चरणामृत भी फिल्टर्ड ही पीएं

पेयजल के प्रदूषण से एक बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होती रहती है इसलिए पेयजल को लेकर आम लोगों में चेतना भरने की भारी जरूरत है। प्रदूषित पानी के पीने से केवल डायरिया, डिसेंट्री, टायफायड, हैजा, पीलिया ही नहीं हो रहे हैं, इससे बाल भी झड़ रहे हैं, दांत भी खराब हो रहे हैं। 2010 में हुए सर्वे में देश के सभी मेटोपॉलिटन सिटी के पानी को रोग फैलाने वाला पाया गया। इसलिए सुपरबग पर माथा पच्ची करने के साथ-साथ पानी को शुद्ध करने के आसान तरीकों पर ध्यान दें तो बेहतर होगा।

पानी जनित बीमारियां आपको कहां से मिल जाएंगी, आज के हालात में यह कहना मुश्किल है। हमारी पेयजल आपूर्ति की पद्धति में इतने ‘छिद्र’ हैं कि कहीं से भी बैक्टीरिया, वायरस या दूसरे प्रदूषण उसमें दाखिल हो सकते हैं। इसलिए जो पानी आप पीते हैं उसको लेकर खासे एहतियात की जरूरत है। पानी अमृत है तो यह विष भी है। पानी वह चीज है कि भरपेट पीकर निकलें तो प्रचंड गर्मी भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। लेकिन अगर प्रदूषित हो तो फिर रोगों की खान भी। अब तो इसलिए भी पीने के पानी को लेकर अलर्ट रहने की आदत डाल लेनी चाहिए क्योंकि पानी में अब सुपरबग की घुसपैठ का भी खतरा मंडराने लगा है। सुपरबग उस बैक्टीरिया को कहते हैं जिस पर सभी एंटीबायोटिक निष्प्रभावी हो जाते हैं। अगर ब्रिटेन के मेडिकल जर्नल लांसेट की रिपोर्ट सही है तो दिल्ली के पेयजल पाइपों में सुपरबग का प्रवेश भी हो चुका है। वैज्ञानिक बिरादरी ने तो इस घातक बैक्टीरिया का नाम भी नई दिल्ली पर रखा दिया है। भले ही यह एकदम सही नहीं हो, लेकिन हमें पेयजल को लेकर गंभीर बनाने के लिए बहुत अच्छा ‘डोज’ है। मान लीजिए कि ये सुपरबग वास्तविकता में तब्दील हो जाएं, जिसकी संभावना बहुत है तो इस पानी के पीने से हुए हैजा और निमोनिया ठीक भी नहीं होंगे। कोई एंटीबायोटिक काम नहीं आएगा।

इसलिए प्रदूषित पेयजल और उनसे होने वाली पीलिया, टाइफायड, हैजा, डायरिया, पेचिस आदि से बचे रहना है तो शुरुआत चरणामृत से करें। मंदिरों में मुक्त हस्त से दिया जाने वाला यह ‘आध्यात्मिक’ पानी फिल्टर से छना हुआ है या नहीं, यह भी पता करें। अगर नहीं है तो श्रद्धा अपनी जगह है। संक्रमित चरणामृत भी पेट में गया तो पूजा के पहले फल के रूप में ये बीमारियां भी मिलेंगी। हनुमान चालीसा के हर छंद में सेहत के छिपे राज का दर्शन करने वाले, पूजा और अध्यात्म को दवा से कम नहीं समझने वाले हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल अगर यह बात कह रहे हों तो फिर स्थिति की गंभीरता समझनी चाहिए। निश्चित रूप से उनकी इस बात को धर्म विरुद्ध नहीं कह सकते। ‘नेशनल दुनिया’ से बातचीत में डॉ. अग्रवाल कहते हैं- पीने का यही एक पानी है जो दिए जाने पर बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा कोई भी पीने से इनकार नहीं करेगा धार्मिक भावना को चोट पहुंचाने की मंशा कतई नहीं है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि कई मंदिरों में चरणामृत के रूप में टायफायड, डायरिया और पीलिया भी बंट रहे हों।

यह बात कहने के पीछे मंसा सिर्फ पीने के पानी को लेकर बेहद गंभीर रहने की जरूरत को रेखांकित करना भर है। लाखों भक्तों को चरणामृत बांटने वाले मंदिर प्रबंधन भी अगर इस बात की गंभीरता को समझें तो फिर क्या कहने। सेहत के लिए ही नहीं, शास्त्रों के अनुसार पूजा में भी शुद्धता का उतना ही महत्व बताया गया है। पूजा में अशुद्धि हो जाए तो देवता भी कुपित हो जाते हैं। पूजा में शुद्धता की पूरी अवधारणा सेहत की ही अवधारणा है। साफ शब्दों में कहने का मतलब यह है कि अगर मंदिरों में मिलने वाला चरणामृत भी ‘फिल्टर्ड’ हो तो सेहत के हिसाब से समझिए सोने में सुगंध। घर में तो पानी को उबाल कर पी सकते हैं। लेकिन कोई चरणामृत उबाल कर पीने की सलाह दे तो हास्यास्पद ही लगेगा। डॉ. अग्रवाल की बातों की गंभीरता को समझे तो सेहत के हिसाब से मंदिरों का भी मानकीकरण हो तो अच्छी ही बात होगी।

पानी को फिल्टर करके या उबाल कर ही पीएंपानी को फिल्टर करके या उबाल कर ही पीएंउनके अनुसार गोलगप्पा (उसे फोकचा या पानी पूरी भी कहते हैं) का पानी भी खतरे से खाली नहीं है। खासकर महिलाएं तो फोकचा पानी ऐसे ही पीती हैं जैसे वह अमृत ही हो। सच पूछिए तो पानी पुरी मुंह से पानी गिराने वाली वह ‘बला’ जिससे मुंह मोड़ लेना अच्छे-अच्छों के बूते की बात नहीं होती। लजीज पानी में फोकचे वाले का बार-बार डूबता हुआ हांथ वहां कौन से और कितने बैक्टीरिया छोड़ रहा है, इस पर किसी की नजर कहां पड़ती है। दिल्ली जैसे शहर में फोकचा भी जल जनित रोग फैलाने का ‘प्रभावी’ माध्यम है। प्रदूषित पानी के पेट में जाने का एक और खतरनाक स्रोत है। वह है गर्मी में रोज लाखों लोगों के गले को तर करने के काम में आने वाले बर्फ की बड़ी-बड़ी सिल्ली। पता नहीं किस तरह के पानी से बनाई जाती हैं ये सिल्लियां। बर्फ की इन सिल्लियों पर तो तत्काल रोक लगनी चाहिए। सरकारी आंकड़ों से अलग निजी अस्पतालों, क्लिनिक एवं नर्सिंग होम के विशेषज्ञों से बात करें तो दिल्ली एवं एनसीआर के लोग भारी संख्या में जल जनित बीमारियों की चपेट मे आते रहते हैं। उनकी जानें भी जा रही हैं। 2010 में आए एक सर्वे ने यह साफ रेखांकित भी कर दिया है कि दिल्ली सहित देश के तमाम मेट्रो के पेयजल नेटवर्क प्रदूषण से अछूते नहीं रह गए हैं।

वैशाली स्थित अत्याधुनिक अस्पताल पुष्पांजलि क्रॉसले के ‘वेलनेल’ विभाग की प्रमुख डॉ. रूबी बंसल ने दिल्ली और आसपास के इलाकों में पीए जाने वाले पानी को ‘सिक वाटर’ की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि वाटर सिस्टम में इतने लूप होल्स (छेद) हैं कि राजधानी के अच्छे-अच्छे इलाके भी जल जनित बीमारियों से अछूते नहीं होंगे। पीने के पानी में कहीं न कहीं किसी भी तरह से मिलावट हो ही जाती है। गाजियाबाद में तो खारे पानी का भारी संकट है। यहां नलों में जो पानी आता है वह सेहत के लिए बहुत अच्छा नहीं है। सोचिए जो पानी नल में जंग लगा देता है, वह पेट में जाकर क्या करता होगा। पेयजल के प्रदूषण से एक बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होती रहती है इसलिए पेयजल को लेकर आम लोगों में चेतना भरने की भारी जरूरत है। प्रदूषित पानी के पीने से केवल डायरिया, डिसेंट्री, टायफायड, हैजा (कोलरा), पीलिया ही नहीं हो रहे हैं, इससे बाल भी झड़ रहे हैं, दांत भी खराब हो रहे हैं। 2010 में हुए सर्वे में देश के सभी मेटोपॉलिटन सिटी के पानी को रोग फैलाने वाला पाया गया। इसलिए सुपरबग पर माथा पच्ची करने के साथ-साथ पानी को शुद्ध करने के आसान तरीकों पर ध्यान दें तो बेहतर होगा।

जापानी बुखार (एनकेफेलाइटिस), मलेरिया आदि मच्छरों के काटने से भले ही होता हो लेकिन देखें तो इसके पीछे भी पानी का ही हाथ है। कहीं पानी के ठहर जाने से वहीं ये मच्छर भी पनपते हैं। इसलिए अगर हम पानी को ‘साध’ लें तो हम अनेकों बीमारियों से बच जाएंगे। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को बीमार बनाए रखने में पानी की सबसे बड़ी भूमिका है। इसलिए इसे ‘सिक वाटर’ (बीमार पानी) की संज्ञा दें तो अतिशयोक्ति कतई नहीं होगी। ये न समझें कि सप्लाई में गंगा वाटर आ रहा है तो कोई फिक्र नहीं। अब गंगा का पानी भी कितना प्रदूषित है लोगों को बताने की जरूरत नहीं। इसलिए पानी को हमेशा उबाल कर ही पीएं।

सुरक्षित है फिल्टर्ड वॉटर पीना किंतु...


वाटर फिल्टरवाटर फिल्टरशुरू-शुरू में जो केंडल वाला फिल्टर होता था वह पानी को सिर्फ छान सकता था। एकदम शुद्ध नहीं बना पाता था लेकिन अब जो अत्याधुनिक फिल्टर हैं उसे ‘प्यूरीफायर’ कहते हैं यानी उससे होकर जो पानी निकलता है वह पूरी तरह से शुद्ध होता है यानी पानी तमाम बैक्टीरिया, वायरस और अन्य अशुद्धियों से मुक्त। ‘आरओ’ वाले फिल्टर भी बेहद प्रभावी माने जा रहे हैं। जल जनित बीमरियों के सभी विशेषज्ञों ने भी कहा है कि स्टैंडर्ड प्यूरीफायर हो तो उसका पानी एकदम सुरक्षित है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बाजार में दोयम दर्जे के फिल्टर भी मिल रहे हैं, उसके पानी के सुरक्षित होने की गारंटी नहीं है।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एवं हर साल दिल्ली में 10 दिवसीय परफेक्ट हेल्थ मेला लगाने के लिए चर्चित पब्लिक हेल्थ एक्टिविस्ट डॉ. के.के. अग्रवाल का कहना है कि फिल्टर्ड पानी पीने से जल जनित बीमारियों से बेशक बचा जा सकता है, बशर्ते फिल्टर सही हों। आज के दौर में फिल्टर का चलन आम हो रहा है। बाजार में कई किस्म के फिल्टर आ गए हैं। इस बाजार को भी नियंत्रित करने की जरूरत है। सरकार को फिल्टर के बारे में भी दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए और सरकार को यह अडवायजरी जानी करनी चाहिए कि कौन-से फिल्टर या प्यूरिफायर उन्हें जल जनित बीमारियों से बचाएंगे। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. चारुहंस भी मानती हैं कि मानक प्यूरीफायर जल जनित बीमारियों से पूरी तरह बचाता है। लेकिन दोयम दर्जे एवं नकली प्यूरीफायर से बचें तभी इन रोगों से भी बच सकते हैं। उन्होंने कहा- मैं नाम नहीं ले सकती लेकिन कुछ खास ऐसे प्यूरीफायर हैं, उन्हीं पर भरोसा करना चाहिए। दिल्ली या एनसीआर में हर जगह पानी की रेहड़िया होती हैं। गर्मी के मौसम में सड़कों पर आते-आते हजारों लोग इन्हीं से पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं। ये रेहड़ी वाले भी बताते हैं कि उनमें फिल्टर्ड पानी ही है। विशेषज्ञों के अनुसार इन रेहड़ियों की तो कड़ी मॉनिटरिंग होनी चहिए।

कैसे अशुद्ध होते हैं पेयजल


पहले पानी जब अधिक हो जाता है तो तब वह पेयजल को प्रदूषित करने का कारण बनता है। जैसे बाढ़ आ गई, खूब बारिश हो गई। शहर के नाले भर गए। ऐसे में स्वच्छ पानी के पाइप में लीक के जरिए प्रदूषित पानी आ जाता है। सीवेज का पानी भी पेयजल में मिल जाता है। ये प्रदूषित पानी कुएं में जाकर मिल जाता है। हर जगह जमा इस पानी में चूहे ने पेशाब कर दिया तो लेप्टोसपायरिसिस बीमारी फैलने का खतरा है। दिल्ली में 50 प्रतिशत आबादी को ही ट्रीटमेंट प्लांट में शुद्ध किया हुआ पानी मिलता है। 25 प्रतिशत लोग ट्यूबवेल से पानी पीते हैं बाकी लोग हैंडपंप से, दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों से और निजी सप्लायरों के पानी पीते हैं। पानी सप्लाई के पाइप लाइन भी पुराने हैं। दिल्ली की झुग्गियां पानी की वजह से फैलने वाली बीमारियों से हमेशा त्रस्त रहती हैं।

पानी को उबालना जरूरी


सवाल है जिनके पास कीमती फिल्टर खरीदने के पैसे न हों, वे क्या करें? उन्हें भी निराश होने की जरूरत नहीं। एक आग है जो सबके पास है। वह पानी के अंदर के रोगों के सभी किटाणुओं का यूं नाश कर देगा बशर्ते आप पीने वाले पानी को अच्छी तरह उबाल लें सिर्फ गर्म कर देने से काम नहीं चलेगा। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं- कचरे के पानी को भी अच्छी तरह उबाल कर फिर ठंडा कर पानी पीएं तो कोई नुकसान नहीं होगा। सीधा फंडा है फिल्टर वाटर नहीं है तो उसे उबालो तभी पीयो। उबालने का साधन उपलब्ध न हो तो पानी नहीं पीना बेहतर है। पानी से भीगी सब्जी को कभी कच्ची नहीं खाएं, उसे उबालकर, पकाकर ही खाएं. चाय-काफी भी गर्म ही पीनी चाहिए। बाजार में मिलने वाले गन्ने के रस या कटे फल में भी पानी है, उनसे भी परहेज करें।

क्या है जल जनित बीमारियां


• डायरिया
• हैजा (कोलरा)
• पेचिस (डिसेंट्री)
• पीलिया (हेपेटाइटिस ए एव ई)
• टायफायड
• त्वचा रोग
• बाल झड़ने का रोग
• दांत खराब होने का रोग
• पेट में पनपेंगे अमीबा एवं गियार्डिया जैसे किटाणु
• रोगों से लड़ने की क्षमता घटेगी

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