रेणुका का मतलब है रेत। उसके शाप से कौन सी नदी सूख नहीं जायेगी? गया की नदी फल्गु भी इस तरह अंतःस्रोता हो गई हैं न! फिर वढबाण के पास की भोगावो भी ऐसी क्यों न हो? सौराष्ट्र में भोगावो (बरसात के बाद सूखने वाली नदियां) बहुत हैं। क्या हरेक को किसी न किसी राणकदेवी का शाप लगा होगा? शेत्रुंजी, भादर, मच्छु, आजी, रंगमती, मेगल-चारों दिशाओं में बहने वाली इन नदियों में कितनी नदियां ऐसी हैं, जिनमें बारह मास पानी बहता हो? खंडस्थ भारतवर्ष से सौराष्ट्र (काठियावाड़) अनेक प्रकार से अलग मालूम होता है। उसका आकार भी कितना है! चोटीला या बरड़ा, शेत्रुंजा या गिरनार पर्वत भला पानी देगा भी तो कितना देगा? और उनकी लड़कियां भी खींच-खींचकर आखिर कितना पानी लायेंगी? नीलगिरि और सह्याद्रि, सतपुड़ा और विंध्याद्रि, हिन्दूकुश और हिमालय, नागा, खासी और ब्रह्मी योमा जैसे समर्थ पर्वतराजा को ही बादलों का मुख्य करभार मिलता है। उनकी लड़कियां गौरव से कैसी अलस-लुलित होकर चलती हैं! उनके मुकाबले में बेचारी काठियावाड़ी नदियां क्या हैं? पानी बरसा कि बहने लगीं। बरसात बंद हुई की असमंजस में पड़कर सूख गई।
हरेक नदी ने एक-दो शहरों को आश्रय दिया है। भोगावो के कारण बढवाण (अब सुरेन्द्रनगर) की शोभा है। राणकदेवी का शाप अगर न लगा होता तो इस नदी का मुख कितना उज्वल मालूम होता! अंत्यजों का शाप लेकर आगे के लोग भविष्य में उसकी क्या दशा करने वाले हैं। शेत्रुंजी की वक्रता देखनी हो तो उसके वीर (भाई) के शिखर पर से देख लीजिये। कुंदन के समान पीली घास उगी हुई है, दूर-दूर तक गालीचों के समान खेत फैले हुए हैं और बीच में शेत्रुंजी धीमे-धीमे अपना रास्ता काटती जा रही है। शेत्रुंजी की यह चाल संस्कारी और चित्ताकर्षक है।
और मेगल का नाम मेगल (= मयगल?) क्यों पड़ा होगा? क्या देवधरा में किसी मगर ने किसी हाथी को पकड़ रखा होगा इसलिए? या समुद्र और उसके बीच आने वाले ऊंचे सिकता-पट पर वह सिर पटकती है इसलिए? समुद्र से मिलने का हक तो हरेक नदी को है ही। किन्तु बेचारी मेगल के भाग्य में साल में आठ महीनों तक खंडिता की तरह अपने पति के दूर से ही दर्शन करना बदा है। वर्षा ऋतु में जब समुद्र से भी रहा नहीं जाता तभी इन दोनों का संगम होता है। चोरवाड़ के लोगों को इस संगम पर ही स्मशान बनाने की क्यों सूझी होगी? या कैसे कह सकते हैं कि इसमें भी औचित्य नहीं है? स्मशान भी तो इहलोक और परलोक का संगम ही है न!
भादर ही एक ऐसी नदी है, जिसके लिए काठियावाड़ गर्व कर सकता है। भादर का असली नाम क्या होगा? भाद्रपदी या भद्रावती? बहादुर तो हरगिज नहीं होगा। इस नदी की प्रतिष्ठा बहुत है। जेतपुर, नवागढ़ और नवीबंदर जैसे स्थान उसके तट पर खड़े हैं। नवीबंदर जब बसा होगा तब उसको ‘नवी’ (=नयी) नाम देने वाले पुरुषों के दिल में कितनी आकांक्षा, कितना उत्साह होगा। पोरबंदर से भी यह श्रेष्ठ होगा, बड़े-बड़े जहाज दूर-दूर के देशों का माल देश के अंदर पहुंचायेंगे। दैव यदि अनुकूल होता तो क्या भादर टेम्स नदी की प्रतिष्ठा न पाती? किन्तु नदी की प्रतिष्ठा तो उसके पुत्रों के पुरुषार्थ पर निर्भर हैं। आज भादर को हिन्दुस्तान की पश्चिम-वाहिनी नदियों का नेतृत्व मिला है यही काफी है।
रंगमती, आजी और मच्छु नदियां चाहे जितनी परोपकारी हों और नवानगर, राजकोट और मोरबी के वैभव को वे भले अखंड रूप में निहारती हों, फिर भी उन्हें सागर को छोड़कर छोटे अखात को ही ब्याहना पड़ा है।
काठियावाड़ की इन सब नदियों ने देशी रियासयों की करतूतों को तथा प्रपंचों को पुराने जमाने से देखा होगा। मगर काठियावाड़ के भिन्न-भिन्न विभागों के विशिष्ट रीति-रिवाजों का दर्शन यदि वे हमें करा दें तो वह कथा रोचक जरूर होगी।
सौराष्ट्र की नदियों का पानी पीने वाले किसी पुत्र का यह काम है कि वह इन नदियों के मुंह से उनका अपना-अपना अनुभव सुनवावे।
1926-27
हरेक नदी ने एक-दो शहरों को आश्रय दिया है। भोगावो के कारण बढवाण (अब सुरेन्द्रनगर) की शोभा है। राणकदेवी का शाप अगर न लगा होता तो इस नदी का मुख कितना उज्वल मालूम होता! अंत्यजों का शाप लेकर आगे के लोग भविष्य में उसकी क्या दशा करने वाले हैं। शेत्रुंजी की वक्रता देखनी हो तो उसके वीर (भाई) के शिखर पर से देख लीजिये। कुंदन के समान पीली घास उगी हुई है, दूर-दूर तक गालीचों के समान खेत फैले हुए हैं और बीच में शेत्रुंजी धीमे-धीमे अपना रास्ता काटती जा रही है। शेत्रुंजी की यह चाल संस्कारी और चित्ताकर्षक है।
और मेगल का नाम मेगल (= मयगल?) क्यों पड़ा होगा? क्या देवधरा में किसी मगर ने किसी हाथी को पकड़ रखा होगा इसलिए? या समुद्र और उसके बीच आने वाले ऊंचे सिकता-पट पर वह सिर पटकती है इसलिए? समुद्र से मिलने का हक तो हरेक नदी को है ही। किन्तु बेचारी मेगल के भाग्य में साल में आठ महीनों तक खंडिता की तरह अपने पति के दूर से ही दर्शन करना बदा है। वर्षा ऋतु में जब समुद्र से भी रहा नहीं जाता तभी इन दोनों का संगम होता है। चोरवाड़ के लोगों को इस संगम पर ही स्मशान बनाने की क्यों सूझी होगी? या कैसे कह सकते हैं कि इसमें भी औचित्य नहीं है? स्मशान भी तो इहलोक और परलोक का संगम ही है न!
भादर ही एक ऐसी नदी है, जिसके लिए काठियावाड़ गर्व कर सकता है। भादर का असली नाम क्या होगा? भाद्रपदी या भद्रावती? बहादुर तो हरगिज नहीं होगा। इस नदी की प्रतिष्ठा बहुत है। जेतपुर, नवागढ़ और नवीबंदर जैसे स्थान उसके तट पर खड़े हैं। नवीबंदर जब बसा होगा तब उसको ‘नवी’ (=नयी) नाम देने वाले पुरुषों के दिल में कितनी आकांक्षा, कितना उत्साह होगा। पोरबंदर से भी यह श्रेष्ठ होगा, बड़े-बड़े जहाज दूर-दूर के देशों का माल देश के अंदर पहुंचायेंगे। दैव यदि अनुकूल होता तो क्या भादर टेम्स नदी की प्रतिष्ठा न पाती? किन्तु नदी की प्रतिष्ठा तो उसके पुत्रों के पुरुषार्थ पर निर्भर हैं। आज भादर को हिन्दुस्तान की पश्चिम-वाहिनी नदियों का नेतृत्व मिला है यही काफी है।
रंगमती, आजी और मच्छु नदियां चाहे जितनी परोपकारी हों और नवानगर, राजकोट और मोरबी के वैभव को वे भले अखंड रूप में निहारती हों, फिर भी उन्हें सागर को छोड़कर छोटे अखात को ही ब्याहना पड़ा है।
काठियावाड़ की इन सब नदियों ने देशी रियासयों की करतूतों को तथा प्रपंचों को पुराने जमाने से देखा होगा। मगर काठियावाड़ के भिन्न-भिन्न विभागों के विशिष्ट रीति-रिवाजों का दर्शन यदि वे हमें करा दें तो वह कथा रोचक जरूर होगी।
सौराष्ट्र की नदियों का पानी पीने वाले किसी पुत्र का यह काम है कि वह इन नदियों के मुंह से उनका अपना-अपना अनुभव सुनवावे।
1926-27
Path Alias
/articles/raenaukaa-kaa-saapa
Post By: Hindi