पृथ्वी पर प्रकृति का अनमोल उपहार जल

आज पूरा संसार जल संकट के दौर में आ गया हैं। आज पानी का संरक्षण कम और दोहन अधिक मात्रा में हो रहा है। वास्तविकता यह है कि धरती पर मौजूद सारे पानी का अधिकांश 97.4 प्रतिशत भाग समुद्रों में भरा पड़ा है यह सारा जल खारा है जो सीधे कहे तो हमारे पीने के प्रयोग के काबिल ही नही हैं। इसके बाद थोड़ा पानी 1.81 प्रतिशत ध्रुवों की बर्फ के रूप में विद्यमान है। हमारे पीने लायक मीठा पानी सारे पानी का लगभग 0.8 प्रतिशत ही है जो कि हम रोज के कार्यों में प्रयोग करते हैं और यह प्रदूषण की मार झेल रहा है। वास्तविकता यह है कि पूरी दुनिया में बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती खपत के कारण जल संकट गहराता जा रहा है।

प्रभु ने जितने भी उपहार दिए हैं पृथ्वी पर आए हुए मनुष्यों को उन सब में जल सर्वश्रेष्ठ और जीवन धन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आज की युवा पीढ़ी निरंतर प्रकृति से दूर होती जा रही है। जिसका परिणाम हमारे सामने लाइलाज बिमारियों के रूप में आ रहा है। प्राचीन काल में जहां नदियों का पानी पेयजल के लिए प्रयोग किया जाता था। प्राचीन सभ्यताएं नदियों के किनारे बसती थीं। जिसका मुख्य कारण पानी ही था। जैसे-जैसे मानव की आवश्यकता बढ़ती गई वह विकास की ओर अग्रसर होता गया। उसने रहट, तालाब तथा कुओं कृत्रिम जल स्रोतों को विकसित करना आरम्भ कर दिया। उसके बाद संकट बढ़ा तो कुओं व रहट के माध्यम से हमने पेयजल का प्रयोग किया। उसके कुछ समय बाद ट्यूबवेल व हैण्डपम्पों का प्रयोग होने लगा। अब हैण्डपम्प भी फेल होने लगे हैं तो सबमर्सिबल पंप का प्रयोग होने लगा। इस प्रकार पेयजल के लिए हमने कई साधनों को बदला लेकिन एक समय आयेगा कि ये सब भी फेल हो जाएंगे तब मानव को पानी के महत्व का पता चलेगा। सोचनीय विषय यह है कि मानव इन सारी बातों को जानते हुए भी जल का दोहन करने पर तुला है। कुछ समय बाद हमारे पास कोई विकल्प नही बचेगा या तो हम चतेंगे या समाप्त हो जाएंगे। हम बद से बदतर हो जाएंगे। प्रायः देखा जाता है कि जहां जल नही है वहां जीवन की संभावनाएं भी नही हैं किसी कवि ने ठीक ही लिखा है-

पानी से पैदा हुए हैं, पौधे जन्तु हर प्राणी।
बिन पानी ही छाई है, हर ग्रह पर वीरानी।।

हरी भरी धरती, कहती पानी की अजब कहानी।
बिन पानी हो जाती है जीवन की खत्म कहानी।।


परन्तु आज पूरा संसार जल संकट के दौर में आ गया हैं। आज पानी का संरक्षण कम और दोहन अधिक मात्रा में हो रहा है। वास्तविकता यह है कि धरती पर मौजूद सारे पानी का अधिकांश 97.4 प्रतिशत भाग समुद्रों में भरा पड़ा है यह सारा जल खारा है जो सीधे कहे तो हमारे पीने के प्रयोग के काबिल ही नही हैं। इसके बाद थोड़ा पानी 1.81 प्रतिशत ध्रुवों की बर्फ के रूप में विद्यमान है। हमारे पीने लायक मीठा पानी सारे पानी का लगभग 0.8 प्रतिशत ही है जो कि हम रोज के कार्यों में प्रयोग करते हैं और यह प्रदूषण की मार झेल रहा है। वास्तविकता यह है कि पूरी दुनिया में बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती खपत के कारण जल संकट गहराता जा रहा है। पानी पर गहराते संकट को देखते हुए संयुक्त राष्ट ने वर्ष 2005 से 2015 तक की अवधि को जल दशक घोषित किया है और अपने सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों में शामिल करते हुए स्वच्छ पेयजल और बुनियादी साफ-सफाई प्राप्त करने के अधिकार को मानवाधिकार की मान्यता प्रदान की है।

विश्व स्तर पर इन सब प्रयासों के बावजूद भी जल की समस्या जस की तस बनी हुई है। युवा पीढ़ी इस ओर जल संरक्षण न कर केवल दोहन की ओर ही अग्रसर है। जो उनकी जागरूकता के अभाव को प्रदर्शित करती है। कभी वर्षा जल का संरक्षण बडे़-बडे़ तालाबों के रूप में किया जाता था। जो वर्षा जल संरक्षण का एक उत्तम प्राकृतिक स्रोत था। परन्तु आज मानव इन स्रोतों की कटौती कर इन पर इमारतें खड़ी करता जा रहा है। जो उसे एक ओर सुख समृद्धि के साधन प्रदान कर रही है। वही दूसरी ओर जल से संबंधित समस्याओं से घेर रही हैं। पानी की महत्ता को समझते हुए रहीमन ने कहा है-

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गऐ न उबरे, बिन मोती मानस चून।।


इस दोहे के माध्यम से कवि पानी की महत्ता को हमें समझाना चाहता है। यहां कवि पानी के विभिन्न आयामों को गिना रहा है यदि वह किसी पत्ते पर पड़ जाये तो ओस की बूंद भी उसकी मोती नजर आने लगती है और यदि वह चून में पड़ जाये तो रोटी बनाने के लिए उसे कोमल कर देती है और यदि वह मानव जीवन में पड़ जाये तो उसे प्राण देती है और यदि यह जल इन सब जगहों से हट जाये तो सबको वीरान कर देती है।

इस प्रकार जल का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। हमें एक-एक बूंद संजोनी होगी तभी हमारी आने वाली पीढ़ियों को पानी मिल सकेगा।

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