डॉ. दिनेश मिश्र

डॉ. दिनेश मिश्र
योजना आयोग द्वारा कोसी परियोजना का मूल्यांकन 1977-78
Posted on 25 Aug, 2012 04:48 PM
कोसी तटबन्धों से होने वाले नफा-नुकसान का एक मूल्यांकन योजना आयोग के कार्यक्रम मूल्यांकन संस्थान ने 1977-78 में किया। यह मूल्यांकन यह जानने के लिए किया गया था कि इन तटबन्धों के निर्माण की वजह से इस इलाके में लोगों की आमदनी और रोजगार पर क्या असर पड़ा, जमीन की कीमतों में कोई बढ़ोतरी हुई या नहीं?
कोसी क्रान्ति का बिगुल
Posted on 25 Aug, 2012 01:18 PM

कोसी क्रान्ति’ का प्रस्ताव इस बात को मानता था कि केवल संसाधन, पूंजी, श्रम-शक्ति, तकनीकी अनुभव

पूरी सिंचाई क्षमता का उपयोग न होने के कारक
Posted on 25 Aug, 2012 12:52 PM
सिंचाई समिति ने अर्जित सिंचाई क्षमता का पूरा-पूरा उपयोग न कर पाने के कई कारण बताये-

1. मुख्य नहर के बीच में बिजली घर का निर्माण

राम नारायण मंडल समिति (कोसी सिंचाई समिति) का गठन
Posted on 23 Aug, 2012 04:54 PM
पूर्वी कोसी मुख्य नहर और उसके द्वारा पैदा की गई समस्याओं के अध्ययन और उनके निराकरण के लिये सुझाव देने के लिए बिहार सरकार ने 27 सितम्बर 1973 को राम नारायण मंडल की अध्यक्षता में एक सिंचाई समिति का गठन किया। इसे कोसी सिंचाई समिति के नाम से भी जाना जाता है। इस समिति के विचारणीय विषय थे-

1. कोसी नहरों से वास्तव में कितनी सिंचाई संभव है?
पूर्वी कोसी नहर से सिंचाई
Posted on 23 Aug, 2012 04:18 PM

नहरी पानी का एक बड़ा हिस्सा नहर से ही जमीन में रिस जाता है और खेतों तक पहुँचते-पहुँचते इसका पर

पूर्वी कोसी मुख्य नहर
Posted on 21 Aug, 2012 12:13 PM

कोसी परियोजना

अंकुरित महादेव का गाँव महादेव मठ
Posted on 21 Aug, 2012 11:21 AM

जब रिंग बांध में पानी घुसा तो लकड़ी और बांस तैरने लगे और जाकर निकासी वाले स्लुइस में अटक गये औ

निर्मली और उसका रिंग बांध
Posted on 21 Aug, 2012 11:02 AM

कोसी परियोजना ने तीन अदद 49 हॉर्स पॉवर के पम्प रिंग बांध में तीन स्थानों पर लगा दिये थे जिससे

पश्चिमी तटबन्ध का समानी और घोंघेपुर कटाव (1987)
Posted on 20 Aug, 2012 04:20 PM
इसी तरह की घटना 1987 में पश्चिमी कोसी तटबन्ध पर समानी और घोंघेपुर गाँवों के पास घटी। तटबन्ध के आखिरी छोर पर होने के कारण इन गाँवों में वैसे भी पानी भरा ही रहता था। तटबन्ध के टूटने की घटना ने थोड़ी तबाही और बढ़ा दी। लेकिन यहाँ लोग उतने भाग्यशाली नहीं थे जितने कि डलवा या बहुअरवा में थे। यहाँ लोगों को तटबन्ध टूटने की त्रासदी झेलनी ही पड़ी थी।
क्षति-पूर्ति आन्दोलन
Posted on 20 Aug, 2012 03:04 PM
इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी सरकार को राहत कार्य शुरू करने में बहुत समय लगा क्योंकि तेज रफ्तार से फैलते और बहते हुये नदी के पानी के कारण न तो कोई बाढ़ पीडि़तों तक पहुँच सकता था और न ही बाढ़ पीड़ित उस इलाके से बाहर निकल सकते थे। तटबन्ध टूटने के लगभग 8 दिन बाद तक सरकारी राहत का कहीं अता-पता नहीं था। जो कुछ भी राहत कहीं मिली वह भोजन की शक्ल में और नाते-रिश्ते
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