सुनीता नारायण

सुनीता नारायण
लोकतंत्र और हमारा पर्यावरण
Posted on 16 May, 2014 02:50 PM
पर्यावरण अभी भी इस देश में मुद्दा इसलिए नहीं है क्योंकि हमारा पर्यावरण के प्रति जो दृष्टिकोण है, वह ही हमारा अपना नहीं है। जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो हमें आर्थिक नीतियों के बारे में सबसे पहले बात करनी होगी। हमें यह देखना होगा कि हम कैसी आर्थिक नीति पर काम कर रहे हैं। अगर हमारी आर्थिक नीतियां ऐसी हैं जो पर्यावरण को अंततः क्षति पहुंचाती हैं तो फिर बिना उन्हें बदले पर्यावरण संरक्षण की बात का कोई खास मतलब नहीं रह जाता है। हमारा लोकतंत्र और हमारा पर्यावरण- दोनों ही ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में एक साथ सोचने का वक्त आ गया है क्योंकि दोनों के सामने एक ही प्रकार की चुनौती है।

हमारा संसदीय लोकतंत्र इंग्लैंड के लोकतंत्र की नकल है जो किसी भी प्रकार से वास्तविक मुद्दों को राष्ट्रीय बनने से रोकता है। मसलन, जर्मनी में न केवल ग्रीन पार्टी की स्थापना होती है बल्कि वह गठबंधन के जरिए सत्ता में भी पहुंच जाती है। वहीं बगल के ब्रिटेन में ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। ब्रिटेन में पिछले चुनावों में ग्रीन पार्टी को ठीक-ठाक वोट मिले थे। लेकिन आज भी ब्रिटेन में उसे कोई महत्त्व नहीं मिलता है। ग्रीन पार्टी की जरूरत तो ब्रिटेन में महसूस की जाती है लेकिन वहां की चुनाव-प्रणाली ऐसी है जो उसे सत्ता तक पहुंचने से रोकती है। जाहिर सी बात है मुद्दे संसद तक सफर कर सकें, यह ब्रिटेन की संसदीय-प्रणाली में अनिवार्य नहीं है।
कैसा भोजन पसंद करेंगे जनाब
Posted on 21 Jul, 2013 08:31 AM
भोजन के माध्यम से कीटनाशकों से संपर्क कई जीर्ण बीमारियों को जन्म देता है। सबसे बढ़िया तरीका तो यह होगा कि हम अपनी थाली को देखें- यह हिसाब लगाएं कि हम क्या और कितना खा रहे हैं- ताकि यह पक्का कर सकें कि कीटनाशकों की सुरक्षित सीमा निर्धारित की जा सके। पोषण प्राप्त करने के लिए हमें थोड़ा जहर तो निगलना होगा मगर इसे स्वीकार्य सीमा में कैसे रखा जा सकता है? इसका मतलब है कि सारे खाद्य पदार्थों के लिए कीटनाशकों के सुरक्षित स्तर के मानक तय करने होंगे। मेरा स्थानीय सब्जीवाला पॉलीथीन की थैलियों में नींबू पैक करके बेचता है। मैं सोचने लगी कि क्या यह खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता के बेहतर मानकों का द्योतक है। आखिर हम जब प्रोसेस्ड फूड की अमीर दुनिया के किसी सुपर मार्केट में जाते हैं, तो नजर आता है कि सारे खाद्य पदार्थ सफाई से पैक किए गए हैं ताकि मनुष्य के हाथ लगने से कोई गंदगी न हो। फिर खाद्य निरीक्षकों की पूरी फौज होती है, जो प्रोसेसिंग कारखाने से लेकर रेस्टोरेंट में परोसे जाने तक हर चीज की जांच करती है। उसूल साफ है: खाद्य सुरक्षा के प्रति जितनी ज्यादा चिंता होगी, क्वालिटी भी उतनी ही अच्छी होगी और परिणाम यह होगा कि इसे लागू करने की कीमत भी उतनी ही ज्यादा होगी। धीरे-धीरे, मगर निश्चित रूप से छोटे उत्पादक बाहर धकेल दिए जाते हैं। भोजन का कारोबार ऐसे ही चलता है। मगर क्या सुरक्षित भोजन का यह मॉडल भारत के लिए ठीक है? यह तो पक्की बात है कि हमें सुरक्षित भोजन चाहिए।
स्वाइन फ़्लू : रास्ता क्या है
Posted on 13 Feb, 2013 11:31 AM
स्वाइन फ़्लू आखिर किन परिस्थितियों में जन्म लेता है? इसका वायरस कहां पैदा हुआ? कैसे यह दुनिया भर में फैलता रहता है?
कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज-सीसीएस : पाप की नई गठरी
Posted on 13 Feb, 2013 10:15 AM
कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज-सीसीएस को जलवायु परिवर्तन दुरुस्त करने के उपकरण के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। नार्वे, जर्मनी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे तेल और कोयले पर निर्भर देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए सीसीएस को अचूक रामबाण दवा मान रहे हैं। इस तकनीक के तहत कार्बन उत्सर्जन को परित्यक्त खदानों, गैस या तेल के खदानों या समुद्र की तलहटी में कार्बन को जमा किया जाएगा। अभी यह सब कुछ
पेस्टीसाइड्स कंपनियों के साथ धंधा करने वाले लोग
Posted on 12 Feb, 2013 12:16 PM
सीएसई द्वारा पेस्टीसाइड्स और जहरीले रसायनों के ऊपर जो अध्ययन जारी है उससे पेस्टीसाइड्स कंपनियों को बहुत बड़ा झटका लगा है। सीएसई द्वारा अपने अध्ययन में पेस्टीसाइड के ज़हरीला साबित होने से पेस्टीसाइड्स कंपनियां सीएसई के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर एनजीओ स्तर के विरोध का सहारा ले रही हैं। पेस्टीसाइड्स से न केवल हमारे शरीर को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इससे हवा, पानी और ज़मीन भी ज़हरीली होती जा र
ग़रीबों का चूल्हा और पर्यावरण
Posted on 12 Feb, 2013 11:20 AM
चूल्हे से निकलने वाला काला कार्बन अब पर्यावरणवादियों की चिंता में आ चुका है। तरह-तरह के नये चूल्हे बनाये जा रहे हैं जिनसे कम कार्बन निकले और खाना बनाने वाले की सेहत भी ठीक रहे। एक समय था जब यह धारणा फैलाई गई कि गरीब लोग खाना बनाने के लिए लकड़ी जलाते हैं और इसी से जंगलों का नुकसान हो रहा है। साथ ही चूल्हे से जो धुआँ और कालिख उठती है उससे महिलाओं में कैंसर का खतरा बढ़ता है। अमीर लोगों द्वारा किया
पर्यावरण आंदोलन की चुनौतियाँ
Posted on 12 Feb, 2013 10:47 AM
एक ओर तो प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की सघनता बढ़ रही है, जिससे अध
परेशान शहर और विकास के सपने
Posted on 12 Feb, 2013 10:31 AM
अपने शहरों के लिए हमें ऐसे विकास मॉडल को अपनाना होगा, जिसके लिए हम
पर्यावरण सुरक्षा व विकास की चुनौतियाँ
Posted on 11 Feb, 2013 11:07 AM
सबसे बड़ी समस्या है कि रेगुलेटरी संस्थाओं के निष्क्रिय हो जाने की स्थिति में, इन लोगों के पास कोई ऐस
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