मत रोको, गंगा को बहने दो…

हमारी सभ्यता का उद्भव और विकास नदियों के किनारों से जुड़ा रहा है। नदियों से शुरू हुआ हमारा विकास क्रम आज नदियों के विनाश तक जा पहुंचा है। गंगा और यमुना हमारे जीवन का आज भी आधार-भूत तत्व हैं। स्वांतः सुखाय विकास की आधुनिक अवधारणा आज नदी रूपी हमारी जीवनदायी स्रोत के लिए अभिशाप बन गई है। पतित् पावनी गंगा पिछले तीन दशकों से मुक्ति की बाट जोह रही है। गंगा मुक्ति की चिंता सरकार से ज्यादा देश की सर्वोच्च अदालत को है और वह हर बार सरकार से यक्ष प्रश्न करती है कि गंगा की सफाई कब तक होगी? इसी सवाल की पड़ताल करती सामयिकी।

.देश की पावन नदी गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। उत्तर भारत की यमुना, पश्चिम की साबरमती, दक्षिण की पम्बा की भी हालत बहुत ही खराब है। देश की कई नदियां जैविक लिहाज से मर चुकी हैं। इसका असर पर्यावरण के साथ लोगों पर भी पड़ रहा है।

वर्ल्ड रिसोर्सेज रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी भारतीय गंदा पानी पीते हैं। पीलिया, हैजा, टायफाइड और मलेरिया जैसी कई बीमारियां गंदे पानी की वजह से होती हैं। रासायनिक खाद भी भू-जल को दूषित कर रहे हैं। कारखानों और उद्योगों की वजह से हालत और बुरी हो गई है।

यमुना और कुछ नदियों की सफाई तीन दशक पहले ही भारत में नदियों को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए गए थे। 1987 में पहली राष्ट्रीय जल नीति बनाई गई। इसके बाद उसमें कई बदलाव भी हुए, लेकिन आज तक ऐसे स्पष्ट कानून नहीं बने और ना ही ऐसी संस्थाएं तैयार की गई, जो खास तौर पर जल प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हों। नियम है कि उद्योग अपना गंदा पानी खुद साफ करेंगे, लेकिन ऐसे बहुत कम मामले हैं जहां इसका पालन हुआ हो और दोषियों को सजा दी गई हो।

उद्योगों पर इस तरह का दवाब नहीं डाला गया कि वे पानी को जहरीला करने वाले रसायनों को घटाएं। हालांकि जिन देशों में वॉटर मैनेजमेंट अच्छा है, उनसे मदद भी ली जा रही है। तय किया गया कि इजरायल की मदद से भारत गंगा नदी को साफ करेगा और 2020 तक नदी को साफ कर दिया जाएगा।

जल प्रबंधन के मामले में इजरायल के पास बेहद उन्नत तकनीक है। लेकिन इजरायली विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा को साफ करने में अगले 20 साल लग जाएंगे। विशेषज्ञ चाहते हैं कि नदियों के किनारे अलग से निकासी तंत्र बनाया जाए। इस निकासी तंत्र में गंदा पानी बहता रहेगा। इसे नदी में तभी डाला जाएगा, जब इसे पूरी तरह साफ कर दिया जाए। यमुना की सफाई में जर्मनी की भी मदद ली जा रही है। लेकिन मुश्किल ये है कि ठोस नियमों और कड़ी निगरानी के अभाव में ऐसी मदद के सफल होने की उम्मीदें भी कम ही हैं।

प्रदूषण का कारण


.ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजली-घर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारखाने लगे हैं। कानपुर का जाजमऊ इलाका अपने चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है। यहां तक आते-आते गंगा का पानी इतना गंदा हो जाता है कि उसमें डुबकी लगाना तो दूर, वहां खड़े होकर सांस तक नहीं ली जा सकती। गंगा की इसी दशा को देख कर मशहूर वकील और मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने 1985 में गंगा के किनारे लगे कारखानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। फिर सरकार ने गंगा की सफाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरूआत हुई।

‘नमामि गंगे’ योजना


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी मिशन नमामि गंगे की अब जमीन पर शुरुआत हो चुकी है। केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की विभिन्न एजेंसियों की 120 टीमों ने गंगा यमुना और राम-गंगा तट के 118 स्थानों पर प्रदूषण रोकने की कार्रवाई शुरू कर दी है। जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा कि ‘नमामि गंगे’ मिशन आरंभ हो चुका है। गंगा-यमुना और राम-गंगा के तटों पर ऐसे 118 स्थानों के अध्ययन के लिए 39-39 टीमें भेजी गई हैं, जो दिल्ली लौट कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। ये टीमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में 118 नालों पर जल शोधन उपायों की समीक्षा करेंगी। जिन स्थानों पर जल शोधन संयंत्र लगे हैं। उनकी प्रभावशीलता देखी जाएगी। अगर वे उपयोगी पाए गए तो उन्हें नई तकनीक से अधिक असरदार बनाने व जहां कोई संयंत्र नहीं हैं अथवा बेकार संयंत्र हैं, वहां नए संयंत्र बनाने की जरूरत का वास्तविक निगरानी की जाएगी। स्थिति की जानकारी मिलने के बाद 118 नालों को बंद करने की तैयारी शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि नालों को बंद करने के संबंध में गठित विभिन्न मंत्रालयों की संयुक्त समितियों की कार्ययोजना रिपोर्ट पहले ही मिल चुकी हैं। अब सिर्फ काम शुरू करना ही शेष रह जाएगा।

निर्मल गंगा निर्बाध गंगा!


.विवेक दत्त मथुरिया गंगा सनातन भारतीय परंपरा की वाहक, पालक और संवर्धक के रूप में जन-जन की जीवनदायी निर्मल और स्वच्छ धारा का नाम है। गंगोत्री से निकलने वाली यह जीवनदायी, मोक्षदायी धारा मानव निर्मित विकास की बेड़ियों में जकड़ी हुई है। इसकी निर्मलता विषैली हो गई है तो इसका निर्बाध प्रवाह मैदान में तेजी से सिकुड़ गया है।

आज गंगा को अपनी मुक्ति के लिए किसी भागीरथ का इंतजार है। गंगा मुक्ति के सरकारी और गैर सरकारी प्रयास लोकेषणा के साधन बन कर रह गए हैं। गंगा की पीड़ा जस की तस बनी हुई है। गंगा मुक्ति का सवाल अपने में यक्ष प्रश्न बना हुआ है। गंगा मुक्ति से जुड़ा यही यक्ष प्रश्न देश की सर्वोच्च अदालत सरकारों से लगातार करती आ रही है। तीन दशकों में अरबों रुपए बहाने के बाद भी परिणाम सिफर ही रहे हैं।

आखिर गंगा सफाई अभियान के सकारात्मक परिणाम सामने क्यों नहीं आ पा रहे हैं? इन कारणों को जाने बिना गंगा सफाई के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि गंगा सफाई का हमारा संकल्प कमजोर है। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर जो भी प्रयास हो रहे हैं, उन्हें लोकेषणा की ही कामना कहा जा सकता है और उन प्रयासों का सच भी यही है। अनुदान से सब अपनी मुक्ति करने में जुटे हैं। तब ऐसे में गंगा कैसे साफ हो सकती है। जब नीयत ही सही नहीं है तो संकल्प और लक्ष्य अधूरे ही रहेंगे।

गंगा सफाई का मसला हमारी नीयत से जुड़ा हुआ है। नीयत की इसी कसौटी पर हम अपनी धार्मिकता और गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा को कसकर देख सकते हैं। सेवा का फल त्याग और समर्पण से जुड़ा है। जरूरत इस बात की है कि नदियों को उनके प्रवाह के अनुरूप बस बहने दो। उनके प्रवाह में उनकी जीवंतता निहित है।

इसी एक शर्त को हम ईमानदारी से पूरा कर दें तो हम गंगा और यमुना सहित सभी नदियों को बचाने में और प्रदूषण से मुक्त रखने में कामयाब हो सकते हैं। बड़ा सवाल यही है कि क्या हम गंगा और यमुना को उनका रास्ता देने के लिए तैयार हैं? अगर हैं तो फिर समस्या कहां हैं? गंगा मुक्ति का बड़ा सवाल यहीं अटका हुआ है।

अगर ऐसा कर पाने में सरकार समर्थ नहीं है तो गंगा मुक्ति के अभियान पर इसी तरह सवाल खड़े होते रहेंगे, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल होते रहेंगे, परियोजनाएं इसी तरह बनती रहेंगी और गंगा इसी तरह मुक्ति के लिए कराहती रहेगी।

.विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार करे हाहाकार,
निःशब्द सदा ओ गंगा तुम ओ गंगा बहती हो क्यों
इतिहास की पुकार करे हुंकार,
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को सबल-संग्रामी
समग्र-गामी बनाती नहीं हो क्यों।।


अनपढ़ जन अक्षरहीन अनगिन-जन खाद्य-विहीन
निद्र-विहिन देखो मौन हो क्यों
इतिहास की पुकार करे हुंकार
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को सबल संग्रामी,
समग्रगामी बनाती नहीं हो क्यों
व्यक्ति रहे व्यक्ति-चिंतित
सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज को झिंझोड़ती नहीं हो क्यों।। -भूपेन हजारिका


जीवनशैली और सफाई का संकट


नदियों के बगैर इस देश की कल्पना ही नहीं की जा सकती। ये हमें बहुत कुछ देती हैं। हमारी फसलें, हमारा मौसम, हमारा धर्म, हमारे तीर्थ, हमारा जनजीवन और बहुत कुछ। लेकिन आज देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर पहुंच गई हैं। इनमें गुजरात की अमलाखेड़ी, साबरमती और खारी, हरियाणा की मारकंदा, मध्य प्रदेश की खान, उत्तर प्रदेश की काली और हिंडन, आंध्र की मुंसी, दिल्ली में यमुना और महाराष्ट्र की भीमा मिलाकर 10 नदियां सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। हालत यह है कि देश की 27 नदियां नदी के मानक में भी रखने लायक नहीं बची हैं।

वैसे गंगा सहित देश की लगभग सभी नदियां कम या ज्यादा प्रदूषित हैं। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का खामियाजा सबसे ज्यादा नदियों को ही भुगतना पड़ा है। सर्वाधिक पूज्य गंगा-यमुना को हमने इस सीमा तक प्रदूषित कर डाला है कि दोनों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक करीब 15 अरब रुपये खर्च किए जा चुके हैं, फिर भी उनकी हालत पहले से ज्यादा बदतर है। राष्ट्रीय नदी गंगा कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और पटना सहित कई जगहों पर इतनी गंदी है कि उसका जल आचमन लायक भी नहीं है। कानपुर से आगे का जल पित्ताशय के कैंसर और आंत्रशोध जैसी भयंकर बीमारियों का सबब बन गया है। कभी खराब न होने वाले गंगा जल का खास गुण भी अब खत्म होता जा रहा है। दिल्ली के 56 फीसदी लोगों की जीवन-दायिनी, उनकी प्यास बुझाने वाली यमुना नदी आज खुद अपने ही जीवन के लिए जूझ रही है। यमुना को टेम्स बनाने का नारा भी लगा पर यमुना नदी गंदे नाले में बदलती जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने ली सरकार की क्लास


सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गंगा सफाई पर मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगाई। इसके साथ ही पवित्र नदी को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिला
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