भारत

Term Path Alias

/regions/india

अब तो सड़कों पर आओ ओ शब्दों के सौदागर
Posted on 15 Dec, 2012 02:13 PM अब तो सड़कों पर आओ ओ शब्दों के सौदागर,
अब तो होश में आ जाओ शब्दों के कारीगर,

सेमिनार में लेखक जी बात करें मज़दूरों की
एयर कंडीशन में बैठे चिंता है मज़दूरों की
चरित्रहीन सत्ता त्यागों ओ शब्दों के कारीगर

संसद में कुछ प्रश्न उठे और उठते ही बैठ गए
उत्तर जिनके पास न था उत्तर देकर बैठ गए
बात सड़क पर उठवाओ ओ शब्दों के सौदागर
अब नदियों पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों
Posted on 15 Dec, 2012 12:19 PM अब नदियों पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों।
अब सदियों पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों।

पानी डूबा फाइल में
गाड़ी में मोबाइल में
सारे वादे डूब गए
खून सने मिसाइल में

एक घाव पर संकट है
सारे गांव इकट्ठा हो
एक गांव पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों

निजी कम्पनी आई हैं, झूठे सपने लाई हैं
इन जेबों में सत्ता है सारी सुविधा पाई हैं
नदी तू बहती रहना
Posted on 15 Dec, 2012 12:15 PM पर्वत की चिट्ठी ले जाना, तू सागर की ओर,
नदी तू बहती रहना।

एक दिन मेरे गांव में आना, बहुत उदासी है,
सबकी प्यास बुझाने वाली, तू खुद प्यासी है,
तेरी प्यास बुझा सकते हैं, हम में है वो जोर।

तू ही मंदिर तू ही मस्जिद तू ही पंच प्रयाग,
तू ही सीढ़ीदार खेत है तू ही रोटी आग
तुझे बेचने आए हैं ये पूँजी के चोर।
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
Posted on 15 Dec, 2012 11:29 AM गांवों-गांवों में नई किताब लेके रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो

हर आंख में सवाल चिखता रहेगा क्या
जवाब अब टोपियों में बंद रहेगा क्या

गांव-गांव में अब पैर को जमा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो

भ्रष्ट अंधकार का समुद्र आयेगा
सूर्य झोपड़ी के द्वार पहुंच जाएगा

आंधियों के घरों में भी जरा जा के रहो
आज तो नदियां हमारे पास हैं
Posted on 15 Dec, 2012 11:16 AM आज तो नदियां हमारे पास हैं,
कम न होगी यह नहीं आभास है।

पेड़ सांसों के कटे, नदियां बिकीं,
कुछ लुटेरों की यहां, रोटी सिकीं,

जेब भरते लोग अक्सर खास हैं
कम न होगी यह नहीं आभास है।

प्यास की नदियां बही है आजकल,
सूखती लहरें बहीं हैं आजकल,

गुम हुआ हर मौसमी आभास है
कम न होगी यह नहीं आभास है।
कह रही हर बार ये अपनी नदी
Posted on 15 Dec, 2012 11:11 AM कब से बह रही, यार ये अपनी नदी
कह रही हर बार ये अपनी नदी।

शोर है, गम्भीरता का, रंग है,
एक जीवित व्यक्ति है अपनी नदी।

काट डाले हाथ और फिर पैर उसके,
एक सिसकता गांव है, अपनी नदी,

औरतों के पेट तलवारों से चीरे
दंगों में फंसी हर सांस है, अपनी, नदी।

पंचतारा होटलों में बैठ कर,
बेचते हैं हुकमरां, अपनी नदी।
नदियों में आग लगी है इन दिनों
Posted on 15 Dec, 2012 11:01 AM पानी में आग लगी हैं, इन दिनों
नदियों में आग लगी है इन दिनों

सूरज के ताप से सागर की भाप से
हाथों में अंगारों, सूने पदचाप से

जंगल में आग लगी है इन दिनों
नदियों में आग लगी है इन दिनों

बहते पानी वाले, रिश्ते सब टूट रहें,
कितने गहरे वाले पीछे छूट रहे हैं

रिश्तों में आग लगी है इन दिनों
‘समुदाय संचालित संपूर्ण स्वच्छता’ मार्गनिर्देशिका
Posted on 14 Dec, 2012 02:39 PM ‘समुदाय संचालित संपूर्ण स्वच्छता’ सीएलटीएस (Community Lead Total Sanitation- CLTS) बहुत से देशों के विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से फैल रहा है। प्रशिक्षण कार्य में अपना समय और क्षमता लगाने वाले कार्यकर्ताओं तथा कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षकों की बहुत कमी है।
आजादी बचाओ आंदोलन का पानी के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन
Posted on 13 Dec, 2012 10:15 AM भारत में पानी के निजीकरण के लिए विश्वबैंक तथा अन्य फंडिंग एजेंसियों के दबाव में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पानी के कारोबार में मुनाफा कमाने का मौका देने के लिए बड़े पैमाने पर केंद्र और राज्य सरकारों की कोशिशें चल रही हैं। केंद्र सरकार की जल नीति-2012 इसी दिशा में पहला बड़ा कदम है। संविधान में संशोधन करके पनी के मुद्दे को राज्य सूची से निकाल कर समवर्ती सूची में डालने का इरादा है जिससे कि केंद्र सभी र
मुफ्त में मिलने वाला पानी अब बोतल में बिक रहा है
अविरल गंगा और निर्मल गंगा आंदोलन- राजेंद्र सिंह उर्फ पानी बाबा
Posted on 12 Dec, 2012 04:48 PM राजेंद्र सिंह उर्फ पानी बाबा जल बिरादरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम नहीं है बल्कि एक ऐसे आंदोलन का नाम है जिसने राजस्थान के गांवों में जल क्रांति को जन्म दिया। वे मैगसेसे पुरस्कार के विजेता भी है पर यह विजेता स्वामी सानंद जैसे गंगापुत्रों की खोज में है। स्वामी सानंद जैसे गंगा पुत्रों के द्वारा ही गंगा मैया का उपचार किया जा सकता है। लेकिन इस रोग का इलाज खोजने के लिए पानी बाबा संपूर्ण भारत में क्रां
×