भूमि समतलीकरण

ऊंची नीची भूमि के कारण खेतों से बहुत सा पानी बेकार बह जाता है, जिसने सूखे विंध्य को और सूखा बनाया। तब लोगों ने भूमि समतलीकरण की तकनीक अपनाकर सूखे से मुकाबला प्रारम्भ किया।

संदर्भ


भूमि समतलीकरण से आशय है ऊंची-नीची ज़मीन को बराबर करके उसकी मेंड़ को बांधना ताकि ज़मीन की उर्वरा शक्ति एवं जल धारण क्षमता बढ़े। भूमि एवं जल प्रबंधन की यह एक पुरानी व कारगर परंपरा है, जो खेती के आधुनिक दौर में बहुत प्रचलन में नहीं है। परंतु आज जब पानी की एक-एक बूंद महत्वपूर्ण है, इस परंपरा को पुनः प्रचलन में लाना अति आवश्यक हो गया है और इसी दिशा में प्रयास करते हुए इसे प्रतिस्थापित किया जा रहा है।

गांव घोरपा जनपद सोनभद्र के विकास खंड दुद्धि का अति पिछड़ा गांव है, जो पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण में कनहर तथा गोइठा नदी की ऊंचाई में स्थित है। गांव के उत्तर दिशा में पहाड़ी स्थित है। घोरपा का क्षेत्रफल लम्बाई में 6 किमी. व चौड़ाई में 5 किमी है। यहां लोग ऊंचे-नीचे टीलों में बसे हुए हैं। लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि एवं जमीनें उपजाऊ होने के बाद भी लोग खेती नहीं कर पाते, क्योंकि भूमि ऊंची-नीची व सिंचाई के साधनों का अभाव खेती को दुरूह बना देता है। इस गांव में सिंचाई का एकमात्र साधन कूप व तालाब है और लोग उसी के सहारे थोड़ी बहुत खेती करते हैं।

गांव की अधिकतर ज़मीन गोइठा नदी के किनारे है। गोइठा नदी की गहराई 100 से 200 मीटर तक है। नदी के दक्षिण दिशा में लगभग डेढ़ किमी. की दूरी पर एक नाला बहता है। एक तो उबड़-खाबड़ जमीनें, दूसरे ढालूदार होने के कारण पानी होते हुए भी उसका लाभ नहीं मिल पाता और सिंचाई के अभाव में खेती नहीं हो पाती है। यहां लोग कम पानी वाली फसलें – जैसे मेझरी, सांवा, कोदो, तिल आदि की खेती करते हैं। परंतु बढ़ती महँगाई, कम होती बारिश इन सभी ने मिलकर इस खेती को भी कठिन बना दिया। तब लोगों ने भूमि समतलीकरण कर पानी को रोकने का प्रयास कर अपनी खेती सुदृढ़ करने का निश्चय किया। गांव घोरपा के श्री रामजीत पुत्र श्री सुखलाल ने इस तरह का व्यक्तिगत प्रयास अपने खेत पर किया।

प्रक्रिया


पारिवारिक विवरण
श्री रामजीत के परिवार में कुल 15 सदस्य हैं और खेती के लिए 6.66 एकड़ भूमि है। इनके खेत के बीच से गोइठा नदी बहती है। इनकी ज़मीन ढालू एवं यत्र-तत्र गड्ढा होने की वजह से खेती करने लायक ज़मीन बहु ही कम है। मात्र एक से दो बीघा ज़मीन, जो ऊंचे-नीचे टीलों पर है, उसमें ये कम पानी वाली फसलें उगाते हैं।

भूमि समतलीकरण एवं बावड़ी निर्माण


खेती के सामान्य तरीके को लगातार कम होती वर्षा ने प्रभावित किया और उपज न के बराबर होने से इनके सामने आजीविका का संकट गहराने लगा। परिवार का भरण-पोषण भारी पड़ने लगा, तब इन्होंने पारिवारिक स्तर पर बैठकर समस्या का समाधान निकालने की प्रक्रिया शुरू की। इन्होंने कहा कि यदि हम अपनी खेती की ज़मीन को समतल कर सकें तो उपज बेहतर मिल पाएगी और हमारा खाद्य संकट टल जाएगा।

सर्वसहमति से निश्चय किया गया कि भूमि समतलीकरण को रोकने से पहले पानी के तेज बहाव को रोकने के लिए नाले के कैच शिखर पर बावड़ी का निर्माण किया जाए। वर्ष 1995 में नियोजित ढंग से परिवार के लोगों ने मिलकर बावड़ी बनाई, जिसमें बाहर से 5 मज़दूरों ने भी काम किया। कुल 15 लोगों के अथक प्रयास से 80 दिनों में सवा छः मीटर गहरी एवं वर्गाकार आकार में 5 मीटर लम्बाई व 5 मीटर चौड़ाई का तालाब बनकर तैयार हुआ। इस कार्य में सिर्फ बाहर के 5 मज़दूरों को मजदूरी के तौर पर 30.00 रु. प्रतिदिन की दर से रु. 12,000.00 का भुगतान किया गया। जबकि 24,000.00 रु. के बराबर मजदूरी स्वयं रामजीत एवं उनके परिवार ने किया। इस प्रकार तालाब निर्माण में कुल 36,000.00 रु. लगे।

भूमि समतलीकरण क्रियान्वयन


तत्पश्चात् गर्मी के दिनों में ही परिवार के 10 सदस्यों ने मिलकर खेत की कठोर मिट्टी को काटकर खेत का स्तर नाला के बराबर किया। वर्ष 1999 से 2001 तक की बरसात में ज़मीन को एक बराबर करते हुए क्यारी बनाने का काम किया साथ में जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढा बनाकर क्यारियों को उनसे जोड़ दिया। इस प्रकार 6.66 एकड़ भूमि में से 4 एकड़ जमीन में 13 बड़े गड्ढे तैयार हुए तथा 12 छोटी-छोटी वर्गाकार एवं आयताकार क्यारियों का निर्माण किया गया।

13 बड़े गड्ढे एवं क्यारियों का माप- क्यारियां 20 मीटर लंबी, 15 मी. चौड़ी एवं आधे से एक मीटर तक गहरी तथा गड्ढे की मोटाई 2 मीटर व चौड़ाई 50 सेमी. है।
12 छोटे गड्ढे एवं क्यारियों का माप- क्यारियां 10 मी. लंबी व चौड़ी तथा गड्ढे की मोटाई 100 सेमी. चौड़ाई 40 सेमी. है।

समतलीकरण का विवरण इस प्रकार हैः-


तीन वर्षों तक (1999-2001 तक) प्रत्येक वर्ष जनवरी से मार्च तक लगातार परिवार के 10 सदस्यों ने भूमि समतलीकरण हेतु कार्य किया। पहले बैलों से भूमि की जुताई करते थे। इसके बाद उस खेत को कुर्री (मिट्टी खींचने वाला लकड़ी का पल्ला) से बैलों द्वारा खिंचवाकर गड्ढे के स्थान में ले जाकर भरते थे। आवश्यकता पड़ने पर दूसरे के बैल व बाहरी मज़दूरों को भी लगाया जाता था। उस समय मजदूरी दर रु. 30.00 था, जिसके आधार पर लागत को देखा जाए तो कार्य में लगे कुल 10 मज़दूरों को 240 दिन के लिए रु. 2,16,000 का भुगतान किया गया।

लाभ


इस पूरी प्रक्रिया से हुए लाभ को निम्न तौर पर देख सकते हैः- आज उस ज़मीन में नाला, गड्ढा का नामोनिशान नहीं है। पहले सिर्फ सांवा, कोदो, मेझरी, तिल की ही खेती होती थी, आज उस खेत में अधिक मात्रा में धान लगा रहे हैं। इसे भी नियोजित ढंग से करके कम पानी चाहने वाली अल्प अवधि की धान की प्रजाति लगा रहे हैं। मुख्यतः साठा धान की खेती करते हैं।
पानी के व्यर्थ बहाव को रोकने के लिए किए गए तालाब निर्माण से पानी का संचयन हुआ है और जहां पहले खेती वर्षा आधारित होती थी, अब संचित पानी से खेती करने लगे हैं।
इनकी इस प्रक्रिया का प्रसार अन्य किसानों में भी हो रहा है और लोग अपने खेतों में क्यारियां बनाकर भूमि समतल करके लाभ लेने लगे हैं। पहले जहां कुछ भी उत्पादन नहीं होता था, अब वहां पर मक्का, धान, अरहर, तिल आदि का उत्पादन होने लगा है।
श्री रामजीत पहले सिर्फ सवा एकड़ में खेती कर पाते थे, आज 4 एकड़ से अधिक भूमि पर खेती करने लगे हैं।
श्री रामजीत की इस ज़मीन में बावड़ी निर्माण हो जाने पर कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। पहले इस ज़मीन में रबी की फसल न के बराबर होती थी, आज वे गेहूं का उत्पादन कर अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

खेती के लागत-लाभ का तुलनात्मक विवरण


10 वर्ष पहले जब रामजीत की ज़मीन समतल नहीं थी, उस समय और आज समतलीकरण के बाद इनकी खेती और आय का तुलनात्मक विवरण निम्नवत् है-
10 वर्ष पहले
खरीफ-उपयोग सवा एक़ड़ का



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