बगल में नदी होते हुए भी गर्मियों में सूखा की स्थिति झेलने वाले जनपद सोनभद्र के गांव बीडर के लोगों ने स्वयं के प्रयास से कुएँ, तालाबों की खुदाई की और जल स्तर बढ़ाने का स्व प्रयास किया।
पहाड़ों से घिरी गहरी बावनझरिया नदी के समीप अवस्थित ग्राम सभा बीडर जनपद सोनभद्र के विकास खंड दुद्दी का एक गांव है। इस गांव की विडम्बना यह है कि 200-300 मीटर की ढलान के बाद 15 मीटर गहरी नदी (जिसमें वर्ष भर पानी रहता है। बगल में होने के बावजूद गांव सूखा की परिस्थितियों को झेलता है।
जनपद सोनभद्र की आजीविका का मुख्य साधन खेती, खेती आधारित मजदूरी है। यहां पर वर्षा आधारित खेती होने के कारण वर्षा न होने की स्थिति में लोगों के खेत सूखे रहते हैं। नतीजतन लोगों की आजीविका एवं उसके साथ-साथ उनका जीवन-यापन बहुत मुश्किल हो जाता है।इस गांव ने 1966-67 का सूखा भी देखा, जब उससे निपटने के लिए सरकार राहत के तौर पर गेहूं का दरिया बंटवाया था। लोगों के सामने मुश्किलें तो हैं, पर उन्होंने उससे निपटने हेतु रास्ते भी तलाशे और गांव स्थित कुओं, तालाबों की गहराई बढ़ाकर भूगर्भीय जलस्तर बढ़ाने की दिशा में विकल्प तलाशे और उसी दिशा में प्रयास भी किया। परम्परानुसार प्रत्येक खेत में कुआं होता था, जिसमें वर्षा का जल संचित होता था और उसी कुएँ से लोग सिंचाई एवं अन्य उपयोग करते थे। कालांतर में वर्षा कम होने के कारण कुएँ में संचित जल भी घटने लगा और लोगों को दिक्कत हुई, तो लोगों ने कुएँ की गहराई बढ़ाकर जलस्तर बढ़ाने का प्रयास किया। इस तरह का प्रयास व्यक्तिगत था, फिर भी गांव के अधिकाधिक लोगों ने अपनाया। ग्राम सभा बीडर के 50 वर्षीय श्री कृष्ण सहाय पटेल पुत्र श्री गोरख पटेल द्वारा किये गये प्रयास कुछ इस प्रकार थे।
पारिवारिक विवरण
कक्षा 10वीं पास श्री कृष्णसहाय पटेल के परिवार में कुल 15 सदस्य हैं, जिनके भरण-पोषण हेतु इनके पास 2 एकड़ खेत व कच्चा कुआं मौजूद है। ये अपने खेतों की सिंचाई का काम कुछ तो वर्षा आधारित और कुछ उसी कुएँ से करते थे। 6.25 मीटर गहरे एवं 3 मीटर चौड़े कुएँ से ये पानी पीने, जानवरों को पिलाने आदि का काम भी करते थे।
वर्ष 1966-67 में पड़े सूखे ने इनके सामने पानी का यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया, जब इनके कुएँ का जलस्तर अत्यंत नीचे चला गया। बाद में स्थिति थोड़ी सुधरी, जब वर्षा हुई। फिर धीरे-धीरे कम होती बरसात ने संकट कम करने के बजाय और बढ़ाया ही। खेती आधारित आजीविका संकट में पड़ते देख वर्ष 1984 में श्री पटेल ने कुआं को और गहरा करने का विचार किया।
(तब मजदूरी रु. 20.00 थी।) तत्पश्चात् परिवार के 6 लोग मिलकर 80 दिनों तक कूप खुदाई के कार्य में लगे रहे और कुएँ की गहराई नदी के स्तर के सापेक्ष 15 मीटर की गयी। तब कुएँ में जल का स्तर 0.5 मीटर हुआ। श्री पटेल की सोच थी कि पानी का स्राव मूसला निकल जायेगा, तो पानी का स्तर ऊपर उठ जाएगा, जिससे पम्पसेट से आसानी से सिंचाई की जा सकेगी, किंतु ऐसा हो नहीं सका। गांव में बिजली भी नहीं थी कि उसी के आधार पर सिंचाई थोड़ी सस्ती हो सके। ऐसे समय में ही इन्हें पता चला कि जी.पी.टी.डब्ल्यू. योजना के तहत किसानों को कम रेट पर बिजली दी जा रही है। इस मौके का इन्होंने लाभ उठाया और पहल करते हुए स्वयं का पैसा तथा कुछ चंदा लगाकर एक ट्रांसफार्मर लगवाया। पुनः दो मोटर खरीद कर एक को कुएँ के बीच 7.5 मीटर की दूरी पर एंगल, लकड़ी के गुटखे आदि की सहायता से फिट कर दिया और दूसरे को कुएँ के ऊपर लगाया। तब खेतों की सिंचाई करना प्रारम्भ किया।
सिंचाई तो हो रही थी, परंतु दिक्कत यह थी कि एक बार में 15से 20 मिनट तक ही सिंचाई हो पाती थी, आधे घंटे बाद मोटर पानी खींचना ही बंद कर देता था। अगले एक वर्ष तक इन्होंने इसी व्यवस्था से खेती की। साग-सब्जी का उत्पादन कम मात्रा में ही कर पाए। इनके इस प्रयास का आकलन मात्रात्मक तौर पर निम्नवत् किया जा सकता है -
लगात के सापेक्ष लाभ न मिलता देखकर इन्होंने पुनः समस्या के समाधान पर विचार किया और तब सोचा कि यदि बावनझरिया नदी को बांध दिया जाये तो उसका जल ठहरा रहेगा और तब शायद कुएँ का जलस्तर ऊपर हो सके।
वर्ष 1998-99 में बावनझरिया नदी को बांधने का प्रस्ताव डाला गया, जो वर्ष 2001 में पारित होकर आने के बाद बंधी बनाने का काम हुआ, परंतु प्रशासनिक बाध्यता के चलते आधा-अधूरा काम ही हो पाया। तमाम कोशिशों के बाद जब सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई, तब इन्होंने स्वयं के प्रयास से बंधी बांधने का काम शुरू किया। इस बंधी निर्माण में कुल 40 मज़दूरों ने 78 दिनों तक काम किया, जिसमें 10 दिन का कार्य श्रमदान के रूप में किया गया। इस प्रकार तैयार बंधी से 90 परिवारों के 100 एकड़ खेती की सिंचाई भली-भांति होने लगी है।
संदर्भ
पहाड़ों से घिरी गहरी बावनझरिया नदी के समीप अवस्थित ग्राम सभा बीडर जनपद सोनभद्र के विकास खंड दुद्दी का एक गांव है। इस गांव की विडम्बना यह है कि 200-300 मीटर की ढलान के बाद 15 मीटर गहरी नदी (जिसमें वर्ष भर पानी रहता है। बगल में होने के बावजूद गांव सूखा की परिस्थितियों को झेलता है।
जनपद सोनभद्र की आजीविका का मुख्य साधन खेती, खेती आधारित मजदूरी है। यहां पर वर्षा आधारित खेती होने के कारण वर्षा न होने की स्थिति में लोगों के खेत सूखे रहते हैं। नतीजतन लोगों की आजीविका एवं उसके साथ-साथ उनका जीवन-यापन बहुत मुश्किल हो जाता है।इस गांव ने 1966-67 का सूखा भी देखा, जब उससे निपटने के लिए सरकार राहत के तौर पर गेहूं का दरिया बंटवाया था। लोगों के सामने मुश्किलें तो हैं, पर उन्होंने उससे निपटने हेतु रास्ते भी तलाशे और गांव स्थित कुओं, तालाबों की गहराई बढ़ाकर भूगर्भीय जलस्तर बढ़ाने की दिशा में विकल्प तलाशे और उसी दिशा में प्रयास भी किया। परम्परानुसार प्रत्येक खेत में कुआं होता था, जिसमें वर्षा का जल संचित होता था और उसी कुएँ से लोग सिंचाई एवं अन्य उपयोग करते थे। कालांतर में वर्षा कम होने के कारण कुएँ में संचित जल भी घटने लगा और लोगों को दिक्कत हुई, तो लोगों ने कुएँ की गहराई बढ़ाकर जलस्तर बढ़ाने का प्रयास किया। इस तरह का प्रयास व्यक्तिगत था, फिर भी गांव के अधिकाधिक लोगों ने अपनाया। ग्राम सभा बीडर के 50 वर्षीय श्री कृष्ण सहाय पटेल पुत्र श्री गोरख पटेल द्वारा किये गये प्रयास कुछ इस प्रकार थे।
कूप निर्माण की प्रक्रिया
पारिवारिक विवरण
कक्षा 10वीं पास श्री कृष्णसहाय पटेल के परिवार में कुल 15 सदस्य हैं, जिनके भरण-पोषण हेतु इनके पास 2 एकड़ खेत व कच्चा कुआं मौजूद है। ये अपने खेतों की सिंचाई का काम कुछ तो वर्षा आधारित और कुछ उसी कुएँ से करते थे। 6.25 मीटर गहरे एवं 3 मीटर चौड़े कुएँ से ये पानी पीने, जानवरों को पिलाने आदि का काम भी करते थे।
कूप गहरीकरण का विचार
वर्ष 1966-67 में पड़े सूखे ने इनके सामने पानी का यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया, जब इनके कुएँ का जलस्तर अत्यंत नीचे चला गया। बाद में स्थिति थोड़ी सुधरी, जब वर्षा हुई। फिर धीरे-धीरे कम होती बरसात ने संकट कम करने के बजाय और बढ़ाया ही। खेती आधारित आजीविका संकट में पड़ते देख वर्ष 1984 में श्री पटेल ने कुआं को और गहरा करने का विचार किया।
कुएँ की गहराई बढ़ाकर सिंचाई
(तब मजदूरी रु. 20.00 थी।) तत्पश्चात् परिवार के 6 लोग मिलकर 80 दिनों तक कूप खुदाई के कार्य में लगे रहे और कुएँ की गहराई नदी के स्तर के सापेक्ष 15 मीटर की गयी। तब कुएँ में जल का स्तर 0.5 मीटर हुआ। श्री पटेल की सोच थी कि पानी का स्राव मूसला निकल जायेगा, तो पानी का स्तर ऊपर उठ जाएगा, जिससे पम्पसेट से आसानी से सिंचाई की जा सकेगी, किंतु ऐसा हो नहीं सका। गांव में बिजली भी नहीं थी कि उसी के आधार पर सिंचाई थोड़ी सस्ती हो सके। ऐसे समय में ही इन्हें पता चला कि जी.पी.टी.डब्ल्यू. योजना के तहत किसानों को कम रेट पर बिजली दी जा रही है। इस मौके का इन्होंने लाभ उठाया और पहल करते हुए स्वयं का पैसा तथा कुछ चंदा लगाकर एक ट्रांसफार्मर लगवाया। पुनः दो मोटर खरीद कर एक को कुएँ के बीच 7.5 मीटर की दूरी पर एंगल, लकड़ी के गुटखे आदि की सहायता से फिट कर दिया और दूसरे को कुएँ के ऊपर लगाया। तब खेतों की सिंचाई करना प्रारम्भ किया।
सिंचाई तो हो रही थी, परंतु दिक्कत यह थी कि एक बार में 15से 20 मिनट तक ही सिंचाई हो पाती थी, आधे घंटे बाद मोटर पानी खींचना ही बंद कर देता था। अगले एक वर्ष तक इन्होंने इसी व्यवस्था से खेती की। साग-सब्जी का उत्पादन कम मात्रा में ही कर पाए। इनके इस प्रयास का आकलन मात्रात्मक तौर पर निम्नवत् किया जा सकता है -
गहरीकरण का पुर्नप्रयास
लगात के सापेक्ष लाभ न मिलता देखकर इन्होंने पुनः समस्या के समाधान पर विचार किया और तब सोचा कि यदि बावनझरिया नदी को बांध दिया जाये तो उसका जल ठहरा रहेगा और तब शायद कुएँ का जलस्तर ऊपर हो सके।
बावनझरिया नदी पर बंधी निर्माण
वर्ष 1998-99 में बावनझरिया नदी को बांधने का प्रस्ताव डाला गया, जो वर्ष 2001 में पारित होकर आने के बाद बंधी बनाने का काम हुआ, परंतु प्रशासनिक बाध्यता के चलते आधा-अधूरा काम ही हो पाया। तमाम कोशिशों के बाद जब सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई, तब इन्होंने स्वयं के प्रयास से बंधी बांधने का काम शुरू किया। इस बंधी निर्माण में कुल 40 मज़दूरों ने 78 दिनों तक काम किया, जिसमें 10 दिन का कार्य श्रमदान के रूप में किया गया। इस प्रकार तैयार बंधी से 90 परिवारों के 100 एकड़ खेती की सिंचाई भली-भांति होने लगी है।
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