हाथ की सफाई के दूत बनेंगे बच्चे


शौच के बाद मिट्टी से हाथ धोने का प्रचलन ग्रामीण भारत में समान्य रूप से देखने को मिलता है। लोगों में धीरे-धीरे इस बात को लेकर जागरूकता आई कि मिट्टी के बजाय राख से हाथ धोना चाहिए। पर आज भी लोगों में इस बात को लेकर जागरूकता नहीं है कि मिट्टी एवं राख हाथ में छिपे कीटाणुओं को साफ करने में अक्षम हैं और साबुन ही एकमात्र विकल्प है। आजकल टी.वी पर कई विज्ञापन आते हैं, जिसमें हाथ धोने के महत्व को बताया जाता है। इस तरह के विज्ञापन स्कूली बच्चों को लेकर दिखाए जाते हैं, जो यह संदेश देते हैं कि साबुन से हाथ की सफाई बीमारियों को दूर भगाने में मददगार है।

पर रील लाइफ से बाहर रियल लाइफ के स्कूली बच्चे भी हाथ सफाई के दूत बन रहे हैं और न केवल अपने सहपाठियों को बल्कि ग्रामीणों को भी वे साफ-सफाई का पाठ पढ़ा रहे हैं। धार जिले के धरमपुरी विकासखंड के बलवारी गांव की शासकीय माध्यमिक शाला देखने में तो अन्य शालाओं की तरह ही है, पर जब हम स्वच्छता के मुद्दे पर यहां के बच्चों से बात करते हैं, तो सब ज्ञानी नजर आते हैं। यहां के सभी बच्चों को साफ-सफाई एवं हाथ की धुलाई का महत्व और पानी सहेजने के बारे में पता है। कुछ महीना पहले यूनीसेफ ने वसुधा विकास संस्थान के माध्यम से शाला के बच्चों को स्वच्छता के मुद्दे पर प्रशिक्षण दिया था। उन्हें बताया गया था कि खाने से पहले, शौच के बाद साबुन से हाथ धोना कितना महत्वपूर्ण है। इससे डायरिया जैसी गंभीर बीमारी होने की संभावना पांच गुना कम हो जाती है। निरोगी बच्चे पढ़ाई में भी आगे रहते हैं। बच्चों के बीच सफाई को लेकर एक सवाल-जवाब प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया था, जिसमें सात बच्चे विजेता हुए थे। अब ये बच्चे गांव में हाथ धुलाई एवं स्वच्छता का अलख जगाएंगे।

शाला के शिक्षकों का कहना है कि बच्चे सफाई को लेकर बहुत ही ज्यादा जागरूक हैं। वे अपने साथ-साथ सहपाठियों को भी हाथ धोने, नियमित नहाने, घर को साफ रखने के लिए प्रेरित करते हैं। 6वीं की गीता बताती है, ’’पहले मैं राख से हाथ धोती थी, पर अब स्कूल एवं घर दोनों जगह हाथ धोने के लिए साबुन का उपयोग करती हूं। घर में शौचालय भी बन गया है, जिससे शौच के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता। 7वीं के शैलेन्द्र का कहना है, ’’अब हमने अपने पंचायत के सभी गांवों के लोगों को सफाई के बारे में बताते हैं।‘‘ यूनीसेफ के अनुसार, ’’शाला के बच्चों को यदि इसके बारे में जागरूक कर दिया जाए, तो निश्चय ही बदलाव देखने को मिलेगा। हाथ धुलाई को स्थानीय संस्कृति एवं तौर-तरीकों को देखते हुए बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि लोग इसे अपना सके। अंतर्राष्ट्रीय हाथ धुलाई दिवस इसके लिए एक बेहतर अवसर है, जिस दिन सभी मिलकर इसका प्रचार-प्रसार कर सकते हैं और लोगों को इसके प्रति जागरूक कर सकते हैं। सामान्य तौर पर लोग सादा पानी से, मिट्टी से या फिर राख से हाथ धोते हैं, जबकि ये इतने प्रभावी नहीं होते, इसलिए साबुन से हाथ धोने की आदत लोगों में विकसित करनी होगी, भले ही वे सस्ते एवं स्थानीय साबुन क्यों न उपयोग करें। इसमें बच्चों, खासतौर से शाला जाने वाले बच्चों की अपील बहुत ही प्रभावी साबित हो सकता है।‘‘

बलवारी माध्यमिक शाला के बालक-बालिकाओं को स्वच्छता के बारे में अपने ज्ञान को लेकर गर्व है। साफ-सफाई प्रतियोगिता में विजेता बच्चे कहते हैं कि खुद के साथ अपने घर एवं पड़ोस के लोगों को इसके लिए प्रेरित करना जरूरी है और दूसरी शाला के बच्चे भी उनकी तरह सफाई को अपने जीवन में अपनाएं।
 
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