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संरक्षण - जल उपयोग को कम करना
भारत में जल संरक्षण परम्पराएँ
Posted on 24 Jul, 2016 04:46 PMभारतीय वाङ्मय सबसे ज्यादा चर्चित इंद्र हैं। क्या यह महज संयोग है कि इंद्र को वर्षा का देवता भी माना गया है? साहित्य से लेकर परम्पराओं तक भारतीय मनीषियों ने जल और जीवन के तारतम्य को बखूबी समझा और समझाया है। हड़प्पा काल से लेकर मुगल काल तक जल को संग्रहित करने और उसके बेहतर उपयोग के लिये एक से बढ़कर एक तरकीबें विकसित की गई और इनमें से अनेक अब भी हमारे बीच मौजूद है
जल संचयन के प्रति जागरूक होने लगे हैं जनपद के लोग
Posted on 23 Jul, 2016 04:04 PMग्रेटर नोएडा। मराठवाड़ा के लातूर तथा बुन्देलखण्ड से सबक लेते हुए जनपद के लोग जल संचयन के प्रति जागरूक हो चुके हैं। जिस कारण जनपद के विभिन्न कस्बों तथा गाँवों के लोग जहाँ सूख चुके तालाबों को भरने लगे हैं वहीं जर्जर हालत वाले तालाबों का सौंदर्यीकरण करने लगे हैं। ताकि जन
बर्बादी की राह पर तालाब
Posted on 22 Jul, 2016 04:31 PMगौरतलब है कि भोपाल ही नहीं प्रदेश के अन्य महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक के जलस्रोत अतिक्
आर्थिक विकास में जल संसाधन प्रबंधन
Posted on 19 Jul, 2016 04:44 PMग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2016 में विश्व आर्थिक मंच (2016) ने प्रभावकारिता के स्तर पर जल संकट को सबसे बड़े वैश्विक खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया है। जल संकट के विविध आयाम हैं, जिनमें भौतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय (जल की गुणवत्ता से सम्बन्धित) आदि प्रमुख हैं। आबादी का बढ़ता दबाव, बड़े पैमाने पर शहरीकरण, बढ़ती आर्थिक गतिविधियाँ, उपभोग की बदलती प्रवृत्तियाँ, रहन-सहन के स्तर में सुधार, जलवायु विविध
प्राचीन भारत में जल संसाधनों का प्रबन्धन
Posted on 17 Jul, 2016 01:10 PMहमारे देश में जल संसाधनों के प्रबन्धन का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल से ही भारतीय भागीरथों ने सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ भारत की जलवायु, मिट्टी की प्रकृति और अन्य विविधताओं को ध्यान में रखकर बरसाती पानी, नदी-नालों, झरनों और जमीन के नीचे मिलने वाले, भूजल संसाधनों के विकास और प्रबन्धन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की थी।
तालाब-पोखर नहीं, तो कैसे होगा जलसंचय
Posted on 17 Jul, 2016 12:55 PMनगरपालिका की पूर्व अध्यक्ष रजिया सलीम खान ने बताया कि सरकार सिर्फ योजना बना सकती है। उसके
पाया कम खोया ज्यादा
Posted on 16 Jul, 2016 04:28 PMसरकार को बुन्देलखण्ड में सूखे की समस्या से निपटने के लिये पुराने तालाबों व अन्य जल संग्रह माध्यमों का पुनरुद्धार करना चाहिए था लेकिन उसने नए जल संरक्षण ढाँचे बनाने में ही 15,000 करोड़ रुपए खर्च कर दिए।
बावड़ियों का शहर
Posted on 16 Jul, 2016 12:55 PM
इन्दौर का परम्परागत जल संरक्षण लोक रुचि का विषय रहा है। कभी यहाँ बीच शहर से दो सुन्दर नदियाँ बहती थीं। यह शहर चारों ओर से तालाबों से घिरा था। यहाँ बावड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसे बावड़ियों का शहर कहा जाता था। यहाँ घर-घर में कुण्डियाँ भी थीं। ऐसे शहर में परम्परागत जल प्रबन्धन की एक झलक।
मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और देश में ‘मिनी बाॅम्बे’ के रूप में ख्यात शहर इंदौर की तुलना- यहाँ के बाशिंदे किसी समय खूबसूरत शहर पेरिस से किया करते थे।
वजह थी..... जिस तरह पेरिस के बीचों-बीच शहर से नदी बहती है, उसी तरह यहाँ भी शहर के बीच में ‘नदियाँ’ निकलती थीं...!
......शहर के आस-पास और बीच में भी तालाब आबाद रहते रहे हैं।
.....कल्पना कीजिए- इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी से भरी नालियाँ हुआ करती थीं.... जो लालबाग, कागदीपुरा व राजवाड़ा तक आती थीं......! जिसे पानी चाहिए- वह घर के पास से बह रही नाली से ले लें.....!!
मुश्किल में मराठवाड़ा
Posted on 16 Jul, 2016 11:11 AMखराब नीतियों ने क्षेत्र को कैसे सूखे की बदतर स्थिति की ओर धकेला