Kesar Singh

संदर्भ दिल्ली बाढ़: कचरा प्रबंधन के बिना बाढ़ मुक्ति नहीं
मैंने अपनी किताब ‘स्टेट ऑफ द कैपिटलः क्रिएटिंग अ ट्रूली स्मार्ट सिटी' में इस बात की विस्तार से चर्चा की है कि राजधानी में बेहतर नगर नियोजन कैसे किया जा सकता है। इसमें मेरे दिल्ली नगर निगम में आयुक्त के रूप में चार साल (2008 से 2012) के दौरान हुए अनुभव से निकले समाधानों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें अनियंत्रित निर्माण की भी चर्चा है और इस बात का भी उल्लेख है कि अतिक्रमण की वजह से दिल्ली की सड़कें छोटी हो गई हैं। इस किताब में मैंने दिल्ली को सुंदर और व्यवस्थित शहर बनाने के लिए स्वच्छता और जलभराव समेत कई अन्य विषयों पर भी प्रकाश डाला है। यह आलेख राष्ट्रीय सहारा के अजय तिवारी से बातचीत पर आधारित है। Kesar Singh posted 2 weeks ago
बाढ़ (courtesy - needpix.com)
संदर्भ शहरी बाढ़: पानी ने नहीं भूली राहें, भटक तो शहर गया है
अब कथा बदल चुकी है। अब बारिश–बाढ़ संबंधी परेशानियां मर्सिडीज में चलने वाले सबसे इलीट वर्ग तक भी पहुंच चुकी हैं। चेन्नई के वे दृश्य शायद लोगों अभी भी नहीं भूले होंगे जब हजारों लग्जरी गाडि़यां पानी में डूब जाने के कारण बेकार हो गई थीं और साधन–संपन्न लोगों को भी कई दिनों तक ब्रेड–चाय पर गुजारा करना पड़ा था। इस बार दिल्ली में बरसात में होने वाली परेशानियों ने न सिर्फ आम लोगों का दरवाजा खटखटाया है पर इस बार उसने सांसदों और सत्ताधारी लोगों का भी दरवाजा खटखटा दिया है। बरसात में बदइंतजामी से परेशान शहर और शहरी कोई नई बात नहीं रह गए हैं। दिल्ली‚ मुंबई‚ चेन्नई‚ बेंगलुरुû हर जगह एक ही कहानी बार–बार दोहराई जा रही है‚ एक ही शहर पहले पानी के लिए तरसता है फिर कुछ दिनों बाद पानी के रेलमपेल से हलकान होता है। सबसे दुखद यह बात है कि हादसे अक्सर पहले से बदनाम जगहों पर होते हैं। Kesar Singh posted 2 weeks ago
शहरी बाढ़ (courtesy needpix.com )
जीवन को बचाना है तो जीवनशैली बदलिए
पृथ्वी पर बना प्राकृतिक ग्रीनहाउस हमारे लिए लाभकारी है। लेकिन मानव की आलसी प्रवृत्ति एवं भोगवादी संस्कृति के चलते मनुष्य का मशीनी सुख- सुविधा जिसमें एयर कंडीशनर, फ्रिन व ओवन आदि उपकरणों पर निर्भर होना एक सामाजिक स्टेटस समझा जाता है। Kesar Singh posted 2 weeks ago
प्रतिकात्मक तस्वीर
पर्यावरण प्रदूषण से जूझते बुग्याल
प्रकृति ने हमें हरे-भरे जंगल व बुग्याल, बर्फीले पहाड़, कलकल करती अविरल बहती नदियाँ, झीले और प्राकृतिक सौन्दर्यता को मनोरंजन के साधन के रूप में प्रदान किया है लेकिन आज के इस मौज मस्ती भरे मानवीय क्रिया-कलापों से इन संसाधनों का अस्तित्व बढ़ते प्रदूषण के कारण संकट में आ गया है। आज ये प्राकृतिक संसाधन धीरे- धीरे प्रदूषित हो रहे हैं। इसी प्रदूषण को झेलते सुनहरे बुग्यालों का भविष्य संकट की ओर जाता दिखाई दे रहा है। Kesar Singh posted 2 weeks ago
औली बुग्याल, उत्तराखंड में एक घास का मैदान। (फोटो सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स, फोटो - संदीप बराड़ जाट)
क्या समुद्री खाद्य शृंखलाएं जलवायु परिवर्तन से बदल जाएंगी
तेजी से हो रहे निरंतर जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में समय के साथ तेजी से पोषक तत्वों की कमी होती जाएगी। एक शोध का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का दक्षिण प्रशांत, हिंद-प्रशांत, पश्चिम अफ्रीकी तट और मध्य अमरीका के पश्चिमी तट पर स्थित देशों की समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं पर प्रतिकल प्रभाव पड़ने की आशंका है। Kesar Singh posted 2 weeks ago
प्रतिकात्मक तस्वीर, फोटो स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
गंगा नदी का धार्मिक महत्व : आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति का प्राण-तत्व
गंगा नदी भारतीय जीवन के हर पहलू में गहराई से जुड़ी है और इसका सम्मान और संरक्षण सभी के लिए आवश्यक है। प्राचीन काल से नदिया मां की तरह हमारा भरण पोषण कर रही हैं। यदि हमने इनका समुचित संरक्षण किया तो मां रूपी नदियों का सेहिल छाया हमारी आने वाली पीढ़ियों पर भी बनी रहेगी। Kesar Singh posted 2 weeks 1 day ago
प्रतिकात्मक तस्वीर
दिमाग खाने वाला अमीबा - ब्रेन ईटिंग अमीबा : जलवायु संकट की देन
नेगलेरिया फाउलेरी एक अमीबा है जो जल में पाया जाता है और यह जीवाणु नहीं होता है, बल्कि एक स्वतंत्र जीव होता है। यह अमीबा आमतौर पर गरम जल के तालाबों, झीलों, नदियों और झरनों में पाया जाता है। यह जीव विशेष रूप से गरम जल में बढ़ता है और यह इंसानों के नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह अमीबा ब्रेन में प्रवेश करके अत्यधिक गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है, जिसे प्राइमरी अमीबिक मेनिंजिटिस कहा जाता है। इसके लक्षण में बुखार, सिरदर्द, अक्सर बदलते दिमाग की स्थिति, और अक्सर असमान्य व्यवहार शामिल हो सकते हैं। जानिए लक्षण और बचाव के उपाय
Kesar Singh posted 2 weeks 1 day ago
नेगलेरिया फाउलेरी, फोटो साभार - http://www.dpd.cdc.gov
जल का महत्व निबंध : समस्या और समाधान
आज लखनऊ में भी भूजल स्तर प्रति वर्ष तीन फीट नीचे जा रहा है। शहर की झीलें और तालाब सूखे पड़े हैं तथा अनाधिकृत कब्जे में है। शहर की अधिकांश भूमि पक्की होने के कारण वर्षा जल रिचार्ज होने के बजाय बह जाता है। भविष्य में भारी जल संकट आ सकता है। इससे बचाव के लिए आवश्यक है कि लखनऊ के सभी तालाब, झील, नदी अतिक्रमण से मुक्त कराकर उनमें पर्याप्त जल रहे, उनके आसपास अधिक से अधिक पीपल, बरगद, पाकड़ के पेड़ लगाये जाएं, बड़े-बड़े मकानों का नक्शा स्वीकृत करने के समय छत के पानी की रिचार्जिग व्यवस्था यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया जाय। Kesar Singh posted 2 weeks 3 days ago
भूगर्भ जल यानी भूजल हर वर्ष 3 फिट नीचे जा रहा है लखनऊ में
बांदा, जखनी गांव : आज भी खरी है मेड़बंदी
मनुष्य को जब से भोजन की आवश्यकता पड़ी होगी उसने भोजन का आविष्कार किया होगा। किस स्थान पर भोजन उगाया जाए? फसलें पैदा की जाएं जमीन खोजी होगी खेत बनाया होगा। खाद्यान्न पैदा करने के लिए खेत का निर्माण तय हुआ होगा तभी से मेड़बंदी जैसी जल संरक्षण की विधि का आविष्कार हुआ होगा। यह हमारे पुरखों की विधि है जिन से खेत खलिहान का जन्म हुआ है एवं जिन्होंने जल संरक्षण परंपरागत प्रमाणित सर्वमान्य मेड़बंदी विधि का आविष्कार किया है जिसमें किसी प्रकार की कोई तकनीकी शिक्षा नवीन-ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है। Kesar Singh posted 2 weeks 4 days ago
उमा शंकर पाण्डेय
उत्तर कोरिया सरकार ने मानव मल एकत्र करने के लिए आदेश क्यों दिया है
उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के एक नए आदेश के बारे में जानना चाहिए कि उन्होंने कोरिया की जनता से 10 किलोग्राम मानव मल एकत्र करने का आदेश दिया है। ताकि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि यह आदेश उत्तर कोरियाई लोगों के लिए पूरी तरह से नया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सर्दियों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करते आए हैं। Kesar Singh posted 2 weeks 5 days ago
प्रतिकात्मक तस्वीर
बदलते मौसम का विज्ञान
दलते मौसम का कहर केवल हमारे देश पर ही नहीं हैं, दुनिया भर में यह बीमारी फैल चुकी है. मौसम में हो रहे इन बदलावों का कारण जानने के लिए दुनिया भर में अनुसंधान हो रहे हैं. नए-नए सिद्धांत प्रतिपादित किए जा रहे हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार अन्य कारणों के अलावा वायुमंडल में मौजूद दो गैसें ओजोन और कार्बन डाइऑक्साइड-मौसम के निर्धारण और नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. Kesar Singh posted 2 weeks 6 days ago
मौसम बदल रहा है
क्लाइमेट इमरजेंसी हंगामा है क्यों बरपा
हवाएं अपना रुख बदल रही हैं। पूरी दुनिया में मौसमों की चाल ने ऐसी कयामत बरपाई है कि हर कोई हैरान-परेशान है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं से लेकर इंसान भी इस गफलत में पड़ गये हैं कि वह आखिर तेज गर्मी सर्दी से कैसे बचें। विज्ञान के तमाम आविष्कारों के बल पर हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम इंसान अब खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा है। ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। Kesar Singh posted 3 weeks 2 days ago
जलवायु परिवर्तन आपातकाल के विरोध में प्रदर्शन
पहाड़ों पर बीस साल से घटती आ रही बर्फबारी और सिमटती नदियां
एक अध्ययन के अनुसार, साल 2003 के बाद से हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में सबसे कम बर्फबारी हुई है। उच्च हिंदू कुश हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह का लगभग 23 प्रतिशत बर्फ के पिघलने से ही आता है। Kesar Singh posted 3 weeks 3 days ago
हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह में कमी देखी जा रही है
पोखर से सागर तक जलजीवन पर संकट, तापमान ने बिगाड़ा संतुलन
तापमान चरम पर है और जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। जल, जंगल, जमीन, पहाड़ हर जगह बढ़ते तापमान से सबके जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। हम इंसानों से भी ज्यादा खतरा अन्य जानवरों-जीवों पर है। क्या हम बचाव जल्दी ही कुछ कर सकते हैं? क्या हमें बिगड़ती परिस्थितियों का एहसास है? पेश है बदलते हालात खंगालती एक खास रिपोर्ट Kesar Singh posted 3 weeks 3 days ago
पोखर और झीलों का भी तापमान बढ़ रहा है
वाराणसी गंगा में शैवाल खतरनाक बदलावों के दे रहे संकेत
गंगा जल में मानसून से पहले शैवालों का आना गंगा की पारिस्थितिकी में खतरनाक बदलाव का संकेत दे रहे हैं। बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट ऐंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईईएसडी) के वैज्ञानिकों के शोध में कई तथ्य उजागर हुए हैं। ऐसे जल में स्नान से न सिर्फ कई रोग होते हैं बल्कि दुर्लभ परिस्थितियों में मौत भी हो सकती है। Kesar Singh posted 3 weeks 3 days ago
वाराणसी गंगा में शैवाल खतरनाक (फोटो साभार - एडॉब)
राजस्थान का जयपुर शहर भी तरस रहा है पानी के लिए
2019 में शुरू हुए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'हर घर नल जल' ने इस समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है। जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार इस योजना के जरिए देश के 19 करोड़ से अधिक घरों में से लगभग 15 करोड़ घरों में नल के कनेक्शन लगाए जा चुके हैं। जो कुल घरों की संख्या का 77.10 प्रतिशत है। पीने के पानी की उपलब्धता के मायने में जलजीवन मिशन अभी कई पड़ाव पार करने हैं। Kesar Singh posted 3 weeks 4 days ago
बाबा रामदेव नगर बस्ती में जलजीवन मिशन का पानी नहीं पहुंच रहा
चंबल नदी के जलस्तर के 10 फीट तक घटने से दुर्लभ जलचर खतरे में
इटावा जिले के उदी स्थित केंद्रीय जल आयोग के स्थल प्रभारी मनीष जैन बताते है कि इस माह चंबल नदी का जलस्तर 105.30 मीटर चल रहा है,एक सप्ताह से इसी अनुरूप जलस्तर टिका हुआ नजर आ रहा है जब की पिछले दस साल पहले इन दिनों जलस्तर 107.08 मीटर तक इन दिनों रिकॉर्ड किया गया था।  चंबल नदी में भयानक रूप से गिर रहा जलस्तर जलीय जीवन के लिए काफी खतरनाक है, जानिए कैसे Kesar Singh posted 3 weeks 4 days ago
चंबल नदी में भयानक रूप से गिर रहा जलस्तर
केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का सरकारी दावा पत्र: देश के दो बड़े राज्यों (उ.प्र. एवं म.प्र.) के मध्य जल की आपूर्ति के लिए नदी जोड़ो परियोजना
हाल ही में विश्व जल दिवस 22 मार्च के अवसर पर, केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग परियोजना को लागू करने के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने केंन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य नदियों के बीच के क्षेत्र के माध्यम से अधिशेष क्षेत्रों से सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जल-दुर्लभ क्षेत्रों तक पानी पहुंचाना है। इस प्रकार नदी जोड़ने की आजाद भारत की पहली बड़ी परियोजना की शुरुआत को हरी झंडी मिल गई है। Kesar Singh posted 1 month ago
केन बेतवा लिंक मैप
उत्तराखंड में जल संरक्षण एवं संवर्धन की प्रासंगिकता
किसी भी राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक समृद्धि के लिये घरेलू उपयोग के समान ही स्वच्छ जल जरूरी होता है, तभी उसका समुचित लाभ मिल पाता है। जहां तक उत्तराखण्ड राज्य की बात है, यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि एक समय था जब यहां अनेक प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध थे, नदियां, गाड़-गधेरे, घारे, कुंए, नौले, झरने चाल-खाल, झील, ताल आदि बहुतायत से उपलब्ध थे, इन प्राकृतिक जल संसाधनों की अधिकता एवं बहुत बड़े भू-भाग में फैले सघन वन क्षेत्र को मध्यनजर रखते हुये लकड़ी और पानी की कमी की कल्पना तक भी नहीं की जाती थी, तभी तो गढ़वाली जनमानस में एक लोकोक्ति प्रचलित वी कि- "हौर घाणि का त गरीव हूह्वया-ह्ह्वया पर लाखडु-पाणि का भि गरीब ह्वया"। अर्थात अन्य वस्तुओं की कमी (गरीबी) तो सम्भव है लेकिन लकड़ी और पानी की भी गरीबी हो सकती है? असम्भव ।
Kesar Singh posted 1 month ago
प्रतिकात्मक तस्वीर
×