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स्वच्छता
समग्र स्वच्छता अभियान का उदे्दश्य क्या है
Posted on 28 Feb, 2011 10:07 AMप्रश्न 2 समग्र स्वच्छता अभियान का उदे्दश्य क्या है ?
उत्तरः- समग्र स्वच्छता अभियान का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्ति हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाओं को व्यापक बनाना है तथा लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
इस कार्यक्रम के प्रमुख उदे्दश्य निम्नानुसार है:-
1. ग्रामीण जनजीवन के स्तर में गुणात्मक सुधार लाना।
समग्र स्वच्छता अभियान
Posted on 28 Feb, 2011 10:02 AMप्रश्न 1 समग्र स्वच्छता अभियान क्या है ?
उत्तरः- समग्र स्वच्छता अभियान ग्रामीण क्षेत्रों में शासन द्वारा चलाया जाने वाला माँग आधारित एवं समुदाय केन्द्रित अभियान है।
काठेवाडी गाँव का कायाकल्प
Posted on 22 Feb, 2011 01:54 PM
महाराष्ट्र के नांदेड जिले का एक छोटा सा गाँव है काठेवाडी। गाँव की आबादी मात्र ७०० है। तहसील डेगलुर के इस छोटे से गाँव का आज दूर-दूर तक नाम है। नाम है अच्छाई है लिए। इस गाँव को लोग पहले भी जानते थे पर बदमाशी के लिए। गाँव का नाम लेते ही लोगों में डर भर जाता था। गाँव की ज्यादातर आबादी पियक्कड़ थी। लोग पूरे दिन जमकर दारू पीते और बीड़ी फूँकते थे।
टीएससी : परम्परागत प्रणाली में महत्त्वूपर्ण परिवर्तन
Posted on 07 Dec, 2010 03:02 PMपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता संबंधी सुविधाएं सुनिश्चित करने संबंधी सरकार का एक व्यापक कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य खुले में मलत्याग या शौच की आदत पर पूरी तरह रोक लगाना और स्वच्छ वातावरण बनाना है। सरकार ने ग्रामीण स्वच्छता को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। पिछले पांच वर्षों में ग्रामीण स्वच्छता के लिए आबंटन में लगभग छ: गुना वृध्दि हुई है। मार्च 2012 ग्रामीण क्षेत्रों कइंसान का 20 फीसदी दम घोंट रहा है मलत्याग
Posted on 06 Nov, 2010 08:40 AMक्या आपको पता है कि प्रत्येक इंसान मल त्यागने के दौरान साल भर में करीब दो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित करता है? जी हां, स्पेन के शोधकर्ताओं ने एक शोध में बताया है कि खाने के बाद मनुष्यों द्वारा मल त्यागने के कारण 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित होती है। मनुष्यों के मल त्यागने के कारण कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन का तथ्य पहली बार सामने आया है।
प्रमुख शोधकर्ता इवान मुनोज ने बताया कि मनुष्यों के मल से प्रत्येक साल 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है,
सिर पर सवार है मैला उतरने का नाम नहीं लेता
Posted on 16 Oct, 2010 08:42 AMसभ्यता के विकास में मल निस्तारण समस्या रही हो या न रही हो, लेकिन भारत में कुछ लोगों के सिर पर आज भी मैला सवार है. तमाम कोशिशों के बावजूद भारत सरकार उनके सिर से मैला नहीं उतार पायी है जो लंबे समय से इस काम से निजात पाना चाहते हैं. हालांकि सरकार द्वारा सिर से मैला हटा देने की तय आखिरी तारीख कल बीत गयी लेकिन कल ही 31 मार्च को दिल्ली में जो 200 लोग इकट्ठा हुए थे वे आज वापस अपने घरों को लौट गये हैं. तय है, आज से उन्हें फिर वही सब काम करना पड़ेगा जिसे हटाने की मंशा लिये वे दिल्ली आये थे. उमाशंकर मिश्र की रिपोर्ट-
भारत सरकार द्वारा 31 मार्च 2009 तक सिर पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने की घोषणा की वास्तविकता को उजागर करने के लिए आज छह राज्यों के 200 लोग नई दिल्ली में एकत्रित हुए। मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश,
सिर पर मैला ढ़ोना बंद हो
Posted on 16 Oct, 2010 08:27 AMभारतीय समाज में अनेक कुप्रथाएं व्याप्त हैं. इनमें से कई ऐसी हैं, जो समाज के दलित-वंचित वर्गों पर अत्याचार का स्त्रोत व कारण हैं. इन्हीं में एक है सिर पर मैला ढ़ोने की कुप्रथा. मानव मल को मानवों द्वारा झाड़ू, रांपी जैसे खुरचने वाले औजारों और बाल्टी की सहायता से साफ किया जाता है.
आधिकारिक तौर पर भारत में सिर पर मैला ढ़ोने की प्रथा अस्तित्व में नहीं है. उसका तो भारत सरकार ने सन् 1993 में ही उन्मूलन कर दिया था.इसे सरकार की अक्षमता कहें या लापरवाही परंतु सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया है कि आज भी देश में लगभग 14 लाख लोग इस काम में लगे हैं और इनमें से 95 प्रतिशत महिलाएं हैं.
सफाईकर्मी, दलितों के अछूत वर्ग से आते हैं. अपनी आजीविका के लिए यह अमानवीय कार्य करना उनकी मजबूरी है. उन्हें यह काम विरासत में मिलता है.
बीमारी भगाए धुले हाथ
Posted on 16 Oct, 2010 08:00 AM15 अक्तूबर, वर्ल्ड हैंड वाशिंग डे पर विशेष
हाथों को बार-बार साबुन से धोना स्वाइन फ्लू समेत कई बीमारियों से बचने का अचूक तरीका है।
दुनियाभर में साफ-सफाई की अहमियत बताने और लोगों को इसके प्रति जागरुक करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 15 अक्तूबर, 2008 से ग्लोबल हैंडवाशिंग डे की शुरूआत की थी। सफाई में हाथ साफ रखने की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए ही दो साल पहले इस दिवस की शुरूआत की गई।
बीमारियों से बचने के लिए भले ही कितने भी प्रयास हों, अपने शरीर और हाथों की साफ-सफाई सभी प्रयासों से बढ़कर है।
फिजिशियन डॉ. अनिल मलिक का मानना है कि मौसमी बीमारियों से बचने के लिए नियमित तौर पर हाथ धोने
हाथ की सफाई के दूत बनेंगे बच्चे
Posted on 13 Oct, 2010 02:28 PMशौच के बाद मिट्टी से हाथ धोने का प्रचलन ग्रामीण भारत में समान्य रूप से देखने को मिलता है। लोगों में धीरे-धीरे इस बात को लेकर जागरूकता आई कि मिट्टी के बजाय राख से हाथ धोना चाहिए। पर आज भी लोगों में इस बात को लेकर जागरूकता नहीं है कि मिट्टी एवं राख हाथ में छिपे कीटाणुओं को साफ करने में अक्षम हैं और साबुन ही एकमात्र विकल्प है। आजकल टी.वी पर कई विज्ञापन आते हैं, जिसमें हाथ धोने के महत्व को बताया