बुंदेलखंड पारंपरिक रूप से तालाबों का क्षेत्र रहा है और यही तालाब वहां पर पानी की उपलब्धता बनाए रखने में सक्षम थे। गलत तरीके से इनका अतिक्रमण और बचे हुए तालाबों से भी गाद न निकलने से पानी की समस्या बढ़ी। ऐसे में समुदाय द्वारा तालाबों का गहरीकरण करना क्षेत्र के लिए काफी उपयोगी रहा।
पूरा बुंदेलखंड प्राचीनकाल से ही प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर क्षेत्र है। यहां पर पहाड़, नदी, नाले, तालाब, बाग-बगीचे अर्थात जल, जंगल इत्यादि भरपूर मात्रा में हैं। स्थिति तो यह है कि यहां के प्रत्येक गांव में 4-5 की संख्या में छोटे-बड़े तालाब बने हुए हैं। जिनमें बरसात के बाद आमतौर पर 4-5 महीनों तक पानी जमा रहता था, जिनसे जानवरों के पीने हेतु पानी व तालाबों के आस-पास की खेती में एक-दो पानी सिंचाई की व्यवस्था हो जाती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मानव जनित प्राकृतिक कारणों की वजह से जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। ज्यादातर तालाबों को पाटकर लोगों ने कब्ज़ा कर लिया या पट्टा कराकर उस पर खेती करने लगे। कुल मिलाकर तालाबों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। इन कठिन स्थितियों को वर्ष 2004 में और कठिन बनाया कम वर्षा और घोषित सूखे ने। लगातार कम होती वर्षा, गहराते सूखा आपदा ने लोगों के सामने खेती, किसानी, पशुपालन व आजीविका का संकट उत्पन्न किया और लोगों के सामने पलायन का विकल्प बचा। पर पलायन भी सुरक्षित एवं दीर्घकालिक विकल्प न होने के कारण लोगों ने स्थायित्व की ओर सोचा और तब उन्हें तालाबों की याद फिर से आई। समुदाय ने जल संचयन के प्राकृतिक श्रोतों को पुनः तलाशना प्रारम्भ किया।
ग्राम कुरौली, विकासखंड कुठौन्द, जनपद जालौन के लोगों द्वारा एक सामुदायिक तालाब का पुनः निर्माण कर जल संचयन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य किया गया। पुनः निर्माण की प्रक्रिया के तहत वर्ष 2006-07 में ग्राम कुरौली के लोगों ने खुली बैठक कर विगत 2 वर्षों से पड़ने वाले सूखा तथा उसके परिणामस्वरूप तालाब, कुएँ यहां तक कि हैंडपम्प के सूख रहे पानी एवं जानवरों के पीने के पानी की दिक्कत, सिंचाई की समस्या पर चर्चा की। चर्चा में निकल कर आया कि आज से लगभग 10 वर्ष पहले गांव में तीन तालाब थे। प्रत्येक गर्मियों में तालाबों से मिट्टी निकाल कर लोग घर की लिपाई मरम्मत, चूल्हा, मिट्टी की डेहरी बनाने का काम करते थे। इससे दो फायदे थे- एक तो लोगों को अपने घर के साज-संवार के लिए मुफ्त की मिट्टी मिल जाती थी और दूसरा व बड़ा फायदा यह था कि प्रति वर्ष तालाबों का गहरीकरण बरसात से पहले ही हो जाने से उसमें बरसात का पानी भी संचित होता रहता था। परंतु अब सभी तालाब या तो कब्ज़ा कर लिये गए हैं या भठ गए हैं, जिस कारण बारिश का पानी तो संचय होता नहीं, ज़मीन के अंदर का पानी भी सूख गया है। इसका एक उपाय है कि अगर हम तालाब को गहरा करें तो जल संचय होगा और पानी की समस्या से कुछ हद तक मुक्ति मिल सकेगी। कम से कम जानवरों के पीने के लिए तो पानी उपलब्ध होगा ही। तब गांव में बने स्वयं सहायता समूह के सदस्यों और किसान क्लब के सदस्यों ने तालाब गहरीकरण के कार्य का बीड़ा उठाया और तालाब खुदाई का कार्य शुरू किया। गांव के श्री पंचम पुत्र श्री बालकिशुन ने इस कार्य का नेतृत्व किया। इस कार्य को देखकर गांव के अन्य परिवारों ने भी तालाब की खुदाई में 5 दिन का सहयोग देने का वायदा किया, जिससे यह तालाब काफी खुद गया। तत्पश्चात् इसको समीप के सरकारी ट्यूबवैल से भरा गया जिससे उस वर्ष पशुओं के लिए पीने के पानी की दिक्कत नहीं हुई।
खुदे गए तालाब की लम्बाई 60 मीटर, चौड़ाई 40 मीटर और गहराई 02 मीटर अर्थात 480 घन मीटर है।
प्रक्रिया के अगले चरण में वर्ष 2008-09 में ग्रामवासियों ने इस तालाब को और गहरा करने के लिए पंचायत में प्रस्ताव रखा। जिसे संज्ञान में लेते हुए ग्राम प्रधान ने इस प्रस्ताव को मनरेगा के तहत लेकर इस तालाब को और गहरा करवाकर इसके आसपास वृक्षारोपण करवाया। परिणामतः आज यह तालाब बहुत अच्छा हो गया है। इसके आसपास बेर के 16, आंवला के 12, अमरूद के 18, नीम के 06, बबूल के 08 तथा जामुन के 04 इस प्रकार कुल 64 पेड़ लगाए गए हैं, जिसकी रखवाली समुदाय के द्वारा की गई। आज सभी पौधे पेड़ बनने की ओर अग्रसर हैं।
इस तालाब की देख-रेख एवं रख-रखाव हेतु गांव में एक समिति बनी हुई है जिसमें ग्राम सभा के हर वर्ग से एक व्यक्ति है, जो इसकी देख-रेख एवं मरम्मत का कार्य करता-करवाता है जिन लोगों की ज़मीन आस-पास है, वे लोग सिंचाई हेतु भी तालाब के पानी का उपयोग करते हैं और समिति द्वारा निर्धारित मूल्य चुकता करते हैं ताकि तालाब एवं नाली की मरम्मत व पेड़ों की सुरक्षा का कार्य सुचारू रूप से हो सके। सिंचाई से प्राप्त पैसा मंदिर के महंत एवं समाजसेवी श्री रामशंकर बाबा जी के पास जमा रहता है। इस प्रकार सारी व्यवस्था आपसी विश्वास एवं समझदारी के आधार पर चलती है।
समिति द्वारा सर्वसम्मति से तय किया गया है कि एक एकड़ खेत की एक सिंचाई हेतु रु. 250.00 उपभोगकर्ता द्वारा देय होगा।
समुदाय द्वारा लिये गए तालाब निर्माण के निर्णय पर कार्य शुरू किया गया। इस तालाब की लंबाई 60 मीटर, चौड़ाई, 20 मीटर एवं गहराई 2 मीटर के लगभग है। तालाब के निर्माण में गांव के 300 परिवारों से 100 लोगों द्वारा 6-6 दिन मजदूरी की गई। इस प्रकार प्रति व्यक्ति 600.00 रुपए का योगदान करके 60000.00 रुपए के सामुदायिक सहयोग/श्रमदान की लागत से खुदाई का कार्य किया गया। इसके बाद पंचायत द्वारा 2 लाख रुपए की लागत से इस तालाब का गहरीकरण, सुंदरीकरण और वृक्षारोपण का कार्य कराया गया। कुल मिलाकर इस पर लगभग 2 लाख 60 हजार रुपए की लागत आई।
आज ग्राम कुरौली में लोगों के सहयोग से तालाब अपने पुराने स्वरूप में वापस आ चुका है और इस तालाब से हर समय जानवरों को पीने का पानी उपलब्ध हो रहा है।
तालाब में पानी आने से समीप में बने विद्यालय के हैंडपम्प से पानी मिलने लगा।
सामुदायिक सोच एवं मुद्दे की चेतना से प्रभावित होकर पंचायत द्वारा गांव में अन्य चार तालाबों का गहरीकरण कराया गया।
बागवानी एवं सब्जी उत्पादन जैसे आजीविका के सामूहिक प्रयास संभव हो सके।
लोगों के अंदर जल संरक्षण को लेकर चेतना जागृत हुई।
परंपरागत जल स्रोतों के संरक्षण की सीख प्राप्त हुई।
लोगों के अंदर सामूहिकता की भावना विकसित हुई।
संदर्भ
पूरा बुंदेलखंड प्राचीनकाल से ही प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर क्षेत्र है। यहां पर पहाड़, नदी, नाले, तालाब, बाग-बगीचे अर्थात जल, जंगल इत्यादि भरपूर मात्रा में हैं। स्थिति तो यह है कि यहां के प्रत्येक गांव में 4-5 की संख्या में छोटे-बड़े तालाब बने हुए हैं। जिनमें बरसात के बाद आमतौर पर 4-5 महीनों तक पानी जमा रहता था, जिनसे जानवरों के पीने हेतु पानी व तालाबों के आस-पास की खेती में एक-दो पानी सिंचाई की व्यवस्था हो जाती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मानव जनित प्राकृतिक कारणों की वजह से जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। ज्यादातर तालाबों को पाटकर लोगों ने कब्ज़ा कर लिया या पट्टा कराकर उस पर खेती करने लगे। कुल मिलाकर तालाबों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। इन कठिन स्थितियों को वर्ष 2004 में और कठिन बनाया कम वर्षा और घोषित सूखे ने। लगातार कम होती वर्षा, गहराते सूखा आपदा ने लोगों के सामने खेती, किसानी, पशुपालन व आजीविका का संकट उत्पन्न किया और लोगों के सामने पलायन का विकल्प बचा। पर पलायन भी सुरक्षित एवं दीर्घकालिक विकल्प न होने के कारण लोगों ने स्थायित्व की ओर सोचा और तब उन्हें तालाबों की याद फिर से आई। समुदाय ने जल संचयन के प्राकृतिक श्रोतों को पुनः तलाशना प्रारम्भ किया।
प्रक्रिया
ग्राम कुरौली, विकासखंड कुठौन्द, जनपद जालौन के लोगों द्वारा एक सामुदायिक तालाब का पुनः निर्माण कर जल संचयन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य किया गया। पुनः निर्माण की प्रक्रिया के तहत वर्ष 2006-07 में ग्राम कुरौली के लोगों ने खुली बैठक कर विगत 2 वर्षों से पड़ने वाले सूखा तथा उसके परिणामस्वरूप तालाब, कुएँ यहां तक कि हैंडपम्प के सूख रहे पानी एवं जानवरों के पीने के पानी की दिक्कत, सिंचाई की समस्या पर चर्चा की। चर्चा में निकल कर आया कि आज से लगभग 10 वर्ष पहले गांव में तीन तालाब थे। प्रत्येक गर्मियों में तालाबों से मिट्टी निकाल कर लोग घर की लिपाई मरम्मत, चूल्हा, मिट्टी की डेहरी बनाने का काम करते थे। इससे दो फायदे थे- एक तो लोगों को अपने घर के साज-संवार के लिए मुफ्त की मिट्टी मिल जाती थी और दूसरा व बड़ा फायदा यह था कि प्रति वर्ष तालाबों का गहरीकरण बरसात से पहले ही हो जाने से उसमें बरसात का पानी भी संचित होता रहता था। परंतु अब सभी तालाब या तो कब्ज़ा कर लिये गए हैं या भठ गए हैं, जिस कारण बारिश का पानी तो संचय होता नहीं, ज़मीन के अंदर का पानी भी सूख गया है। इसका एक उपाय है कि अगर हम तालाब को गहरा करें तो जल संचय होगा और पानी की समस्या से कुछ हद तक मुक्ति मिल सकेगी। कम से कम जानवरों के पीने के लिए तो पानी उपलब्ध होगा ही। तब गांव में बने स्वयं सहायता समूह के सदस्यों और किसान क्लब के सदस्यों ने तालाब गहरीकरण के कार्य का बीड़ा उठाया और तालाब खुदाई का कार्य शुरू किया। गांव के श्री पंचम पुत्र श्री बालकिशुन ने इस कार्य का नेतृत्व किया। इस कार्य को देखकर गांव के अन्य परिवारों ने भी तालाब की खुदाई में 5 दिन का सहयोग देने का वायदा किया, जिससे यह तालाब काफी खुद गया। तत्पश्चात् इसको समीप के सरकारी ट्यूबवैल से भरा गया जिससे उस वर्ष पशुओं के लिए पीने के पानी की दिक्कत नहीं हुई।
तालाब का क्षेत्रफल
खुदे गए तालाब की लम्बाई 60 मीटर, चौड़ाई 40 मीटर और गहराई 02 मीटर अर्थात 480 घन मीटर है।
पंचायत की भूमिका
प्रक्रिया के अगले चरण में वर्ष 2008-09 में ग्रामवासियों ने इस तालाब को और गहरा करने के लिए पंचायत में प्रस्ताव रखा। जिसे संज्ञान में लेते हुए ग्राम प्रधान ने इस प्रस्ताव को मनरेगा के तहत लेकर इस तालाब को और गहरा करवाकर इसके आसपास वृक्षारोपण करवाया। परिणामतः आज यह तालाब बहुत अच्छा हो गया है। इसके आसपास बेर के 16, आंवला के 12, अमरूद के 18, नीम के 06, बबूल के 08 तथा जामुन के 04 इस प्रकार कुल 64 पेड़ लगाए गए हैं, जिसकी रखवाली समुदाय के द्वारा की गई। आज सभी पौधे पेड़ बनने की ओर अग्रसर हैं।
रख-रखाव
इस तालाब की देख-रेख एवं रख-रखाव हेतु गांव में एक समिति बनी हुई है जिसमें ग्राम सभा के हर वर्ग से एक व्यक्ति है, जो इसकी देख-रेख एवं मरम्मत का कार्य करता-करवाता है जिन लोगों की ज़मीन आस-पास है, वे लोग सिंचाई हेतु भी तालाब के पानी का उपयोग करते हैं और समिति द्वारा निर्धारित मूल्य चुकता करते हैं ताकि तालाब एवं नाली की मरम्मत व पेड़ों की सुरक्षा का कार्य सुचारू रूप से हो सके। सिंचाई से प्राप्त पैसा मंदिर के महंत एवं समाजसेवी श्री रामशंकर बाबा जी के पास जमा रहता है। इस प्रकार सारी व्यवस्था आपसी विश्वास एवं समझदारी के आधार पर चलती है।
नियम निर्धारण
समिति द्वारा सर्वसम्मति से तय किया गया है कि एक एकड़ खेत की एक सिंचाई हेतु रु. 250.00 उपभोगकर्ता द्वारा देय होगा।
तालाब निर्माण में आई लागत
समुदाय द्वारा लिये गए तालाब निर्माण के निर्णय पर कार्य शुरू किया गया। इस तालाब की लंबाई 60 मीटर, चौड़ाई, 20 मीटर एवं गहराई 2 मीटर के लगभग है। तालाब के निर्माण में गांव के 300 परिवारों से 100 लोगों द्वारा 6-6 दिन मजदूरी की गई। इस प्रकार प्रति व्यक्ति 600.00 रुपए का योगदान करके 60000.00 रुपए के सामुदायिक सहयोग/श्रमदान की लागत से खुदाई का कार्य किया गया। इसके बाद पंचायत द्वारा 2 लाख रुपए की लागत से इस तालाब का गहरीकरण, सुंदरीकरण और वृक्षारोपण का कार्य कराया गया। कुल मिलाकर इस पर लगभग 2 लाख 60 हजार रुपए की लागत आई।
परिणाम
आज ग्राम कुरौली में लोगों के सहयोग से तालाब अपने पुराने स्वरूप में वापस आ चुका है और इस तालाब से हर समय जानवरों को पीने का पानी उपलब्ध हो रहा है।
तालाब में पानी आने से समीप में बने विद्यालय के हैंडपम्प से पानी मिलने लगा।
सामुदायिक सोच एवं मुद्दे की चेतना से प्रभावित होकर पंचायत द्वारा गांव में अन्य चार तालाबों का गहरीकरण कराया गया।
बागवानी एवं सब्जी उत्पादन जैसे आजीविका के सामूहिक प्रयास संभव हो सके।
लोगों के अंदर जल संरक्षण को लेकर चेतना जागृत हुई।
परंपरागत जल स्रोतों के संरक्षण की सीख प्राप्त हुई।
लोगों के अंदर सामूहिकता की भावना विकसित हुई।
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