स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद का चौथा कथन, आपके समक्ष पठन-पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
18 जून को ऊर्जा सचिव, मेरे लिये उत्तराखण्ड सरकार का पत्र लेकर आये। मैंने उन्हें धन्यवाद किया; लिखा कि यदि उत्तराखण्ड ने यह बलिदान किया है, तो इसकी एवज में उत्तराखण्ड को कम्पनसेट करना चाहिए। मैं भी उसमें कन्ट्रीब्यूट करने को तैयार हूँ। इसी क्रम में 20 जून की दोपहर डैम समर्थकों का एक समूह आया। ठेकेदार लोग थे। उन्होंने मारपीट करने की कोशिश की। मेरा सारा परिवार वहाँ था; सो मारपीट तो नहीं कर पाये, लेकिन गाली-गलौच तो उन्होंने की ही।
दिल्ली शिफ्ट करने का निर्णय और साथी
जैसा कि मैंने पहले तय किया था, पत्र मिलने के बाद मैंने आगे का अनशन दिल्ली में जारी रखने की निश्चय दोहराया। यह निर्णय मेरा था, लेकिन मेरे इस निर्णय पर आदरणीय शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी, राजेन्द्र सिंह जी इससे खुश नहीं थे।
मेहता जी, चोपड़ा जी, गिरधर जी.. ये सभी इस बात से नाखुश थे कि चिदानन्द मुनि..हंसदेवाचार्य के हाथों आये पत्र पर निर्णय कैसे ले सकते हैं। लेकिन मैं तो दिल्ली शिफ्ट करने का निर्णय ले चुका था। हम चले, तो परमार्थ निकेतन रुके।
परिवार के लोग खुश थे; ये लोग खुश नहीं थे। उधर मुझे अखरा कि उत्तरकाशी के बाद मुझसे अलग हो गए। वे स्वरूपानन्द जी के यहाँ रुके। वे साधुओं को स्वरूपानन्द जी के साथ रखना चाहते थे और बाकी को अलग। फिर कहा कि तरुण भारत संघ के साथी मुझसे मिलना चाहते हैं। उनसे मीटिंग की जगह, हर की पौड़ी तय कर दी।
मेरा झुकाव
मुझसे मेरा झुकाव पूछा था, जो सचमुच हिन्दुत्व की ओर है और कांग्रेस ने इसे कभी सपोर्ट नहीं किया। इसलिये मैं कांग्रेस के पक्ष में नहीं था, लेकिन खिलाफ भी नहीं हूँ। जहाँ उनके निर्णय अच्छे दिखते हैं, मैं समर्थन करता हूँ। मैं मानता हूँ कि कोई भी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता। सर्वधर्म समान हो सकता है। मेरे दोस्त मुस्लिम हैं। मैं उनके घर आता हूँ, जाता हूँ..खाता हूँ।
खैर, ये लोग मुझे रामदेव से भी मिलाने लेे गए। रामदेव ने फोन किया शिंदे को। शिंदे ने कहा कि वह बाहर हैं; दिल्ली पहुँचकर बात करेंगे।
भाजपाई होने का ठप्पा
दिल्ली पहुँचकर मैंने अनशन जारी रखा। तब तक यह हो गया कि मैं भाजपा के पाले में हूँ। भाजपा के लोग मिलने आने लगे। उसके बाद चिदानन्द मुनि और हंसदेवाचार्य ऊर्जा मंत्रालय से एक पत्र लेकर आ गए पत्र, हंसदेवाचार्य को सम्बोधित था। पत्र में लिखा था कि भागीरथी पर सभी जगह पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिये हाईपावर कमेटी का गठन किया जाएगा। उसमें हंसदेवाचार्य के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। मुझसे कहा गया कि इस शर्त पर मैं अपना उपवास खोल दूँ।
अनशन और राजनीति
30 जून (2008) को उपवास खोलने का समय आया, तो अशोक सिंघल, मदनलाल खुराना..कई आ गए। काफी समय साथ रहे। अनशन खुल गया। मैंने राजेन्द्र को कहा कि साथ जाएँगे; उन्होंने इनकार कर दिया।
अगले दिन, एक जुलाई को पता चला कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद व माधवाश्रम भी दिल्ली आ गए हैं। गोविंदाचार्य जी भी आयेे। वही मुझे स्वामी स्वरूपानंद जी के पास लेकर गए। मुझे अच्छा लगा कि भाजपा का होने का बावजूद, उन्हें स्वरूपानंद जी के पास जाने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी। स्वरूपानन्द जी ने कहा, ‘आपने जल्दबाजी कर दी। थोड़े दिन ठहर जाते, तो सम्मानपूर्वक उपवास तोड़ते।’
हाई पावर कमेटी
खैर, मैं एन्वायरोटेक (स्वामी जी के छात्र रहे श्री एस के गुप्ता जी की ओखला, दिल्ली स्थित कम्पनी) में रुका। हाई पावर कमेटी के चेयरमैन ओपी शर्मा, जो कि एनटीपीसी के चेयरमैन भी थे; वह एन्वायरोटेक आये। उन्होंने मुझसे कहा कि आप हंसदेवाचार्य जी के प्रतिनिधि बनकर कमेटी में शामिल हो जाइए। उन्होंने एक खत दिया।
हंसदेवाचार्य जी ने उनसे पूछा कि कमेटी में सरकार के कितने सदस्य रहेंगे। उन्होंने कहा - छह। हंसदेवाचार्य जी ने कहा, ‘हमारे भी छह रहेंगे।’ उन्होंने छह नाम दिये। मुझसे कहा कि एन्वायरनमेंटल फ्लो आप समझाइएगा। मैंने कहा कि एक ट्रेनिंग आर्गनाइज कीजिए।
गंगा सम्मेलन का आश्वासन
फरवरी, 2009 तक रिपोर्ट आनी थी और चिदानन्द मुनि व रामदेव जी अमेरिका चले गए थे। तय हुआ कि जब लौटेंगे, तो कानपुर में गंगा सम्मेलन होगा। विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा करेंगी। सितम्बर तक एन्वायरनमेंटल फ्लो की बात भी आगे बढ़ जाएगी। स्वास्थ्य लाभ की इच्छा हुई; सो, जुलाई-अगस्त में दिल्ली रुका।
अगस्त अन्त में चिदानन्द मुनि जी और रामदेव जी आ गए। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित गुरुद्वारे में सभा हुई। मुझे और एस.के. गुप्ता जी को सम्मानित किया गया। कमेटी बनी। यह सोचकर कि चिदानन्द जी और हंसदेवाचार्य ने मुख्य भूमिका निभाई है, मैं पूरा सितम्बर और आधा अक्टूबर, उनके परमार्थ निकेतन में रुका।
पुनः अनशन का निर्णय
उधर हाई पावर कमेटी कोई काम नहीं कर रही थी। इस कमेटी में हंसदेवाचार्य जी के प्रतिनिधि के रूप में परितोष त्यागी, स्वरूपानंद जी के प्रतिनिधि के रूप में.... राजेन्द्र सिंह आदि थे। वे मुझे भी चाहते थे। मैं चाहता था कि वे या तो मुझे कमेटी का कोऑर्डिनेटर बनाएँ या चेयरमैन; सो, मैं नहीं था। मेरी तरफ से रवि चोपड़ा (लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून) ऑब्जर्वर के रूप में जाते थे। वही अकेले थे, जो एन्वायरनमेंटल फ्लो जानते थे। लेकिन कुछ हो नहीं रहा था। तीन महीने बाद कुछ नहीं हुआ, तो मैंने फिर अनशन का निर्णय लिया।
दूसरा झटका
चिदानन्द जी ने कहा कि इस बार का अनशन मैं परमार्थ निकेतन में ही करूँ। बात जुबानी थी, किन्तु उन्होंने संकल्प दिया था। हंसदेवाचार्य जी के सामने बात हुई थी। जब मैंने लिखकर दिया, तो चिदानन्द जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन में अनशन की इज़ाजत नहीं दे सकते। यह मेरे लिये दूसरा झटका था।
तीसरा झटका
कोई कहे कि रामदेव जी को क्यों नहीं कहा; उन्हें भी कहा। फिर एक डेलीगेशन रामदेव जी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से मिला। गंगा जी को भारतीय धरोहर घोषित करने की माँग की। आगे अक्टूबर में एक डेलीगेशन स्वामी स्वरूपानंद जी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री जी से मिला। उसे राजेन्द्र और प्रोफेसर बी. डी. त्रिपाठी (पादप विज्ञान विज्ञान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) भी थे।
प्रधानमंत्री जी ने आश्वासन दिया कि गंगा, नेशनल रिवर होगी और एनजीआरबीए (नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी) बनेगी। चार नवम्बर, 2008 को प्रेस रिलीज जारी हुई। कहा गया कि नोटिफाई करने के लिये एक कमेटी बनाई जाएगी। कहा गया कि सन्तों के प्रतिनिधि भी कमेटी में होंगे। मुझे बताया गया कि प्रधानमंत्री जी ने कहा, ‘गंगा तो मेरी माँ है।’ किन्तु दिसम्बर बीत गया और गंगा जी के सम्बन्ध में कोई नोटिफिकेशन नहीं आया।
आईआईटी, रुड़की के प्रोफेसर आई.ए. मिश्रा मुझसे मिले। उन्होंने बताया कि रुड़की आईआईटी को नोटिफिकेशन ड्रॉफ्ट करने को कहा गया है। मुझे लगा कि सरकार ने क्या कहा, आश्वासन क्या था और कर क्या रही है। यह मेरे लिये एक और झटका था।
(संवाद के इस चौथे कथन से सम्भवतः आप समझ सके होंगे कि गंगा के पाले में खड़े एक अनशनकारी को कैसे राजनीति अपने पाले में घसीट लेती है: अ.ति.)
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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला : एक परिचय
‘गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’ : स्वामी सानंद
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