कोसी परियोजना
1950 के दशक में कोसी परियोजना (1953) की शुरुआत किन परिस्थितियों और तैयारियों के साथ हुई उसकी एक झलक हमने अध्याय-2 में देखी है। कोसी योजना में किस तरह से तटबन्धों का निर्माण हुआ और कैसे इस क्षेत्र के लोग आज भी बाढ़ और तटबन्धों के टूटने के आतंक के साये में जीते हैं इसकी एक तस्वीर अध्याय 3-4 में देखने को मिलती है। पूर्वी कोसी मुख्य नहर द्वारा इस योजना से सिंचाई की उम्मीद भी कम महत्वपूर्ण नहीं थी तथा इस के बाद में जोड़ा गया विद्युत उत्पादन भी लोगों के लिए उतना ही जरूरी था। पश्चिमी कोसी नहर का समावेश इस योजना में शुरू-शुरू में नहीं था। इसे भी बाद में जोड़ा गया। इस अध्याय में हम पूर्वी कोसी मुख्य नहर के निर्माण के समय और उसके बाद की परिस्थितियों का एक लेखा-जोखा लेंगे। परियोजना में प्रस्ताव के स्तर पर क्या-क्या लक्ष्य रखे गये थे और उनके सन्दर्भ में वस्तुस्थिति क्या है, इसका अध्ययन करेंगे। इस योजना के भविष्य पर भी एक दृष्टि डालने का प्रयास किया जायगा।
पूर्वी कोसी मुख्य नहर
पूर्वी कोसी मुख्य नहर (चित्र-5.1) भीमनगर बराज के उत्तर में कोसी नदी के बाएं किनारे से निकलती है और 43 किलोमीटर लम्बी है। अपने उद्गम से यह नहर 16 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में चलती है और उसके बाद पूरब की ओर मुड़ जाती है और पूर्णियाँ-जोगबनी रेल लाइन को पार कर के यह नहर परमान नदी में जा कर समाप्त हो जाती है। अपने इस रास्ते में यह नहर कोसी की 12 पुरानी छाड़न धाराओं को पार करती है। 1953 वाली मूल योजना के अनुसार इस से चार शाखा नहरें निकालने का प्रस्ताव था। इन नहरों के नाम मुरलीगंज शाखा नहर (लम्बाई 64 कि.मी.), जानकीनगर शाखा नहर (81.6 कि.मी), अररिया शाखा नहर (57.6 किमी.) तथा पूर्णियाँ शाखा नहर (64 कि.मी.) हैं। इन नहरों की मदद से 4.95 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई करने का अनुमान था। खरीफ, रबी और गरमा की अलग-अलग सिंचाई की व्यवस्था से नहर से इतनी ही जमीन पर कुल 5.69 लाख हेक्टेयर के फसल क्षेत्र पर सिंचाई की जा सकती थी।
1953 में यह प्रस्ताव किया गया था कि पूर्वी कोसी मुख्य नहर से भेंगा धार के पूरब और पनार नदी के पश्चिम वाले क्षेत्र की ही सिंचाई की जायेगी। भेंगा धार और कोसी के पूर्वी तटबन्ध के बीच में कोसी की बहुत सी छाड़न धाराएं पड़ती हैं और शुरू-शुरू में यह योजना थी कि बरसात के मौसम में कोसी तटबन्धों के बीच से बहने वाले पानी का कुछ हिस्सा, लगभग 1,400 क्यूमेक (50,000 क्यूसेक) इन छाड़न धाराओं से होकर बहा दिया जायगा। इससे तटबन्धों पर भी दबाव को कम किया जा सकेगा। मगर कुछ तकनीकी कारणों से यह इरादा बदल देना पड़ा। तब भेंगा धार और पूर्वी कोसी तटबन्ध के बीच वाली पट्टी की सिंचाई का सवाल उठा। इस इलाके की सिंचाई करने के लिए एक नई नहर, राजपुर नहर, का निर्माण किया गया। इसकी चार उप-शाखा नहरें हैं। जिनके नाम मधेपुरा उप-शाखा नहर (लम्बाई 80.25 कि.मी.), गम्हरिया उप-शाखा नहर (77.36 कि.मी.); सहरसा उप-शाखा नहर (89.78 कि.मी.) तथा सुपौल उप-शाखा नहर (74.90 कि.मी.) हैं। इस नहर से 1.17 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई मिलने का अनुमान किया गया था। बहुमौसमी सिंचाई व्यवस्था से यह क्षेत्र 1.43 लाख हेक्टेयर हो जाता था। इस प्रकार पूर्वी कोसी मुख्य नहर और राजपुर नहर दोनों मिला कर 7.12 लाख हेक्टेयर पर लगी फसल को पानी दिया जा सकता था। यह अपने आप में एक बहुत ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य था।
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