जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एन्वायरमेंटल स्टडीज की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार, कोलकाता के 114 में से 78 वार्ड इलाकों के नलकूपों के पानी में आर्सेनिक पाया गया है। 32 वार्ड इलाकों के नलकूपों में आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानक से बहुत अधिक प्रतिलीटर 50 माइक्रोग्राम पाई गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक प्रति लीटर 10 माइक्रोग्राम है। आर्सेनिक-दूषण दक्षिण कोलकाता, दक्षिण के उपनगरीय इलाके और मटियाबुर्ज के इलाकों में ज्यादा मिला है।
अंग्रेजों के जमाने में बसाए गए पूरब के महानगर कोलकाता का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। शहर अब अपने ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग कर रहा है। अंग्रेजों के जमाने में विकसित की गई ढांचागत सुविधाओं पर निर्भर इस शहर के प्रशासन को इन दिनों बड़ी दो चुनौतियों की चेतावनी मिल रही है। एक ओर कोलकाता की धरती धंस रही है और दूसरी ओर, यहां से पानी में आर्सेनिक जहर घुलने लगा है। धरती इसलिए धंस रही है, कि जमीन के भीतर का पानी सूख रहा है। अंग्रेजों के जमाने में बनी सीवर लाइनें भीतर-भीतर टूट रही हैं। पेयजल में आर्सेनिक इसलिए घुल रहा है, कि महानगर में कंक्रीट का जंगल बढ़ने के साथ ही भूगर्भ जल का दोहन बढ़ा, जलस्तर नीचे पहुंचा और गहरे नलकूपों (ट्यूबवेल) से पानी निकालने की प्रक्रिया में आर्सेनिक भी पानी के साथ आने लगा। महानगर में धरती के धंसान की समस्या ने पिछले दो- एक वर्षों में बड़ा रूप ले लिया है।बचाव के रोडमैप पर गंभीरता से चिंतन का अभाव दिखता है।कुछ समय पहले राजभवन के गेट के सामने और सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग के बीच की सड़क पर 10 फुट जमीन धंस गई। मामला राजभवन के सामने का था तो बात मुख्यमंत्री – राज्यपाल तक चली गई। आनन-फानन में मरम्मत की गई। बात आई-गई हो गई लेकिन पर्यावरणविद् इसे खतरे की घंटी बता रहे हैं। कोलकाता में 1876 में गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन में नौ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कुल 200 किलोमीटर लंबी भूमिगत सीवर लाइन बनाई गई थी। उस जमाने में ईंटों को सुखी-चूने से जोड़कर सीवर लाइनें बनाई जाती थी। इन लाइनों के 10 फुट ऊपर कोलकाता की सड़कें हैं। बीच में मिट्टी और कंकड़-पत्थर। किसी भी कारण से मिट्टी खिसकी तो पुराने जमाने की सीवर लाइनों को क्षति पहुंचनी ही है। राजभवन के पश्चिमी गेट के सामने की सड़क इसी कारण धंस गई थी। राजभवन के इर्द-गिर्द मध्य कोलकाता के इलाकों से लेकर दक्षिण में खिदिरपुर-वाटगंज तक पुराने जमाने की सीवर लाइनों के धंसने की अब तक 29 घटनाएं हो चुकी हैं।
कोलकाता में एक समय मानसून के पहले पुराने जमाने की सीवर लाइनों के ऊपर कंक्रीट का स्लैब डालने की 97 करोड़ की योजना हाथ में ली गई थी लेकिन राजनीतिक वजहों से योजना फाइलों में ही पड़ी है। इस साल भी मानसून के पहले यह कवायद दिख रही है, तृणमूल के बोर्ड ने प्रस्ताव को अपनी ‘विशेषज्ञ कमेटी’ और कमेटी की ‘सलाहकार’ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास रिव्यू के लिए भेज रखा है। कोलकाता नगर निगम के चीफ इंजीनियर अमित रॉय के अनुसार, ‘फिलहाल सीवर लाइनों की मरम्मत कर ऊपर से कंक्रीट डालने का काम चल रहा है लेकिन जरूरत पूरी सीवर लाइन के मरम्मत की है।’ जाहिर है, जब तक पुख्ता व्यवस्था नहीं होती, तब तक जगह-जगह जमीन धंसती रहेगी। यह समस्या आगे चलकर बड़ा रूप लेगी, इसमें दो राय नहीं।
![हाथों पर आर्सेनिक युक्त जल का असर हाथों पर आर्सेनिक युक्त जल का असर](/sites/default/files/hwp/import/images/The effect of water containing arsenic in the hands.jpg)
दक्षिण कोलकाता के पॉश इलाके पार्क स्ट्रीट, लाउडन स्ट्रीट, जोधपुर पार्क, लेक गार्डेस समेत कस्बा, टॉलीगंज, भवानीपुर, जादवपुर, नाकतला, बांसद्रोणी, बेहाला, उत्तर कोलकाता के सिंथी, मानिकतला इलाकों में सामान्य से अधिक की मात्रा मिली है। जिस इलाके में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आवास है, उस 73 नंबर वार्ड मेयर सोभन चट्टोपाध्याय के 132 नंबर वार्ड, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के 65 नंबर वार्ड के नलकूपों में आर्सेनिक की मात्रा 50 माइक्रोग्राम से अधिक पाई गई है। जादवपुर विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष दीपंकर चक्रवर्ती के अनुसार, ‘17 साल पहले जिन इलाकों में आर्सेनिक नहीं मिला था, वे इलाके भी अब आर्सेनिक दूषण के मानचित्र पर आ गए हैं। कोलकाता में छह हजार से अधिक नलकूपों से हर साल नमूने लेकर 17 साल के आंकड़ों की समीक्षा की गई है। 72 फीसदी इलाकों का पानी इस्तेमाल लायक नहीं है।’
लेकिन लोग कितने सचेत हैं? दक्षिण कोलकाता के अभिजात गोल्फ ग्रीन इलाके के एक बहुतलीय भवन में जलापूर्ति के लिए छह सौ फुट गहरा नलकूप बिठाया गया है। नलकूप के पानी को गार्डनरीच पंपिंग स्टेशन से आपूर्ति किए गए पानी में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इस बहुतलीय भवन के पानी के नमूने में आर्सेनिक की मात्रा सामान्य से 11 गुना अधिक पाई गई। लेकिन इसके बावजूद लोग पानी का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। जादवपुर इलाके में आर्सेनिक दूषण से पिछले एक साल में पांच व्यक्तियों की मौत हो गई है लेकिन सरकार चेतती नहीं दिख रही। मेयर शोभन चट्टोपाध्याय के अनुसार, ‘12 साल पहले जब वे नगर पालिका में मेयर परिषद के सदस्य थे, तब उन्होंने कुछ इलाकों में आर्सेनिक जांच कराई थी। हाल में किसी सर्वे के बारे में उन्हें नहीं पता।’
![मिट्टी में आर्सेनिक की जांच करते विशेषज्ञ मिट्टी में आर्सेनिक की जांच करते विशेषज्ञ](/sites/default/files/hwp/import/images/arsenic in bengal.jpg)
जहर मिले जल पर हुए फैसलों में नजर आती राजनीति की चिंता
हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘जल धरे, जल भरो’ अभियान की शुरुआत की। कहा गया कि भूगर्भ जल-स्तर जहां कम हो गया है, वहां ट्यूबवेल लगाने की मनाही होगी। लेकिन हफ्ता भर भी नहीं बीता कि राज्य के 341 ब्लॉकों में से 303 में डीप ट्यूबवेल लगाने की अनुमति जारी कर दी गई। सरकार फैसले के पीछे किसानों का हित बता रही है । पर पर्यावरणविद इस फैसले से भूगर्भ जल-स्तर के तेजी से घटने और पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने की गहरी दुश्चिंता जरा रहे हैं। राज्य के 81 ब्लॉकों में आर्सेनिक और 49 में फ्लोराइड का पता चलने पर 2005 में बंगाल सरकार ने ‘भूगर्भ संपदा नियंत्रण अधिनियम’ बनाया था। 38 ब्लॉकों को काली सूची में डाल दिया गया था। इन इलाकों में सिंचाई के लिए बिजली चालित पंपसेट लगाने की मनाही कर दी गई लेकिन राज्य सरकार के ताजा फैसलों के चलते पुराने तमाम नियम शिथिल कर दिए गए हैं। कई जगह तो 30 हजार लीटर पानी निकालने तक की छूट दी गई है।
![गहरे नलकूपों से निकलता है आर्सेनिक युक्त पानी गहरे नलकूपों से निकलता है आर्सेनिक युक्त पानी](/sites/default/files/hwp/import/images/arsenic in kolkata.jpg)
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