गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप

गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप
जलवायु परिवर्तन
Posted on 06 Apr, 2013 09:40 AM
भारत के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि यहां की कृषि अधिकांशतः मानसून आधारित है। लिहाजा मौसम में हो रहे बद
मैनुअल की आवश्यकता व उद्देश्य
Posted on 05 Apr, 2013 04:05 PM
समस्याएं तो विकट हैं और नुकसान भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। इन स्थितियों से निपटने हेतु स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप तकनीक विकसित की गई है। जिनका प्रसार एक सीमित क्षेत्र तक ही होता है। इसे बड़े पैमाने पर प्रसारित करने की आवश्यकता के मद्देनज़र यह संकलन है।
तालाबों, सरोवरों पर से कब्ज़ा हटवाकर किया जल संकट का समाधान
Posted on 05 Apr, 2013 03:31 PM
सूखे की समस्या तालाबों, बावड़ियों के पटते जाने से और विकराल हुई, पर मुख्य बात यह थी कि इसे रोकने के लिए पहल कौन करे, क्योंकि सबके हित कहीं न कहीं सध रहे थे। ऐसे में एक शिक्षा मित्र ने इसकी अगुवाई कर स्थानीय प्रशासन व सरकार से लड़ाई मोल लेकर नवीन पहल की।

संदर्भ

ओमप्रकाश द्वारा कब्जा मुक्त कराया गया तालाब
सामूहिक प्रयास से बंधी निर्माण
Posted on 05 Apr, 2013 11:47 AM
समाज की मुख्य धारा से कटे आदिवासी भुईया जाति के 55 परिवारों ने स्वयं के प्रयास से बसनीया नाला पर बंधी निर्माण किया और अपनी सिंचाई की समस्या हल की।

संदर्भ


ऊँचे पहाड़ व उबड़-खाबड़ ज़मीन पर खेती करने वालों के लिए सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की होती है। यहां पर रहने वालों के लिए जितना मुश्किल पानी संग्रह करना होता है, उससे अधिक मुश्किल पानी का उपयोग करना होता है। कुछ ऐसी ही स्थिति सोनभद्र जिले के दुद्धी विकासखंड अंतर्गत कलिंजर ग्राम सभा की है। बसनीया नाला के दोनों तरफ उबड़-खाबड़ जमीनों पर स्थित ग्राम सभा कलिंजर में 55 आदिवासी परिवार भुईया जाति के रहते हैं। ये भूमिहीन आदिवासी परिवार पूर्वजों से ही धारा-20 के अंतर्गत पट्टा की भूमि पर रहते हैं, खेती करते हैं। विडम्बना ही है कि बरसों बीत जाने के बाद भी जमीनों का हक इनको नहीं मिल पाया है। कुछ तो इनकी अज्ञानता और कुछ सरकारी उपेक्षा ने इन्हें भूमिहीनों की कतार में खड़ा किया है।
जल स्तर को ऊंचा करने का स्वयं का प्रयास
Posted on 05 Apr, 2013 10:41 AM
बगल में नदी होते हुए भी गर्मियों में सूखा की स्थिति झेलने वाले जनपद सोनभद्र के गांव बीडर के लोगों ने स्वयं के प्रयास से कुएँ, तालाबों की खुदाई की और जल स्तर बढ़ाने का स्व प्रयास किया।

संदर्भ


पहाड़ों से घिरी गहरी बावनझरिया नदी के समीप अवस्थित ग्राम सभा बीडर जनपद सोनभद्र के विकास खंड दुद्दी का एक गांव है। इस गांव की विडम्बना यह है कि 200-300 मीटर की ढलान के बाद 15 मीटर गहरी नदी (जिसमें वर्ष भर पानी रहता है। बगल में होने के बावजूद गांव सूखा की परिस्थितियों को झेलता है।

जनपद सोनभद्र की आजीविका का मुख्य साधन खेती, खेती आधारित मजदूरी है। यहां पर वर्षा आधारित खेती होने के कारण वर्षा न होने की स्थिति में लोगों के खेत सूखे रहते हैं। नतीजतन लोगों की आजीविका एवं उसके साथ-साथ उनका जीवन-यापन बहुत मुश्किल हो जाता है।
भूमि समतलीकरण
Posted on 04 Apr, 2013 03:43 PM
ऊंची नीची भूमि के कारण खेतों से बहुत सा पानी बेकार बह जाता है, जिसने सूखे विंध्य को और सूखा बनाया। तब लोगों ने भूमि समतलीकरण की तकनीक अपनाकर सूखे से मुकाबला प्रारम्भ किया।

संदर्भ


भूमि समतलीकरण से आशय है ऊंची-नीची ज़मीन को बराबर करके उसकी मेंड़ को बांधना ताकि ज़मीन की उर्वरा शक्ति एवं जल धारण क्षमता बढ़े। भूमि एवं जल प्रबंधन की यह एक पुरानी व कारगर परंपरा है, जो खेती के आधुनिक दौर में बहुत प्रचलन में नहीं है। परंतु आज जब पानी की एक-एक बूंद महत्वपूर्ण है, इस परंपरा को पुनः प्रचलन में लाना अति आवश्यक हो गया है और इसी दिशा में प्रयास करते हुए इसे प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
सामुदायिक तालाब पुनः निर्माण एवं नाला सफाई हेतु जन प्रयास
Posted on 04 Apr, 2013 03:19 PM
सूखा की परिस्थितियां उत्पन्न करने में प्रकृति ने तो भूमिका निभाई ही, मनुष्यों ने जल संसाधनों पर अवैध कब्ज़ा करके रही सही कसर पूरी की। इससे प्रभावित लघु सीमांत किसानों ने स्वयं के स्तर पर पहल व प्रयास करते हुए नालों तालाबों की सफाई व गहरीकरण किया।

संदर्भ


बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी जनपदों की संस्कृति में नदी-नाले, पहाड़, जंगल, उबड़-खाबड़, पथरीली एवं ऊंची-नीची ज़मीन देखने को मिलती है। यहां पर बसे सभी गाँवों में 3-4 तालाबों का होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। इन्हीं से लोगों की रोजी-रोटी चलती थी। विगत 15-20 वर्षों से यहां पर लगातार पेड़ों की कटाई, बालू खनन, पत्थर खनन एवं भूगर्भ जल संतुलन के अंधाधुंध उपयोग एवं तालाबों व छोटे-छोटे नालों के भर जाने की वजह से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना शुरू हुआ, जिससे सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं इस क्षेत्र में बढ़ने लगी।
परंपरागत जल संसाधनों का संरक्षण
Posted on 04 Apr, 2013 09:18 AM
जब सूखा पड़ा तो लोगों को अपने परंपरागत जल संसाधनों की याद आई और उन्होंने अपने यहां बंद पड़े कुओं की सफाई का काम कर न सिर्फ तात्कालिक तौर पर जल हासिल किया वरन दूरगामी परिणाम के रूप में गांव का जल स्तर भी बढ़ा।

संदर्भ


बुंदेलखंड में चार-पांच वर्षों की अनियमित तथा कम होने वाली वर्षा के कारण अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न होने के पीछे सिर्फ प्राकृतिक कारक ही नहीं जिम्मेदार थे। मानवीय हस्तक्षेपों ने इस स्थिति को और भी भयावह बना दिया जब जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोतों को मानव बंद करना प्रारम्भ कर दिया। बुंदेलखंड सदैव से ही कम पानी वाला क्षेत्र रहा है, परंतु वहां पर जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोत जैसे कुएँ, तालाब आदि इतने अधिक थे कि पानी की कमी बहुत अधिक नहीं खलती थी। धीरे-धीरे विकासानुक्रम में लोगों ने इन कुओं, तालाबों को पाटना शुरू कर दिया। कहीं तो पाटने की यह क्रिया नियोजित थी और कहीं पर समुचित देख-रेख के अभाव में ये मूल स्रोत स्वयं ही पटने लगे और स्थिति की भयावहता बढ़ने लगी। जनपद हमीरपुर के विकास खंड सुमेरपुर के गांव इंगोहटा एवं मौदहा विकास खंड के ग्राम अरतरा, मकरांव, पाटनपूर में लोगों को इन्हीं स्थितियों का सामना करना पड़ा। तब लोगों की चेतना जगी कि यदि हम अपने परंपरागत काम को सुचारु रखते और समय-समय पर उनकी देख-भाल करते तो स्थिति इतनी न बिगड़ती और तब उन्होंने तालाबों, कुओं की खुदाई व गहराई का काम करना प्रारम्भ कर दिया।
जल संरक्षण से सूखे का मुकाबला
Posted on 03 Apr, 2013 12:43 PM
सूखे की स्थितियों से निपटने के लिए समुदाय की सामूहिक रणनीति के तहत जल संरक्षण की गतिविधि बेहतर साबित हुई जिससे न सिर्फ सिंचाई की समस्या हल हुई वरन भयंकर गर्मी में पशुओं की प्यास भी बुझी।

संदर्भ


जनपद महोबा के विकास खंड कबरई में अत्यंत पिछड़ा व दुर्गम रास्ते वाला गांव चकरिया नाला के दोनों तरफ बसा हुआ है। जिला मुख्यालय व महोबा कानपुर रोड से लगभग 7 किमी. की दूरी पर उत्तर व पश्चिम के बीच यह गांव स्थित है, जो महोबा-कानपुर रोड से एक पक्के सम्पर्क मार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। 2555 लोगों की आबादी वाले इस गांव की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। कृषिगत भूमि का रकबा लगभग 2400 एकड़ है, जिसमें से केवल 100 एकड़ ज़मीन सिंचित है। यहां पर सिंचाई के साधनों में व्यक्तिगत कुआं ही हैं। कुल कृषि योग्य भूमि में से 1100 भूमि राकड़ है, जो ढालू तथा उबड़-खाबड़ है। ढलान की स्थिति यह है कि कहीं-कहीं पर खेत का ढाल 1 मीटर तक है। अतः यहां पर बरसात का पानी रुकता नहीं है। मात्र 200 एकड़ ज़मीन ही समतल व उपजाऊ किस्म की है।
सामुदायिक तालाब पुनः निर्माण
Posted on 03 Apr, 2013 12:39 PM
बुंदेलखंड पारंपरिक रूप से तालाबों का क्षेत्र रहा है और यही तालाब वहां पर पानी की उपलब्धता बनाए रखने में सक्षम थे। गलत तरीके से इनका अतिक्रमण और बचे हुए तालाबों से भी गाद न निकलने से पानी की समस्या बढ़ी। ऐसे में समुदाय द्वारा तालाबों का गहरीकरण करना क्षेत्र के लिए काफी उपयोगी रहा।

संदर्भ

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