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प्रवास
नदी कटान से बेघर होते समुदाय
Posted on 08 Feb, 2014 09:47 AM विकास की आधुनिक अवधारणा का प्रभाव अब नदियों के प्रवाह पर भी पड़नेकान्हा टाइगर रिजर्व
Posted on 22 Dec, 2013 11:52 AMकोई भी आदिवासी व्यक्ति या समाज कभी भी आनंद के लिए शिकार नहीं करता।क्या आदिवासी महिलाओं के लिए जंगल ही जिंदगी है
Posted on 01 Nov, 2013 04:25 PMसंताल परगना प्रमण्डल के वन क्षेत्रों को दो भागों में बाँटा गया है।जंगलों से विस्थापन
Posted on 29 Oct, 2013 12:18 PM‘सुरक्षित वन और असुरक्षित समुदाय’
सभ्यता का अर्थ है प्रकृति के खिलाफ अभियान – बर्टेड रसल
विस्थापन मतलब जिंदगी का उजड़ जाना
Posted on 30 Sep, 2013 01:29 PMमानव समाज आज उस मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां दुनिया जाइरोस्कोप जैसी तेजी से बदल रही है। इसके बावजूद मनुष्य के स्वभाव में, उसकी सामाजिकता में इतना कम परिवर्तन हो सका है कि हम यह दावा नहीं कर सकते कि विज्ञान मनुष्य को अच्छा मनुष्य भी बनाता है। ‘भगवान सिंह’पहले डूब अब धोखे से उजाड़
Posted on 11 May, 2013 03:21 PMबरगी बांध से विस्थापन के बाद बड़े किसान भी अब मज़दूर बन गए हैं। अब इस परियोजना के कारण उनकी स्थिति और भी खराब होने वाली है। यह परियोजना ना केवल तीन गाँवों के जीवन-मरण का प्रश्न है। वरन् प्रस्तावित परियोजना के 30 किलोमीटर के दायरे आने वाले सभी गाँवों के इंसानों-जीव-जतुंओं और पर्यावरण के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। प्रश्न सामने है कि जबलपुर के रहने वाले 22 लाख लोग जब विकिरण युक्त पानी पिएंगे तब क्या होगा? तो क्या मध्य प्रदेश राज्य में पंजाब की तरह कैंसर ट्रेन चलेगी? अभी भोपाल गैस कांड से पीड़ितों की संख्या काबू में नहीं आ रहा है तो क्या जबलपुर को दूसरा भोपाल बनाने की तैयारी है।
पहले डूब अब धोखे से उजाड़ आज लगभग 13 साल हुए जब चुटका गांव बरगी बांध में डूबा था। 69 मीटर ऊंचा और 5.4 किलोमीटर लंबा बांध यह मध्य प्रदेश में नर्मदा पर बने 5 विशालकाय बांधों में से एक है जिसमें घोषणा से ज्यादा 60 गांव डूबे थे। बैठे-बैठे लोगों के जल-जंगल-ज़मीन, गांव, खेत डूब गए। बाद में सरकार से लड़-लड़ कर थोड़ी ज़मीन मिली। ज्यादातर लोगों ने जंगल और दूसरी सरकारी जमीनों पर कब्ज़े किए जिस पर बहुत समय बाद जमीनों के पट्टे मिल पाए। बड़े-बड़े किसान आज मज़दूर बने हैं। चुटका भी उन्हीं गाँवों में से एक है जिसे लोगों ने अपनी ताकत से खड़ा किया है, वरना 4000 रु. प्रति एकड़ मिले मुआवज़े में कौन सा घर बना पाते? कौन सी ज़मीन ख़रीद पाते?आज इन्हीं चुटका निवासियों पर फिर “चुटका मध्य प्रदेश परमाणु विद्युत परियोजना” के रूप में एक विस्थापन का नया खतरा सामने है। इस परियोजना से मुख्य रूप से तीन गाँव विस्थापित होंगे। बीजाडांडी, नारायण गंज (मंडला) तथा घंसौर (सिवनी) विकासखंड के लगभग 54 गाँव विकिरण से प्रभावित होंगे। 1400 मेगावाट बिजली बनाने हेतु बरगी जलाशय से पानी लिया जाएगा एवं पुनः उस पानी को जलाशय में छोड़ा जाएगा जिससे पानी प्रदूषित होंगा और मनुष्यों सहित इस पर आश्रित सभी जैविक घटकों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
विस्थापन का खतरा
Posted on 13 Oct, 2012 04:58 PMबढ़ते औद्योगीकरण, बांध परियोजनाओं तथा खनन की वजह से विस्थापन का संकट गहराता जा रहा है। जिस रफ्तार से देश विकास और आर्थिक लाभ की दौड़ में भागे जा रहा है उसी रफ्तार से लोग विस्थापित होने का दंश भी झेल रहे हैं। उद्योगों तथा परियोजनाओं का शान्ति से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस प्रशासन ऐसे हिंसक अत्याचार कर रहा है गोया कि प्रशासन ने लोगों के प्रति सब जिम्मेदारियों से पल्ला ही झाड़ लिया है। जंगल मेनर्मदा के आसपास :विस्थापन
Posted on 19 Feb, 2014 10:07 PMडूब में आते हुएहलके,इलाके, नदी पोखर,
हो सकूँगा समूचा में
इन्हें खोकर ?
बड़ी मछली के लिए
बाकायदा
छोटी समर्पित हों !
युगों की लम्बी पुरानी
कथा –यात्राएँ विसर्जित हो !
मुनादी हम सुन रहे चुप
चीख हा-हाकार होकर,
सुन रही गोचर जमीनें,
डूँगंरी डाँगें अगोचर,
बूंदें, नर्मदा घाटी और विस्थापन
Posted on 14 Feb, 2010 03:00 PM
नर्मदे हर......!
मध्यप्रदेश की जीवनरेखा है नर्मदा। इसका प्रवाह यानी जीवन का प्रवाह। इसके मिजाज का बिगड़ना यानी जीवन से चैन का बिछुड़ना। नदी से समाज के सम्बन्ध केवल नहाने, सिंचाई, पानी की भरी गागर घर के चौके-चूल्हे तक लाने में ही सिमट नहीं जाते हैं। नदियों की धड़कन के साथ-साथ धड़कती है उसके आंचल में रहने वाले समाज की धड़कन। पीढ़ियां नदी के प्रवाह की साक्षी रहती हैं। और नदी भी तो बहते-बहते देखती है-........