शिरीष खरे

शिरीष खरे
नर्मदा के बेटे हो गए लुटेरे
Posted on 07 Jul, 2012 09:54 AM

‘नमामि देवि नर्मदे’ मेकलसुता महीयसी नर्मदा को रेवा नाम से भी जाना जाता है। नर्मदा प्राचीन संस्कृति की नैहर ही नहीं है, बल्कि वह दक्षिण भारत और उत्तर भारत, द्रविड़ संस्कृति और आर्य संस्कृति को जोड़नेवाली एक कड़ी भी है। यही नहीं, हमारे आदिवासी भाइयों की संस्कृति भी इसी के आसपास विकसित हुई है। नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है। यह पश्चिमी भारत की सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा को गरीबो

narmada river
जल-संसाधनों से खिलवाड़ या पानी के बाजारीकरण की मनमानी?
Posted on 27 Mar, 2012 12:47 PM

राजस्थान के कई शहरों में लोगों को 24 घंटे पानी देने की तैयारी की जा रही है। मगर कहने में अच्छी लगने वाली यह योजना कार्यान्वयन के स्तर पर खामियों से भरी है।

 

कुल दो लाख 15 हजार की आबादी वाले खंडवा में कंपनी को अपना संचालन खर्च निकालने के लिए सिर्फ 174. 7 करोड़ लीटर प्रतिदिन जलापूर्ति करनी है। यानी खंडवा के हर नागरिक के हिस्से में 81 लीटर प्रतिदिन ही पानी आना है और यह सरकारी मानक 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से काफी कम है। इसी तरह, नागपुर में जल कनेक्शन शुल्क तो 300 रुपये ही रखा गया है लेकिन उसके साथ विओलिया कंपनी घर तक लाइन बिछाने, मीटर, कनेक्शन सामग्री के अलावा सड़क की खुदाई और प्लंबर का खर्च भी कनेक्शनधारियों से ही ले रही है।

खबर 24X7। बैंकिंग 24X7। पिज्जा 24X7। और अब इसी तर्ज पर राजस्थान के कई शहरों में 24 घंटे और सातों दिन पानी पिलाने का दावा किया जा रहा है। यह दावा राज्य सरकार के उस जलदाय विभाग का है जो आज तक लोगों को 24 घंटे में से बामुश्किल दो घंटे भी पानी नहीं पिला पाया। विभाग की मानें तो उसने पीपीपी यानी जन-निजी साझेदारी के जरिए 24 घंटे पानी पिलाने के लिए कमर कस ली है। मगर तहलका की पड़ताल बताती है कि विभाग ने अपनी कमर जनता का पानी कंपनियों के हाथ सौंपने के लिए कसी है। असल में राजस्थान की मरु धरा पर धाराप्रवाह पानी पिलाने की तस्वीर दिखाना कुछ और नहीं बल्कि 24 घंटे पानी पर मनमानी का रास्ता साफ करने की एक कवायद है। उन कंपनियों के लिए जिन्हें इसका ठेका मिलेगा। देश के भीतर 24 घंटे जलापूर्ति के सपने गिने-चुने शहरों में ही दिखाए गए हैं।

water tapping
सूखे के लिए तैयार परियोजना की अकाल मौत
Posted on 17 Oct, 2009 10:13 AM


बाड़मेर। ‘‘यह बारिश नहीं बरसेगी। कहीं और जाकर बरसेगी। शायद बाड़मेर, शायद जोधपुर, जयपुर, या उससे भी आगे दिल्ली। बारिश, फिर दगा दे गई।’’

अकाल पर सुकाल का टांका
Posted on 28 Aug, 2009 05:15 PM


पश्चिमी राजस्थान के थार में बीते सालों के मुकाबले इस साल सूखे की छाया ज्यादा काली है। इसके बावजूद गीले रहने की परंपरागत कलाओं से तरबतर कुछ गांवों में पानी की कुल मांग में से 40 प्रतिशत तक फसल उगाने की जुगत जारी है। बायतु, बाड़मेर से सुखद समाचार लेकर लौटे शिरीष खरे की रिपोर्ट -

थार का अकाल
Posted on 25 Aug, 2009 04:00 PM

थार में फिर अकाल के हालात बन पड़े हैं- इस समय की सबसे खतरनाक पंक्ति को सवाल की तरह कहा जाना चाहिए. दरअसल अकाल को बरसात से जोड़कर देखा जाता है और राजस्थान के अकालग्रस्त जिलों से लेकर जयपुर या दिल्ली तक नेताओं, अफसरों और जनता के बड़े तबके तक यही समझ बनी हुई है. कुछ तो जानबूझकर और कुछ मजबूरी में.
नर्मदा की जीवनशाला
Posted on 06 Dec, 2010 01:14 PM

सरदार सरोवर का सबक
Posted on 12 Apr, 2010 08:29 AM

यह सच है कि सरदार सरोवर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है, जो 800 मीटर नदी में बनी अहम परियोजना है। सरकार कहती है कि वह इससे पर्याप्त पानी और बिजली मुहैया कराएगी। मगर सवाल है कि भारी समय और धन की बर्बादी के बाद वह अब तक कुल कितना पानी और कितनी बिजली पैदा कर सकी है और क्या जिन शर्तों के आधार पर बांध को मंजूरी दी गई थी वह शर्तें भी अब तक पूरी हो सकी हैं ?
अकाल - सुकाल के बीच हलकान
Posted on 30 Aug, 2009 09:23 AM

4 फरवरी को जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बाड़मेर आए तो उन्होंने अफसरों को सीधे शब्दों में कह दिया कि संवेदनशील, पारदर्शी और स्वच्छ प्रशासन सरकार की पहली मंशा है। इसके बाद अनियमितता में डूबे विभागों ने मुख्यमंत्री जी के कथन को जिस ढ़ंग से उड़ाया उसका एक रंग है यह।
लिख रहे हैं लेखनी अकाल के कपाल पर
Posted on 20 Aug, 2009 03:16 PM

लापोड़िया गांव, जयपुर से 80 किलोमीटर दूर है। ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल’ के लक्ष्मणसिंह और उनके साथियों ने चौका व्यवस्था को यही तैयार किया था। इसके बाद इन्होंने जयपुर से दिल्ली तक बहुत से सम्मान पाए। लेकिन दूसरा पहलू यह है कि इस इलाके में सैकड़ों गांवों के अनगिनत समूह आज यहां से बनाए रास्ते से गुजरकर सालभर का चारा-पानी बचाना चाहते हैं।
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