पश्चिम बंगाल में 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच धान के पौधों को खेतों में रोपने का काम पूरा कर लिया जाता है। लेकिन इस साल पूरा अगस्त लगने की संभावना है। धान की रोपाई के लिए कम से कम 350 मिमी बारिश की जरूरत होती है। अब तक दो सौ से 250 मिलीमीटर बारिश हो सकी है। इतनी मात्रा में खेतों में जमा पानी से सिर्फ बिजाई हो सकी है।
लेट लतीफ मानसून की वक्र दृष्टि बंगाल के किसानों की मुश्किलों में और बढ़ोतरी कर रही है। बंगाल के 18 में से 11 जिलों में सूखे जैसे हालात हैं। अनाज का भंडार कहे जाने वाले चावल और दलहन-तिलहन उत्पादक दक्षिण बंगाल के जिलों में 44 फीसदी कम बारिश के चलते खेत प्यासे हैं। पर्याप्त बारिश न होने के चलते किसान अपने खेतों की निड़ाई-गुड़ाई कर आसमान की ओर टकटकी लगाए हैं। दूसरी ओर, फल और सब्जी उत्पादक उत्तर बंगाल के तीन प्रमुख जिलों में औसत से 70 फीसदी ज्यादा बारिश के चलते खेती तबाह हो गई है।लेट मानसून के कारण बंगाल के दक्षिणी इलाकों- पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर, उत्तर और दक्षिण 24 परगना, पुरुलिया, बांकुड़ा, वीरभूम, बर्दवान, नदिया, हावड़ा, हुगली और कोलकाता में जल संकट की स्थिति है। एक से 28 जून के बीच इन इलाकों में अमूमन 231 मिलीमीटर बारिश होती है लेकिन मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष इस अवधि में सिर्फ 139 मिलीमीटर बारिश हुई है। बंगाल में चार-पांच जून तक मानसून पहुंच जाता है। इस साल 18 जून को मानसून पहुंचा है। बंगाल के मैदानी इलाकों के ऊपर अब तक चक्रवाती परिदृश्य नहीं दिखा है। मौसम विभाग के क्षेत्रीय निदेशक जीसी देवनाथ के अनुसार, ऐसे में पर्याप्त बारिश की उम्मीद नहीं की जा सकती।
राज्य का कृषि विभाग हालात को अब भी काबू से बाहर नहीं मानता। कृषि विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं। आपातकालीन नौबत नहीं है। खरीफ की फसल प्रभावित जरूर हो रही है लेकिन अगर अब भी बारिश हो जाए तो काम चल जाएगा। अमूमन 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच धान के पौधों को खेतों में रोपने का काम पूरा कर लिया जाता है। लेकिन इस साल पूरा अगस्त लगने की संभावना है। धान की रोपाई के लिए कम से कम 350 मिमी बारिश की जरूरत होती है। अब तक दो सौ से 250 मिलीमीटर बारिश हो सकी है। इतनी मात्रा में खेतों में जमा पानी से सिर्फ बिजाई हो सकी है।
बंगाल के अधिकांश जिलों में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। अधिकांश जगह 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है और जिला प्रशासन को 70 फीसदी से अधिक का राजस्व कृषि कार्यों से आता है। धान मुख्य फसल है। कृषि विभाग के अनुसार, राज्य में 44 फीसदी कम बारिश हुई है और कहीं-कहीं बारिश हुई भी है तो वह धान की फसल लायक पर्याप्त नहीं है। पुरुलिया सर्वाधिक प्रभावित जिला है। वहां 65 फीसदी कम बारिश हुई है। इसके अलावा वीरभूम, बांकुड़ा, हुगली और बर्दवान जिलों का नंबर आता है, जिन्हें धान की खेती के मामले में पश्चिम बंगाल का ‘चावल का कटोरा’ माना जाता रहा है। इन जिलों में खेती 30, 33,74 और 77 फीसदी तक सिमट गई है।
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