अरुण तिवारी

अरुण तिवारी
जाओ, मगर सानंद नहीं, जी डी बनकर - अविमुक्तेश्वरानंद
Posted on 20 Mar, 2016 04:27 PM


स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद -10वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:

एक अभियान बने भारतीय जल दर्शन
Posted on 20 Mar, 2016 03:20 PM

22 मार्च, 2016 -विश्व जल दिवस पर विशेष



यो वै भूमा तत्सुखं नाल्पे सुखमस्ति भूमेव सुखम।
भूमा त्वेव विजिज्ञासित्वयः।।


विश्व जल दिवसहम जगत के प्राणी जो कुछ भी करते हैं, उसका उद्देश्य सुख है। किन्तु हम यदि जानते ही न हों कि सुख क्या है, तो भला सुख हासिल कैसे हो सकता है? यह ठीक वैसी ही बात है कि हम प्रकृति को जाने बगैर, प्रकृति के कोप से बचने की बात करें; जल और उसके प्रति कर्तव्य को जाने बगैर, जल दिवस मनायें। संयुक्त राष्ट्र संघ ने नारा दिया है: ‘लोगों के लिये जल: लोगों के द्वारा जल’। उसने 2016 से 2018 तक के लिये विश्व जल दिवस की वार्षिक विषय वस्तु भी तय कर दी हैं: वर्ष 2016 - ‘जल और कर्तव्य’; वर्ष 2017 - ‘अवजल’ अर्थात मैला पानी; वर्ष 2018 - ‘जल के लिये प्रकृति आधारित उपाय’। अब यदि हम इन विषय-वस्तुओं पर अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहते हैं, तो हमें प्रकृति, जल, अवजल और अपने कर्तव्य को जानना चाहिए कि नहीं?

मेरे जीवन का सबसे कमजोर क्षण और सबसे बड़ी गलती : स्वामी सानंद
Posted on 13 Mar, 2016 01:40 PM


स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद -नौवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :

.गंगाप्रेमी भिक्षु न बोलते हैं, न सही नाम बताते हैं और जन्म स्थान। पैर में भी कुछ गड़बड़ है। 70 की आयु होगी। उन्होंने भी संकल्प लिया था। वह हरिद्वार भी गए। हरिद्वार में उन्होंने भी अन्न छोड़ने की बात कही। फल-सब्जी भी उन्हें जबरदस्ती ही दिये जाते थे। बनारस में भी वह साथ में अस्पताल साथ गए।

 

सरकार के दूत थे डॉ. राजीव शर्मा


कोई तय नहीं था, लेकिन खुद पहल कर सन्यासी के हिसाब से हमने सोच लिया था कि पहले कौन जाएगा। पहले मैं, फिर भिक्षु, फिर कृष्णप्रियम और फिर बाकी। इस बीच क्या हुआ कि डिवीजनल हॉस्पीटल के डॉ. राजीव शर्मा आये।

श्री श्री-यमुना विवाद : राष्ट्रीय हरित पंचाट का आदेश
Posted on 10 Mar, 2016 07:04 PM


हिंदी प्रस्तुति: अरुण तिवारी

विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन के यमुना भूमि पर किए जाने से उपजे विवाद से आप परिचित ही हैं। विवाद को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट ने दिनांक नौ मार्च, 2016 अपना आदेश जारी कर दिया है। खबर है कि प्रारम्भिक मुआवजा राशि के आदेश से असंतुष्ट श्री श्री रविशंकर जी ने सर्वोच्च न्यायालय में जाने का निर्णय लिया है। मेरा मानना है कि आदेश ने पर्यावरणीय सावधानियों के अलावा प्रशासनिक कर्तव्य निर्वाह के पहलुओं पर भी दिशा दिखाने की कोशिश की है।

मूल आदेश अंग्रेजी में है। पाठकों की सुविधा के लिए आदेश का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की गई है। यह शब्दवार अनुवाद नहीं है, किंतु ध्यान रखा गया है कि कोई तथ्य छूटने न पाये। समझने की दृष्टि से कुछ अतिरिक्त शब्द कोष्ठक के भीतर जोङे गये हैं। अनुरोध है कि कृपया अवलोकन करें, विश्लेषण करें और अपने विश्लेषण/प्रतिक्रिया से हिंदी वाटर पोर्टल को अवगत करायें।

आदेश दस्तावेज की हिंदी प्रस्तुति

17 सवालों के घेरे में श्रीश्री की श्री
Posted on 08 Mar, 2016 04:33 PM


जिसने दिया ज्यादा और लिया कम, हम इंसानों ने उसे देवता का दर्जा दिया। जिसने लिया ज्यादा, दिया कम, उसे हमने दानवों की श्रेणी में डाल दिया। स्पष्ट है कि हम इंसानों ने पहले प्रतिमान बनाए; फिर जिन्हें उन प्रतिमानों पर खरा माना, उनकी प्रतिमाएँ बनाईं। यह भी हुआ कि जब भी टूटे, पहले प्रतिमान टूटे और फिर प्रतिमाएँ। प्रतिमाओं के टूटने से देवता तो नहीं मरता, किन्तु प्रतिमा बनाने वालों की आस्था टूट जाती है। अतः आस्था की ऐसी प्रतिमाओं का टूट जाना, देश-काल की समग्र दृष्टि से कभी अच्छा नहीं होता।

सम्भवतः इसीलिये आर्यसमाज ने आस्था को तो अपनाया, किन्तु प्रतिमाओं से परहेज किया। असली तर्क मैं नहीं जानता, किन्तु आर्यसमाज की सन्तान श्री श्री और उनकी प्रतिमा बनाने वाला पॉश समाज.. दोनों यह बात अवश्य जानते होंगे; बावजूद, इसके यदि आज दिल्ली के यमुना किनारे संस्कृतियों को जोड़ने और विविधताओं का सम्मान करने के नाम पर नदी माँ के साथ सद्व्यवहार के अरमान टूट रहे हों

गंगा तप की राह चला सन्यासी सानंद
Posted on 06 Mar, 2016 11:04 AM


स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - आठवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :

.स्वरूपानंद जी की प्रेरणा से इस बीच हमने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा कि कुम्भ से पहले कुछ कार्य हो जाना चाहिए।

 

प्रवाह की माँग, खेती का ख्याल


जनवरी-फरवरी में प्रयाग में गंगा प्रवाह 530 घन मीटर प्रति सेकेण्ड होता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि माघ मेले में प्राकृतिक प्रवाह का आधा हो; यह 265 घन मीटर प्रति सेकेण्ड हुआ। हमने नवम्बर तक 250 घन मीटर प्रति सेकेण्ड के प्रवाह की माँग की। हमने कहा कि यह निरन्तर हो। निगरानी के लिये मॉनिटरिंग कमेटी हो; ताकि नापा जा सके। कमेटी में हमारा प्रतिनिधि भी हो।

जमुना जी को दरद न जाने कोय
Posted on 29 Feb, 2016 04:18 PM


ताज्जुब है कि प्रेम और शान्ति के सन्देश के नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायी उस धारा को ही भूलने को तैयार हैं, जो शान्ति की निर्मल यमुनोत्री से निकलकर, प्रेम का प्रतीक बने ताजमहल को आज भी सींचती है! बांकेबिहारी को पूजने वाले भी भला कैसे भूल सकते हैं कि कालियादेह पर नन्हें कान्हा का मंथन-नृतन कृष्ण की कृष्णा को विषमुक्त कराने की ही क्रिया थी?

आज है कोई जो कान्हा बन कालियादेह को सबक सिखाए? पुरानी दिल्ली वालों को भी भूलने का हक नहीं कि तुगलकाबाद के किले से लाकर कश्मीरी गेट से अजमेरी गेट के बीच देल्ही को बसाने वाली यमुना ही थी। जिस लालकिले की प्राचीर से उगते हुए आजादी का सूरज कभी सारी दुनिया ने देखा था, उसकी पिछली दीवार से जिसने इश्क किया, वे लहरें भी इसी यमुना की थी। भला कोई भारतीय यह कैसे भूल सकता है!

यमुना के लिये अनुरोध पत्र
Posted on 28 Feb, 2016 12:09 PM
28.02.2016
प्रतिष्ठा में

श्री श्री रविशंकर जी
आर्ट ऑफ लिविंग भारत
सन्दर्भ : विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन (11-13 मार्च,2016)
स्थल : यमुना खादर
विषय : स्थान परिवर्तन हेतु अनुरोध


श्रद्धेय गुरूदेव,
प्रणाम।



माननीय, नदी जीवन्तता के सिद्धान्तों के आधार पर न्यूजीलैंड और इक्वाडोर जैसे आधुनिक मान्यता वाले देशों ने हाल के वर्षों में नदी को ‘नैचुरल पर्सन’ का संवैधानिक दर्जा दिया है, किन्तु भारत, तो बहुत पहले नदियों को माँ (नैचुरल मदर) मानने वाला देश हैं। विश्व सांस्कृतिक उत्सव में हमें 155 देशों से लोगों केे आने की सूचना है। दुनिया के तमाम ऐसे देश जो नदियों को माँ नहीं कहते, किन्तु वे भी आज नदियों के साथ शुचिता का व्यवहार सुनिश्चित करने में लग गए हैं। उन्हें क्या सन्देश देंगे हम? यमुना जी की जीवन्तता के घटकों के साथ दुर्व्यवहार कर, क्या आप भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक सोच का उचित प्रतिबिम्ब, दुनिया के सामने पेश करेंगे? हमने आपको हमेशा शान्ति और प्रेम के मार्ग पर चलने और चलाने वाले आध्यात्मिक पुरुष के रूप में जाना है। जहाँ अशान्ति हुई, वहाँ शान्तिदूत के रूप में आपको अपनी भूमिका निभाते देखा है। आपकी पहल पर आयोजित विश्व सांस्कृतिक उत्सव को लेकर अशान्ति का माहौल बनता देख हम चिन्तित हैं।

चिन्ता इसलिये भी है कि कई वर्ष पूर्व आपने स्वयं यमुना निर्मलीकरण में सहयोगी दिल्ली आयोजन का नेतृत्व किया था और आज आप स्वयं यमुना नदी की अविरलता-निर्मलता के सिद्धान्तों को भूलते अथवा जानबूझकर नजरअन्दाज करने की मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं।
अलकनन्दा के लिये नया चोला, नया नाम, नई जिम्मेदारी
Posted on 28 Feb, 2016 10:58 AM


स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - सातवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:

.आठ सितम्बर को चातुर्मास समाप्त हो गया। मेरा स्वास्थ्य अच्छा था। मैं जगन्नाथपुरी गया, मालूम नहीं क्यों? अकेला गया; पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से। नक्सल के कारण वह टाटानगर में 10 घंटे खड़ी रही। पुरी में स्वामी निश्चलानन्द जी से मिला। उनसे बातचीत कर लगा कि वह भारतीय संस्कृति के काम में लगे हैं, लेकिन गंगाजी में उनकी पकड़ नहीं है। फिर मैं स्वरूपानन्द जी के पास गया।

एक हायर सेकेण्डरी स्कूल, जो शंकराचार्य जी ने अपनी माँ की याद में स्थापित किया था, वहाँ 10 हजार की भीड़ थी। उन्होंने वहीं मुझे सम्मानित भी किया और बोलने का मौका भी दिया। स्वरूपानन्द जी ने मंच से कहा - “पहले हमने इनका अनशन सहजता से लिया, लेकिन इस बार जल छोड़ दिया, तो हमें चिन्ता हुई और मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि इनकी रक्षा होनी चाहिए।’’

भिक्षा, जल त्याग और भागीरथी इको सेंसेटिव जोन
Posted on 21 Feb, 2016 10:23 AM

स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - छठा कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :


.वर्ष 2010 में हरिद्वार का कुम्भ अपेक्षित था। शंकराचार्य जी वगैरह सब सोच रहे थे कि कुम्भ में कोई निर्णय हो जाएगा। कई बैठकें हुईं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ज्ञानदास जी ने घोषणा की कि यदि परियोजनाएँ बन्द नहीं हुई, तो शाही स्नान नहीं होगा। लेकिन सरकार ने उन्हें मना लिया और कुम्भ में शाही स्नान हुआ। कुम्भ के दौरान ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के मण्डप में एक बड़ी बैठक हुई। मेरे अनुरोध पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी भी आये। अन्ततः यही हुआ कि आन्दोलन होना चाहिए।

भीख माँगकर, परियोजना नुकसान भरपाई की घोषणा


...फिर तीन मूर्ति भवन में मधु किश्वर (मानुषी पत्रिका की सम्पादक) व राजेन्द्र सिंह जी ने एक बैठक की। उसमें जयराम रमेश (तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री) भी थे और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी (शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी के शिष्य प्रतिनिधि) भी थे।
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