दीपक रस्तोगी

दीपक रस्तोगी
कराह रहा गंगा डेल्टा, बेअसर होती हर पहल
Posted on 03 Nov, 2012 11:04 AM
बंगाल में 520 किलमीटर तक बहती बड़े भूभाग का जीवन चलाती गंगा जब सागर से मिलने को होती है तो गति थामकर डेल्टा का रूप अख्तियार कर लेती है पर उत्तराखंड से निकलते ही उपेक्षा और दुर्व्यवहार झेलती गंगा का दर्द यहां बालू, पत्थर और वन माफिया और बढ़ा जाते हैं। राजनीतिक कारणों से उमा भारती की हालिया पहल भी बेअसर दिख रही है। अभी भारतीय जनता पार्टी की नेता उमा भारती ने बगाल के गंगासागर से अपने ‘गंगा समग्र अभियान’ की शुरुआत की। इस अभियान का विषय गंगा नदी के प्रदूषण और अस्तित्व के संकट की ओर ध्यान दिलाना भले था लेकिन बंगाल के राजनीतिक समीकरणों के चलते प्रभाव नहीं के बराबर रहा। शुरुआती चरण में ही बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस अभियान का विरोध कर दिया था। सरकार ने गंगासागर में जनसभा करने की अनुमति रद्द कर दी थी जिससे विवाद का जिन्न अभियान पर हावी हो गया। यह छुपा नहीं रह गया है कि उमा भारती ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी यह यात्रा शुरू की है। बंगाल के संदर्भ में भी उनके इस अभियान के राजनीतिक निहितार्थ थे लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गंगा के डेल्टा और डेल्टा के सैकड़ों किलोमीटर क्षेत्र में प्रदूषण और गंगा के अन्य संकटों का सवाल पहली बार उठाया गया। वैसे, गंगोत्री से वाराणसी और पटना तक कई संस्थाएं सवाल उठाती मिल जाएगी।
जिंदगी चूर-चूर करते क्रशर
Posted on 19 Oct, 2012 10:41 AM
बंगाल के चार जिलों में चल रहे छह सौ से अधिक क्रशर्स से 50 हजार की
राख और जहरीली गैस से बदरंग होती जिंदगी
Posted on 17 Oct, 2012 01:02 PM
अतीत में यह जगह हवाखोरी के लिए उत्तम मानी जाती थी। यहां कई धनवानों
धारा से ध्वस्त होती नागरिकता
Posted on 30 Aug, 2012 12:04 PM

मालदा के पंचानंदपुर और मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बों को कभी विकसित इलाका माना जाता था। लेकिन अब उनका अस्तित्व ही नहीं है। मालदा में 1980 से अब तक 4816 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। मालदा जिले से 40 हजार परिवार विस्थापित हो चुके हैं। 1995 के बाद से 26 गांव पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। इन गांवों में स्थित 100 प्राइमरी स्कूलों और 15 हाईस्कूलों का अब कहीं पता नहीं।

नाम: मंजूर आलम। उम्रः 52 साल। पताः खटियाखाना चक (द्वीप), हमीदपुर। कहने को तो यह हमीदपुर पश्चिम बंगाल मालदा जिले में पड़ना चाहिए। लेकिन बीच गंगा में नदी के इस द्वीप का पता कुछ भी नहीं है। मंजूर आलम ने 1979 में इस द्वीप के जिस छोर पर अपना घर बनाया था, वह जगह अब 15 किलोमीटर दूर निकल गई है। अब तक चार बार विस्थापित होकर नया आशियाना जोड़ते-जोड़ते अपना पता भी खो बैठा है मंजूर आलम। मालदा जिले में कालियाचक थ्री ब्लॉक के हमीदपुर ग्राम पंचायत इलाके में मंजूर आलम जैसे लगभग दो लाख लोगों में से लगभग हरेक की दास्तान है- जाएं तो कहां जाएं। नौ साल पहले तक ये सभी लोग पश्चिम बंगाल के नागरिक थे। लेकिन गंगा नदी में कटान के चलते उनका मूल गांव कटकर झारखंड की सीमा से जा लगा था।
मनरेगा योजना में नदी को मिला नया जीवन
Posted on 23 Aug, 2012 10:53 AM
23 अगस्त 2012, कोलकाता। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना को ढंग से लागू करने पर उसका एक सकारात्मक असर भी सामने आया है। सौ दिन काम देने की केंद्र सरकार की रोजगार गारंटी योजना के तहत न सिर्फ एक छोटी नदी को जीवन दान मिला है। बल्कि, बांध निर्माण होने से एक बड़े इलाके में हर साल आने वाली बाढ़ का संकट इस बार टल गया है। हावड़ा के उदयनारायनपुर इलाके में दामोदर वैली कारपोरेशन का अतिरिक्त जल अब कैचमेंट इलाके से बाहर निकल कर लोगों को तबाह नहीं कर रहा।

उदयनारायनपुर और आमता ब्लॉकों के अधिकांश हिस्से दामोदर नदी के पश्चिमी छोर से निकलने वाली शाखा नदी के किनारे पड़ते हैं। सिंचाई विभाग की भाषा में यह इलाका स्पिल कहा जाता है। जमींदारी के दिनों का एक जर्जर बांध बाढ़ की तेजी को नहीं झेल पा रहा था। हर साल ये इलाके जलमग्न हो जाते थे और लोगों के सामने विस्थापन का संकट होता था 2007 में जमींदारी बांध के पास से चार सौ मीटर का इलाका घंसक कर नदी में समा गया। तब से हालात और भी खराब हो चले थे। तब से पिछले साल तक सिंचाई विभाग, स्थानीय पंचायत, नगर विकास विभाग और ग्रामीण विकास विभागों के बीच यहां मरम्मत का खर्च वहन करने को लेकर खींचतान चल रही थी।

कहीं जरूरत से ज्यादा तो कहीं कम बारिश ने मुश्किले बढ़ाईं
Posted on 01 Aug, 2012 04:56 PM

पश्चिम बंगाल में 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच धान के पौधों को खेतों में रोपने का काम पूरा कर लिया जाता है। लेकिन

कोलकाता की ‘किडनी’ को लगा रोग
Posted on 26 Jun, 2012 11:33 AM

अंधाधुंध शहरीकरण की वजह से कोलकाता का वेटलैंड क्षेत्र तेजी से घट रहा है। एक अनुमान के अनुसार, अब यह क्षेत्र 10 हजार एकड़ तक सिमट कर रह गया है। इन दिनों सुंदरवन के इलाकों में जिस तरीके से विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ चल रहा है, इस कवायद का खास असर होता नहीं दिख रहा। यहां के पानी में ऑक्सीजन कम हो रहा है। आर्सेनिक की मौजूदगी के संकेत भी मिले हैं। पानी में आर्सेनिक की मात्रा 15 मिली ग्राम तक मिली है।

जंगली बिल्ली, छोटे बंदर, ऊदबिलाव, सफेद गर्दन वाले किंगफिशर, तितलियां और पानी के सांपों की विशेष प्रजातियां, जैसे अभी कल की ही बात लगती हैं। कोलकाता के एक हिस्से में ये वन्य जीव ऐसे दिखते थे, जैसे प्रकृति की किसी वीरान और हरी-भरी गोद में सांस ले रहे हों। हाल तक वन्य जीवों की ये विशेष प्रजातियां कोलकाता के पूर्वी छोर के किनारे से गुजरती बड़ी सड़क यानी ‘ईस्टर्न मेट्रोपोलिटन बाईपास’ के किनारे के तालाबों, दलदलों और छोटी झीलों के इर्द-गिर्द फैली हरियाली की विशेषता हुआ करती थी। वजह वन्य जीवों की ऐसी ढाई सौ से अधिक प्रजातियां सिर्फ और सिर्फ कोलकाता के जलभूमि क्षेत्र (वेटलैंड्स) में पाई जाती थी। लेकन अब भूमि के इस्तेमाल के कानूनों को तोड़-मरोड़ कर वेटलैंड्स पाटे जा रहे है और उन पर कॉलोनियां विकसित करने की होड़ लगी है, उससे प्रकृति का यह वरदान नष्ट हो रहा है। इससे भी कहीं ज्यादा रफ्तार से यहां की लुप्तप्राय प्रजातियों का रहा-सहा अस्तित्व भी संकट में है।
धंसती धरती जहर मिला जल
Posted on 08 Jun, 2012 09:29 AM

जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एन्वायरमेंटल स्टडीज की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार, कोलकाता के 114 में से 78 वार्ड इलाकों के नलकूपों के पानी में आर्सेनिक पाया गया है। 32 वार्ड इलाकों के नलकूपों में आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानक से बहुत अधिक प्रतिलीटर 50 माइक्रोग्राम पाई गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक प्रति लीटर 10 माइक्रोग्राम है। आर्सेनिक-दूषण दक्षिण कोलकाता, दक्षिण के उपनगरीय इलाके और मटियाबुर्ज के इलाकों में ज्यादा मिला है।

अंग्रेजों के जमाने में बसाए गए पूरब के महानगर कोलकाता का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। शहर अब अपने ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग कर रहा है। अंग्रेजों के जमाने में विकसित की गई ढांचागत सुविधाओं पर निर्भर इस शहर के प्रशासन को इन दिनों बड़ी दो चुनौतियों की चेतावनी मिल रही है। एक ओर कोलकाता की धरती धंस रही है और दूसरी ओर, यहां से पानी में आर्सेनिक जहर घुलने लगा है। धरती इसलिए धंस रही है, कि जमीन के भीतर का पानी सूख रहा है। अंग्रेजों के जमाने में बनी सीवर लाइनें भीतर-भीतर टूट रही हैं। पेयजल में आर्सेनिक इसलिए घुल रहा है, कि महानगर में कंक्रीट का जंगल बढ़ने के साथ ही भूगर्भ जल का दोहन बढ़ा, जलस्तर नीचे पहुंचा और गहरे नलकूपों (ट्यूबवेल) से पानी निकालने की प्रक्रिया में आर्सेनिक भी पानी के साथ आने लगा। महानगर में धरती के धंसान की समस्या ने पिछले दो- एक वर्षों में बड़ा रूप ले लिया है।
देशी मछलियां बचाने की मुहिम
Posted on 15 May, 2012 12:24 PM

बारिश के मौसम में जब खेत-खलिहान डूब जाते हैं, तब धान के चीकट मिट्टी वाले खेतों में देशी मछलियां दिखती हैं- पूंटी

प्रलय के पदचिह्न
Posted on 30 Apr, 2012 03:37 PM
भारत में पूर्वाशा और बांग्लादेश में दक्षिणी तालपट्टी कहा जाने वाला द्वीप समुद्र में समा चुका है, तो घोड़ामारा द्वीप का 90 फीसदी हिस्सा जलसमाधि ले चुका है। क्या यह प्रलय की आहट है? न भी हो तो भी बंगाल की खाड़ी में समुद्र का 3.3 मिमी प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़ता जलस्तर वर्ष 2020 तक 14 द्वीपों का अस्तित्व मिटा चुका होगा। इन्ही द्वीपों के बढ़ते संकट को उजागर कर रहे हैं दीपक रस्तोगी।

वैज्ञानिकों की नजर में भारत का घोड़ामारा द्वीप, समंदर बढ़ने के खतरे का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह द्वीप क्षेत्रफल में सबसे बड़ा और जैव-विविधता के लिहाज से समृद्ध रहा है। पिछले कुछ वर्षों में तो यह मशहूर पर्यटन स्थल भी बन चुका था। बंगाल की खाड़ी में स्थित यह द्वीप कभी नौ वर्ग किलोमीटीर के क्षेत्र में फैला हुआ था। पिछले 25 वर्षों में इसका क्षेत्रफल घटकर 4.7 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इस द्वीप को लेकर बड़े पैमाने पर चिंता जताई जा रही है।

ये प्रलय के पदचिह्न नहीं तो और क्या हैं? समंदर का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है और जीवन से सराबोर द्वीप शनैःशनैः जलसमाधि ले रहे हैं। भारत और बांग्लादेश जिस एक द्वीप पर अपना हक जताते हुए पिछले तीन दशकों से खुद को विवादों में उलझाए हुए थे उसका आदर्श न्याय प्रकृति ने खुद ही कर दिया है। ताजा शोध रपटों के अनुसार, भारत द्वारा पूर्वाशा और बांग्लादेश द्वारा दक्षिणी तालपट्टी नाम से अलंकृत साढ़े तीन वर्ग किलोमीटर का वह द्वीप अब समुद्र में समा चुका है। बंगाल की खाड़ी में 70 के दशक में खोज निकाले गए एक द्वीप पर दोनों ही देश अपना हक जता रहे थे।
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