अंकुरित महादेव का गाँव महादेव मठ

जब रिंग बांध में पानी घुसा तो लकड़ी और बांस तैरने लगे और जाकर निकासी वाले स्लुइस में अटक गये और उसे लगभग पूरी तरह जाम कर दिया। अब दो घन्टे के अन्दर गाँव में बाढ़ के पानी का लेवल बुरी तरह से बढ़ गया और गाँव में भगदड़ मच गई। जैसे-तैसे लोग भाग कर तटबन्ध तक पहुँच कर अपनी जान बचा पाये और फिर सबने मिल कर रिंग बांध को काट दिया, तब कहीं जाकर पानी निकला और लोग घर वापस आ पाये।

आज यह एक गाँव है, कभी जंगल हुआ करता था। जंगल की साफ –सफाई के समय महादेव जी का स्वयंभू लिंग यहाँ निकला जहाँ रामवृक्ष सिंह नाम के एक ठेकेदार ने एक मन्दिर बनवा दिया। वह खुद निःसन्तान थे, इस मन्दिर के निर्माण से देवता प्रसन्न हुये और उन्हें पुत्रा प्राप्ति हुई। तब से इस स्थान का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया।

जब कोसी के पश्चिमी तटबन्ध बनाने का प्रस्ताव किया गया तब महादेव मठ को रिंग बांध बना कर घेरने की बात उठी ताकि इस गाँव की कोसी की बाढ़ से रक्षा की जा सके। इस रिंग बांध का निर्माण 1955 में कर लिया गया था। गाँव के कई टोलों में से बेलही इस रिंग बांध के बाहर पड़ गया जिसका पुनर्वास रिंग बांध के अन्दर ही किया गया। इंजीनियरों और स्थानीय लोगों को यह भ्रम था कि रिंग बाँध के अंदर जीवन सुरक्षित रहेगा। इस बांध के अलाइनमेन्ट को लेकर कुछ झमेला हुआ था क्योंकि गाँव से लगी एक पोखरी थी जिसके उत्तर पूर्व से यह रिंग बांध जाने वाला था। इसे खींच कर नीचे लाया गया। इस रिंग बांध की यह खासियत है कि इसमें दो स्लुइस गेट बने हुये हैं। एक 6 फाटकों वाले स्लुइस से बाहर का पानी अन्दर आता है और दूसरे 7 फाटकों वाले स्लुइस से बाहर चला जाता है। इस तरह गाँव का दक्षिणी हिस्सा रिंग बांध के बावजूद पानी के रास्ते में पड़ता है और उससे तबाह रहता है। कोसी की धारा में स्थित रहने के कारण रिंग के बाहर बालू जमा हो गया है इसका सीधा असर पानी की निकासी वाले स्लुइस पर पड़ता है जिसके सामने नदी का तल ऊपर उठा हुआ है। इस तरह से पहले वाले स्लुइस से पानी रिंग में आ तो जाता है मगर इसके निकलने में परेशानी होती है।

1987 वाली बाढ़ के समय महादेव मठ रिंग के अन्दर एक ठेकेदार का कुछ सामान रखा हुआ था जिसमें कुछ बांस और लकडि़याँ भी रखी हुई थीं। जब रिंग बांध में पानी घुसा तो लकड़ी और बांस तैरने लगे और जाकर निकासी वाले स्लुइस में अटक गये और उसे लगभग पूरी तरह जाम कर दिया। अब दो घन्टे के अन्दर गाँव में बाढ़ के पानी का लेवल बुरी तरह से बढ़ गया और गाँव में भगदड़ मच गई। जैसे-तैसे लोग भाग कर तटबन्ध तक पहुँच कर अपनी जान बचा पाये और फिर सबने मिल कर रिंग बांध को काट दिया, तब कहीं जाकर पानी निकला और लोग घर वापस आ पाये। मगर इतना होते-होते सबको खुले आसमान के नीचे 1987 जैसे बरसात के मौसम में रिंग बांध पर हफ्तों रहने की सजा काटनी पड़ी। इतना सब हो जाने के बाद बिहार सरकार का जल संसाधन विभाग महादेव मठ पहुँचा, किसी मदद करने की नीयत से नहीं बल्कि उन लोगों पर मुकद्दमा करने के लिए जिन्होंने रिंग बांध को काट दिया था। बाद में इसकी छान-बीन हुई और एक स्थानीय मंत्री कृपा नाथ पाठक की कोशिशों से मामला रफा-दफा हुआ।

पूरब में तिलयुगा, पश्चिम में जल-जमाव और बीच में रिंग बांध के अन्दर महादेव मठ - कुल मिलाकर बाढ़ के समय इस गाँव की परिस्थितियाँ हर तरह से विपरीत हो जाती हैं। महादेव मठ के निवासी इन्द्र देव कुँअर (49) बताते हैं कि, ‘‘... 2002 में रिंग बांध काटा तो नहीं गया मगर पानी के दबाव से अपने आप कट गया। सरकार ने इस कटाव को भरने के लिए टेण्डर निकाला। मधुबनी जिला परिषद ने रिंग बांध के अन्दर पानी लाने वाले स्लुइस और बाहर निकास करने वाले स्लुइस के बीच में एक नहर खुदवाने के लिये 1,31,000 रुपये दिये मगर काम कुछ नहीं हुआ यद्यपि रकम जरूर खत्म हो गई। नतीजा यह हुआ कि रबी के मौसम में पश्चिमी कोसी नहर के एस्केप चैनेल से छोड़ा गया पानी महादेव मठ में घुसा और नजराने के तौर पर 50 एकड़ में लगी गहूँ की फ सल को अपने साथ लेता चला गया।

इस समय लोगों ने सरकार से दो मांगे रखी थीं, एक तो यह कि जिस स्लुइस गेट से रिंग के अन्दर पानी आता है उसे बन्द कर दिया जाय तथा दूसरे यह कि पानी की निकासी के लिए बनाये गये स्लुइस का आकार बढ़ाया जाय। वह कटाव बन्द करने के पहले और कुछ नहीं तो कुछ ह्यूम पाइप लगाने की मांग कर रहे थे। दोनों में से कुछ भी नहीं हुआ।

2002 में भी महादेव मठ से आधा किलोमीटर ऊपर पश्चिमी कोसी तटबन्ध को डकही और धरहरा गाँव के किसानों ने काट दिया था क्योंकि उनके गाँवों में बरसात का पानी काफी उफँचा चढ़ गया था और निकासी की कोई जगह नहीं थी। थोड़ा पानी तो जरूर निकला मगर उसके बाद नदी के अन्दर और बाहर बराबर लेवल रहने के कारण निकासी बन्द हो गई। काफी समय लगा पानी निकालने में। जनता द्वारा तटबन्ध काट दिये जाने के कारण थाना-पुलिस सब हुआ। कुछ अनजान लोगों पर मुकद्दमे हुये और मामला रफा-दफा हो गया। सिंचाई विभाग का एक असिस्टेंट इंजीनियर कुनौली से घटना स्थल तक तटबन्ध का कटाव देखने के लिए आया था मगर लोगों की भीड़ देखकर अनिष्ट की आशंका से वहाँ से चुपचाप खिसक लिया।

अब महादेव मठ में खरीफ की फसल नहीं होती। गेहूँ थोड़ा-बहुत होता है वह भी पश्चिमी कोसी नहर की मेहरबानी पर है कि उसका पानी इसे बहा न ले जाये। 1990 के बाद से रिंग बांध की मरम्मत बंद है। बिन्देश्वरी दूबे के समय यहाँ एक रेफ रल अस्पताल की बात उठी थी, शिलान्यास भी हुआ मगर कुछ नहीं हुआ। भागवत झा ‘आजाद’ ने भी आश्वासन दिया था, वह भी आश्वासन ही रह गया।

यहाँ से थोड़ी दूर पर तिलयुगा नदी पर एक लकड़ी का पुल हुआ करता था जिससे बरसात में रउआही, मैनही, बगेवा, खुरसाहा, बेला और दिघिया आदि गाँवों से सम्पर्क बना रहता था। 1987 की बाढ़ में यह पुल बह गया। जगन्नाथ मिश्र के कार्यकाल में बने इस पुल को फिर से बनाने की कोई कोशिश नहीं हुई।’’

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Post By: tridmin
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