योजना आयोग द्वारा कोसी परियोजना का मूल्यांकन 1977-78

कोसी तटबन्धों से होने वाले नफा-नुकसान का एक मूल्यांकन योजना आयोग के कार्यक्रम मूल्यांकन संस्थान ने 1977-78 में किया। यह मूल्यांकन यह जानने के लिए किया गया था कि इन तटबन्धों के निर्माण की वजह से इस इलाके में लोगों की आमदनी और रोजगार पर क्या असर पड़ा, जमीन की कीमतों में कोई बढ़ोतरी हुई या नहीं? आवागमन की सुविधाओं में कुछ सुधार हो पाया या नहीं?, स्वास्थ्य और सफाई के क्षेत्र में तटबन्धों की क्या भूमिका रही और विकास की प्रक्रियाओं पर उनका क्या असर पड़ा?

अध्ययन दल ने कोसी तटबन्ध वाले इलाकों को 5 हिस्सों में बांटा (चित्र-5.2) (1) तटबन्धों के बीच घिरे गाँव, (2) तटबन्धों के बाहर के 5 किलोमीटर दूरी तक के गाँव, (3) तटबन्धों के निचले छोरों के गाँव, (4) वह गाँव जो कि 1948 की बाढ़ से तबाह हुये थे मगर पहले (1) से (3) में जिनकी गिनती नहीं होती, और (5) वह गाँव जो कि 1954 की बाढ़ में फंस गये थे मगर ऊपर के (1) से (4) के किसी वर्गीकरण में नहीं आते।

अध्ययन दल ने पाया कि 1978 तक 40.32 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके तटबन्धों से 1,60,000 हेक्टेयर क्षेत्र पर बाढ़ से सुरक्षा मिली है और इनकी वजह से हर साल 6 से 10 करोड़ रुपये तक होने वाले बाढ़ के नुकसान को रोका जा सका है। इससे मछली पालन को बढ़ावा मिला है, संचार व्यवस्था में सुधार हुआ है, नहरों के किनारे पेड़ लगाये गये हैं, कुटीर उद्योगों का विकास हुआ है, आम आदमी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है और जमीनों की कीमत बढ़ी है। यद्यपि तटबन्धों के रख-रखाव पर सालाना एक करोड़ रुपया खर्च होता है फिर भी इन फायदों को देखते हुये यह जरूरी है और वैसे भी तटबन्धों की सुरक्षा के लिए यह किया ही जाना चाहिये।

कृषि के बारे में दल की रिपोर्ट जरूर चैंकाने वाली थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि तटबन्ध बनने के 20 साल बाद भी खेती के विकास में कोई खास बदलाव नहीं आया जिसकी उम्मीद की गई थी। सबसे मजे की बात थी कि, रिपोर्ट के अनुसार, तटबन्धों के बीच खेती का रकबा दुगुना हो गया था जबकि तटबन्ध से लगे बाहर वाले 5 किलोमीटर के क्षेत्र में जल-जमाव हो गया था और वहाँ फसल का रकबा पहले के मुकाबले कम हो गया था। धान की प्रति हेक्टेयर उपज में प्रायः सभी क्षेत्रों में कमी आई थी। तटबन्धों के अन्दर भी धान का रकबा जरूर बढ़ा मगर बालू-जमाव के कारण प्रति हेक्टेयर उपज कम हुई। रासायनिक खाद का उपयोग इस इलाके में बहुत कम हुआ और प्राकृतिक खाद का उपयोग नहीं के बराबर था।

बाढ़ सुरक्षा के बारे में दल संतुष्ट था मगर इस समय तक बहुअरवा (1981) या हेमपुर (1984) वाली घटनायें नहीं हुई थीं और आज जैसा जल-जमाव भी नहीं था। फिर भी, यह आश्चर्यजनक है कि डलवा, कुनौली, जमालपुर और भटनियाँ जैसी दुर्घटनाओं का कोई हवाला इस रिपोर्ट में कहीं भी नहीं मिलता है।

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Post By: tridmin
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