स्वाइन फ़्लू : रास्ता क्या है

स्वाइन फ़्लू आखिर किन परिस्थितियों में जन्म लेता है? इसका वायरस कहां पैदा हुआ? कैसे यह दुनिया भर में फैलता रहता है? पर स्वाइन फ़्लू के मुख्य जिम्मेदार बड़ी सूअर फार्म कंपनियां ही हैं। स्वाइन फ़्लू का वायरस लगातार मजबूत होता जा रहा है। 1998 में फैले स्वाइन फ्लू का वायरस ट्रिपल हाइब्रिड था यानि पक्षी, इंसान और सूअर के जींस का एक टुकड़ा था। स्वाइन फ्लू के बढ़ते खतरे को बता रही हैं सुनीता नारायण।

कुछ समय पहले जब पूरी दुनिया में बर्ड फ़्लू ने दहशत फैलाई थी तो उसके तार भी पोल्ट्री उद्योग से ही जुड़े पाए गए थे। तब यह आसान था कि सारा आरोप आसमान पर आज़ाद उड़ने वाले पक्षियों पर मढ़ दिया जाए क्योंकि वे अपना बचाव नहीं कर सकते, बजाय इसके कि फार्म में पैदा किए गए पक्षियों को निशाना बनाया जाए।

अभी तक एक बात स्पष्ट है कि स्वाइन फ़्लू का वायरस (एच1एन1) सूअर का गोश्त खाने से नहीं फैलता। लेकिन यह वायरस पैदा कहां से हुआ? उस दुनिया में जहां लोग लगातार हवाई यात्रा करते हुए एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। यह सवाल कभी क्यों नहीं पूछा गया? दुनिया भर के बड़े डॉक्टर आज इसकी वैक्सीन खोजने में लगे हुए हैं, बिना यह जाने कि बरस दर बरस हम ऐसे रोगों के सामने इतने कमजोर क्यों होते जा रहे हैं? इस समस्या में क्या कोई और भी कारण छिपा हुआ है?

हां, इस समस्या का एक कारण है, उस तरीके में है जिससे हम अपने फ़ैक्टरी फार्म्स में अपने खाद्य पदार्थों का उत्पादन करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया का खाद्य उद्योग दुनिया के बैंकिंग उद्योग की तरह से ही काफी बड़ा है और इस पर नियंत्रण काफी मुश्किल है। इसे दुरुस्त किए जाने की जरूरत है। मसलन अब आप स्वाइन फ़्लू को ही लें। हमें पता है कि यह मैक्सिको के एक अनजान से शहर ला ग्लोरिया में पैदा हुआ।

मार्च के महीने में बीमार हुआ एक किशोर इसका पहला शिकार था। इसके बाद यह रोग महामारी बन गया और मैं जब यह लेख लिख रही हूं, दुनिया के 24 देशों में 2,371 लोग इससे बीमार हो चुके हैं और 42 की जान जा चुकी है। मैक्सिको के इस अभिशापित शहर के बारे में यह एक बात नहीं कही गई कि इसके पास ही एक बहुत बड़ी फ़ैक्टरी है। इस फ़ैक्टरी का स्वामित्व दुनिया के सबसे बड़े पिग प्रोफेसर स्मिथफील्ड फूड्स के पास है। एक और बात जो अभी तक सामने नहीं आ सकी है कि इस शहर के लोगों ने फ़ैक्टरी से हो रहे जल प्रदूषण, बदबू और फेंके जा रहे कचरे बार-बार प्रदर्शन किए हैं।

लेकिन कभी कुछ नहीं हुआ। अभी भी कुछ नहीं हो रहा। स्मिथफील्ड ने भी वही किया, जो ऐसे मौके पर सारी बड़ी कंपनियां करती हैं। उसने अपने वैज्ञानिक तौर-तरीकों के दावे पेश किए, यह कहा कि उनके यहां हर चीज का परीक्षण होता है और उनकी जांच के हिसाब से सब कुछ ठीक है।

दिलचस्प बात यह है कि द गाजिर्यन की विशेष संवाददाता फैलीसिटी लारेंस ने जब उनसे परीक्षणों की रिपोर्ट मांगी तो रिपोर्ट के बजाय कंपनी का एक सामान्य सा जवाब मिला, ‘यह सब आधारहीन बातें हैं और इंटरनेट पर उड़ाई जा रही बेलगाम अफ़वाहों का नतीजा’। इसके बाद खाद्य पदार्थों का व्यवसाय करने वाली सभी कंपनियों ने मिलकर विश्व स्वास्थ संगठन पर यह दबाव डाला कि वह लोगों को पोर्क खाना बंद न करने के लिए कहे। यानी उनका व्यापार पहले की तरह ही जारी है।

लारेंस ने आगे पता लगाया कि मामला सिर्फ मैक्सिको की इस फ़ैक्टरी तक ही सीमित नहीं है। मसलन अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के वायरस वैज्ञानिकों ने जब इस वायरस के जेनेटिक फिंगरप्रिंट की जांच की तो उन्हें पता लगा यह तो वही वायरस है जो उत्तरी कैरोलिना के एक बड़े पिग फार्म पर मिला था। अमेरिका के इस राज्य में सुअरों की संख्या सबसे ज्यादा है। शायद इसी भारी संख्या की वजह से यह हुआ कि वायरस लगातार बहुत तेजी से विकसित होता गया।

अमेरिका के मशहूर कैनेडी के बेटे रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर ने इसी जहरीले उद्योग को समझने की कोशिश की। यह बताने के लिए जब उन्होंने क्राइम अगेंस्ट नेचर नाम का अपना पर्चा पेश किया था तो पोर्क प्रोड्यूसर्स कौंसिल ने उनके और उनके संगठन वाटरकीपर एलायंस के खिलाफ भारी अभियान चलाया। यह दस्तावेज़ खाद्य फ़ैक्टरियों से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के नियमन के लिए था। कैनेडी उत्तरी कैरोलिना की नेयूज नदी के मछुवारों की ओर से बोल रहे थे। 1991 में रहस्यमयी फिस्टेरिया रोग की वजह से नदी की मछलियाँ मर गई थीं और इन मछुवारों की रोजी छिन गई थी।

इस पर जब शोध हुआ तो शक की सुई मीट फ़ैक्टरी की तरफ गई। ये फ़ैक्टरियां अपना करोड़ों लीटर कचरा इन नदियों में बहाती थीं। कचरे में हैवी मैटल भी होते थे, एंटीबॉयोटिक भी, हारमोन भी, खतरनाक बॉयोसाइड भी, वायरस और माइक्रोब भी। कैनेडी ने लिखा कि इन फ़ैक्टरियों में असीम ताकत है। उन्होंने प्रशासन पर दबाव डालकर मिसोरी और इलिनोइस में इनके फार्म के जानवरों की तस्वीर खींचना ग़ैरक़ानूनी बना दिया था।

13 राज्यों में ऐसा कानून था, जो लोगों को इन फ़ैक्टरियों के खाद्य पदार्थों की आलोचना करने से रोकता था। 2001 में कहीं जाकर अमेरिकी अदालत ने यह फैसला दिया कि पिग बाकी किसी फ़ैक्टरी से अलग नहीं है और अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी से यह कहा गया कि वह इनके लिए मानक तैयार करे। नए मानकों के अनुसार पिग फ़ैक्टरी को अपने कचरे का निपटान खुद ही करना होगा। लेकिन इन फ़ैक्टरियों से किसानों से इस ढंग से ठेके किए कि उत्पाद की तो वे मालिक थीं लेकिन कचरे की नहीं, उसकी ज़िम्मेदारी स्थानीय किसानों पर थी।

ये कंपनियां जिस बड़े पैमाने पर कारोबार करती हैं और उनकी जो ताकत है, वही सबसे ज्यादा चिंता का विषय है। 2006 में स्मिथफील्ड ने 2.6 करोड़ पिग काटे और उसका कारोबार 11.4 अरब डॉलर का रहा। जिसमें 50 करोड़ डॉलर तो उसका शुद्ध मुनाफा ही था। पिछले हफ्ते द न्यूयार्क टाइम्स ने यह बताया कि इसी कंपनी ने कैसे सब्सिडी और राजनय का इस्तेमाल करके रोमानिया और पोलैंड के बड़े पिग फार्म का अधिग्रहण कर लिया।

कुछ समय पहले जब पूरी दुनिया में बर्ड फ़्लू ने दहशत फैलाई थी तो उसके तार भी पोल्ट्री उद्योग से ही जुड़े पाए गए थे। तब यह आसान था कि सारा आरोप आसमान पर आज़ाद उड़ने वाले पक्षियों पर मढ़ दिया जाए क्योंकि वे अपना बचाव नहीं कर सकते, बजाय इसके कि फार्म में पैदा किए गए पक्षियों को निशाना बनाया जाए।

स्वाइन फ़्लू का वायरस काफी तेजी से विकसित हो रहा है। 1998 में जब पहली बार उत्तरी कैरोलिना में स्वाइन फ़्लू फैला था तो उसका वायरस ट्रिपल हाईब्रिड था। उसमें पक्षी, इंसान और सूअर के जींस का एक एक टुकड़ा था और यह आपस में पूरी तरह जुड़ी हुई दुनिया के पिग समुदाय में तेजी से फैल गया था। लेकिन इस साल मार्च के आस-पास यह किसी इंसान में सामान्य फ़्लू वायरस के साथ मिल गया और जो हाईब्रिड तैयार हुआ, वह मानव और पशु दोनों के लिए ही घातक है। कुछ लोग मानते हैं कि अभी तो फिर भी गनीमत है, इसका असली घातक रूप तो आने वाले समय में दिखाई देगा।

लेखिका सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की निदेशक हैं
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