शिरीष खरे
शिरीष खरे
छत्तीसगढ़ में फ्लोराइड से अब 574 गाँव संकट में
Posted on 23 May, 2015 09:55 AMकेन्द्र ने किया तलब, कहा- बनाओ कार्ययोजना, पिलाओं साफ पानी
बारिश की मार से बेअसर रहे बैगाओं के बीज
Posted on 08 May, 2015 11:19 AMमध्य प्रदेश के बैगा बेल्ट में पचास प्रजातियों के बीज से किसानों की मुस्कुराहट बरकरारराजस्थान की गंगा चम्बल को भी नहीं मिल रहा है सम्बल
Posted on 05 May, 2015 03:13 PMगंगा सफाई अभियान के तहत इसकी मुख्य सहायक नदी चम्बल को भी अभियान में शामिल किया गया है, लिहाजा करोड़ो लोगों की प्यास बुझाने वाली इस नदी में होने वाले इंसानी दखलअन्दाजी पर गौर करने का वक्त आ गया है।बंजर पहाड़ी तक पहुँचाया पानी और उगा दिए जंगल
Posted on 04 May, 2015 11:31 AMकहीं सूबे की राजधानी तो कहीं आदिवासी अंचलों में पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं की जीवटता बनी मिसाल।सात साल पहले शुरू हुई यह कोशिश अब हरियाली चादर बनकर साफ़ दिख रही है। तब से यहाँ नीम के अलावा कई नए पौधे लग रहे हैं और उनके लिये खाद, पानी, दीमक ट्रीटमेंट और खरपतवार का काम लगातार जारी है। इन सालों में यहाँ हरियाली ही नहीं दिखती है, बल्कि मोर, तोता और कोयल की आवाजों को भी सुना जा सकता है। जीवों को फलदार घर मिल गए हैं। पहले सुरक्षा न होने से कई पेड़ जल गए थे, पर अब ऐसा नहीं है।
इंसान जहाँ अपने लालच के लिये पानी तक को लूट रहा है और उस पर रहने वाले जंगल, जमीन और जानवरों को भी नहीं छोड़ रहा है, वहीं कई बड़े शहरों और सुदूर गाँवों में ऐसे लोग आज भी हैं जो पानी के जरिए एक सुन्दर संसार को बनाने और उसकी रखवाली में लगे हुए हैं।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक पर्यावरणप्रेमी की जिद बंजर पहाड़ी पर जंगल उगा रही है, वहीं रतलाम जिला मुख्यालय से कई कोस दूर जनजाति बाहुल्य गाँवों में सामूहिक प्रयासों से बंजर ज़मीन इस हद तक हरी बन रही है कि यहाँ पचास हजार से ज्यादा आम के पेड़ लोगों की आजीविका का बड़ा सहारा बन गए हैं। जाहिर है उन्होंने पानी से न केवल जंगल, जमीन और जानवरों को खुशहाल बनाया, बल्कि जल से जीवन के सिद्धान्त को अपनी जीवन शैली में उतारा।
लालच, अनियमितता और एक नदी की लूट
Posted on 19 Apr, 2015 04:45 PMजयपुर। 1727 में बसा यह शहर बनावट की दृष्टि से दुनिया के सुनियोजित शहरों में अहम स्थान रखता था। यह शहर पारिस्थितिकी विज्ञान के अनुरूप बहुत बढ़िया ढंग से बसाया गया था। शहर के उत्तरी तरफ नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर कभी घने जंगल होने से मिट्टी का कटाव नहीं होता था। इन्हीं पहाड़ियों की तलहटी में आथुनी कुण्ड से एक नदी बहा करती थी, जिसकी धारा दक्षिण की ओर मोड़ खाती हुई ढूढ़ नदी और ढूढ़ नदी राजस्थान की मुख्य नदी बनास में मिल जाती थी।इसी जलधारा को इतिहासकारों ने द्रव्यवती नदी कहा है। यह 50 किलोमीटर लम्बी नदी थी, जो कालान्तर में पहाड़ियों के नंगे होने के चलते छोटी होती गई। बाद में इसके किनारे अमानीशाह नाम के फकीर की मजार बनी तो द्रव्यवती नदी अमानीशाह नाला कहलाने लगी। द्रव्यवती उर्फ अमानीशाह का यही नाला जयपुर के पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत रहा है।
नर्मदा को निचोड़ने की नादानी
Posted on 04 Aug, 2014 09:55 AMनदी-जोड़ योजना का एक आम सिद्धांत है कि किसी दानदाता नदी का पानी ग्रनर्मदा के पानी को लेकर कलह
Posted on 21 Feb, 2013 05:27 PMनर्मदा के पानी के बँटवारे को लेकर गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच खींचतान शुरू हो चुकी है। दोनों राज्यों की कोशिश है कि नर्मदा का ज्यादा-से-ज्यादा पानी वे इस्तेमाल करें। गुजरात के कई इलाकों में नर्मदा के पानी को पहुंच जाने की वजह से वर्तमान सरकार को काफी राजनीतिक लाभ मिला है। पानी से राजनीतिक लाभ की मंशा में शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के कई सूखे इलाकों में नर्मदा का पानी ले जाना चाहते हैं। नर्मनर्मदा बचाओ आंदोलन का जल सत्याग्रह
Posted on 20 Sep, 2012 04:19 PMनर्मदा बचाओ आंदोलन का यह 26वां साल है। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघलगांव में हुआ जल सत्याग्रह नर्मदा बचाओ आंदोलन को नया खाद-पानी दे गया। मीडिया और आम लोगों के बीच इस बार के जल सत्याग्रह को काफी जगह मिली और लोगों की सहानुभूति जल सत्याग्रह को मिला। पूरी तरह अहिंसक और अपनी जमीन पर चला यह सत्याग्रह हिंसक आंदोलनों के लिए नसीहत बनकर उभरा और अहिंसक संघर्षों को ताकत दे गया। हालांकि म.प्र. सरकार के वादों की असलियत तो बाद में ही पता चलेगी फिर भी इस आंदोलन की सफलता अहिंसक लोकतांत्रिक हथियार को धारदार कर गया, बता रहे हैं शिरीष खरे।पिछले कुछ महीनों के दौरान देश में अन्ना आंदोलन से लेकर परमाणु संयंत्र विरोध और जमीन अधिग्रहण जैसे मसलों पर तमाम आंदोलन हुए लेकिन जैसी कामयाबी जल सत्याग्रह के हिस्से में आई वैसा उदाहरण कोई दूसरा देखने को नहीं मिला। ऐसे में यह सवाल सहज ही उठ रहा है कि क्या इस जल सत्याग्रह ने कई दिनों से सुसुप्त-से दिख रहे अपने मातृआंदोलन- नर्मदा बचाओ आंदोलन में नई जान डाल दी है। पिछले दिनों जल सत्याग्रह के चलते मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का घोघलगांव सुर्खियों में आया और उसी के साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन भी। नर्मदा घाटी में जल सत्याग्रह का तरीका नया नहीं है। 1991 में मणिबेली (महाराष्ट्र) का सत्याग्रह जल समाधि की घोषणा के साथ ही चर्चा में आया था। तब से कई जल सत्याग्रह हुए। लेकिन इस बार का जल सत्याग्रह अपनी लंबी समयावधि और मीडिया में मिली चर्चा की वजह से बहुत अलग रहा।