों में रेन हार्वेस्टिंग के नियम पूरी तरह अमल में आ सके और न ही अंधाधुंध जल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए बना जल प्रबंधन एवं नियामक आयोग अपने पूरे प्रभाव में नजर आया।

थोड़ा है स्वच्छ जल
Posted on 12 Jul, 2011 11:11 AM

कहने को तो धरती का तीन चौथाई हिस्सा जलाच्छादित है, लेकिन इसमें पीने योग्य स्वच्छ जल की हिस्सेदारी अंशमात्र ही है। धरती पर मौजूद जल की कुल मात्रा 1.4 अरब घन किमी है। इस पानी से पूरी पृथ्वी पर तीन किमी चौड़ी पानी की परत से ढका जा सकता है। यहां मौजूद कुल पानी का करीब 95 फीसदी महासागरों में मौजूद है जो अत्यधिक लवणीय होने के कारण पीने या अन्य उपयोग लायक नहीं है। चार चार फीसदी पानी ध्रुवों पर मौजूद ब

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