विकास की आधुनिक अवधारणा का प्रभाव अब नदियों के प्रवाह पर भी पड़ने लगा है। इसके फलस्वरूप उत्तर प्रदेश के कई विकासखंडों में बड़े पैमाने पर हो रहे कटाव से नदी किनारे बसे समुदायों के खेत खलिहानों के साथ ही साथ उनके घर भी नष्ट हो रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि इस गंभीर समस्या से तुरंत निपटा जाए।हाल के वर्षों में नदियों में प्रदूषण और खनन जैसी समस्याएं बहुत तेजी से बढ़ी हैं। अनेक नदियों का बहाव बहुत कम हुआ है व कुछ नदियां तो लुप्तप्राय हो गई हैं। इन गंभीर समस्याओं का असरदार समाधान चाहे न हुआ हो पर कम से कम यह समस्याएं निरंतर चर्चा में बनी रही हैं। उम्मीद है कि इससे समाधान की दिशा में कुछ प्रगति जरूर होगी।
पर इस विमर्श की एक बड़ी कमी यह रही है कि इसमें नदियों के आसपास रहने वाले लोगों की समस्याओं पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। नदियों के आसपास रहने वाले किसानों, मछुआरों, मल्लाहों आदि की समस्याएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं।
जहां बड़े व मध्यम बांधों द्वारा नदियों का पानी बड़े पैमाने पर मोड़ा गया है वहीं नीचे किसानों, मछुआरों, नाविकों सभी की आजीविका उजड़ रही है। जिन स्थानों पर नदियों में खनन कार्य बड़े पैमाने पर हुआ है, वहां रहने वाले गांववासियों के खेतों, चरागाहों, जल-स्रोतों आदि पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
इनसे भी कहीं अधिक समस्याएं अनेक नदियों के कटान से पीड़ित लोगों की हैं। इस वजह से इनकी महज आजीविका ही नष्ट नहीं हो रही है अपितु उनके आवास भी उजड़ रहे हैं और उनका जीवन खतरे में पड़ गया है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में देखा जा सकता है।
यहां गंगा नदी के कटान से उजड़े हुए गांववासी बड़ी संख्या में सर्द रातों में खुले में रहने को मजबूर हैं। एक ओर पूर्व में हुए कटान से विस्थापित हुए परिवार अभी अपना आशियाना नहीं बना सके थे, वहीं इस वर्ष नए सिरे से बहुत से परिवार कटान से विस्थापित हो गए हैं।
अनेक परिवारों को बंधों के ऊपर व सड़कों पर बंजारों जैसा जीवन बिताना पड़ रहा है। राहत शिविर में अनेक लोग बीमार पड़ रहे हैं। राहत शिविर के बाहर सड़कों या बंधों पर रह रहे लोग राहत सामग्री से वंचित हैं वहीं दूसरी ओर शिविरों में भी सहायता उचित मानकों के आधार पर न मिलने से लोग परेशान हैं। बार-बार दिए गए आश्वासनों को पूरा नहीं किया गया है।
बहराईच जिला भी नदी कटान से बुरी तरह प्रभावित है। नदी के कटान से अनेक परिवार बेघर हो चुके हैं व तटबंधों पर शरण लिए हुए हैं। खेती की जमीन उजड़ गई हैं, इस पर घर भी नहीं बचा, तो जीवन कैसे बिताएं? बच्चे कहते हैं कि हमें यहां नहीं रहना, घर जाना है तो मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं। वजह स्पष्ट है कि जब घर बचा ही नहीं तो किस घर में जाएं।
फखरपुर ब्लाक के सिलौटा गांव के लोगों ने बताया कि उनका गांव कटान से बहुत बुरी तरह तबाह हुआ है। यहां पर लोगों के घर व कृषि भूमि कटान से नष्ट हो गई है। घाघरा नदी ने हाल में कुछ मार्ग बदल कर उनकी पहले वाली भूमि को छोड़ा है। यहां के लोगों को उम्मीद है कि वे इस पर पुनः खेती कर सकेंगे। अतः वे चाहते हैं कि इसकी पैमायश (नप्ती) कर दी जाए। वैसे भी वे अपनी जमीन के नजदीक बने रहना चाहते हैं।
फखरपुर ब्लाक की ही अटोडर पंचायत के लोगों की कृषि भूमि व आवास बाढ़ व कटाव में बुरी तरह नष्ट हो गए। लोगों ने बहुत अभाव की स्थिति में तटबंध पर शरण ली। अपने दुख-दर्द, भूख, अभाव की स्थिति बताते हुए महिलाओं की आंखों में आंसू आ गए। प्रश्न उठता है कि अब प्रशासन यदि उनसे तटबंध से भी हटने को कहता है तो वे कहां जाएंगे।
मुन्सारी गांव (ब्लाक महसी) पूरी तरह कटान की चपेट में आ गया है। इस तरह यह खुशहाल गांव तबाह हो गया व यहां के लोग अब महसी ब्लाक के कोढ़वा गांव में बसे हुए हैं। यहां के अधिकांश परिवार कटान के कारण तीन बार विस्थापित हो चुके हैं। अब वर्तमान रहवास कोढ़वा में भी कटान होने लगा है।
लोग भीषण अभाव की स्थिति में रह रहे हैं और उन पर कर्जा भी हो गया है। अतः इन लोगों ने एक प्रस्ताव यह रखा है कि उन्हें गैर आबाद हो चुके उनके पुराने मुन्सारी गांव में पुनः बसा दिया जाए।
कटान से बुरी तरह प्रभावित मुरौवा गांव (ब्लाक महसी) के दो तिहाई परिवार अपनी मूल बस्ती को छोड़ चुके हैं। इनमें से अनेक परिवार अब करहना पंचायत व कुछ परिवार फलेपुरवा पंचायत में रह रहे हैं। यह सब गांव महसी ब्लाक में आते हैं।
नदी-कटान से प्रभावित लोगों के बारे में एक ऐसी समग्र नीति बननी चाहिए जिससे तय हो सके कि उनकी राहत व पुनर्वास का कार्य किस आधार पर किया जाएगा। इतना ही नहीं जब तक प्रशासन द्वारा उनका ठीक से पुनर्वास नहीं होता है, तब तक उन्हें प्रतिकूल मौसम व भूख से बचाने के समुचित प्रयास किए जाने चाहिए। प्रभावित लोगों से विमर्श नदी कटान की बढ़ती समस्या के संबंध में समझ बनानी चाहिए तथा इसी समझ के आधार पर रोकथाम के उपायों में सुधार लाना चाहिए। इसके साथ पहले से नदी कटान से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने का कार्य उचित मानकों के आधार पर करना चाहिए।
नदी-कटान की समस्या के अतिरिक्त नदियों के आसपास रहने वाले अन्य लोगों की समस्याओं जैसे खनन व प्रदूषण के असर, मछलियों की संख्या में तेजी से कमी आई एवं पानी को ऊपरी क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में मोड़ देने से आई समस्याओं पर भी समुचित ध्यान देने की जरूरत है।
पर इस विमर्श की एक बड़ी कमी यह रही है कि इसमें नदियों के आसपास रहने वाले लोगों की समस्याओं पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। नदियों के आसपास रहने वाले किसानों, मछुआरों, मल्लाहों आदि की समस्याएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं।
जहां बड़े व मध्यम बांधों द्वारा नदियों का पानी बड़े पैमाने पर मोड़ा गया है वहीं नीचे किसानों, मछुआरों, नाविकों सभी की आजीविका उजड़ रही है। जिन स्थानों पर नदियों में खनन कार्य बड़े पैमाने पर हुआ है, वहां रहने वाले गांववासियों के खेतों, चरागाहों, जल-स्रोतों आदि पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
इनसे भी कहीं अधिक समस्याएं अनेक नदियों के कटान से पीड़ित लोगों की हैं। इस वजह से इनकी महज आजीविका ही नष्ट नहीं हो रही है अपितु उनके आवास भी उजड़ रहे हैं और उनका जीवन खतरे में पड़ गया है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में देखा जा सकता है।
यहां गंगा नदी के कटान से उजड़े हुए गांववासी बड़ी संख्या में सर्द रातों में खुले में रहने को मजबूर हैं। एक ओर पूर्व में हुए कटान से विस्थापित हुए परिवार अभी अपना आशियाना नहीं बना सके थे, वहीं इस वर्ष नए सिरे से बहुत से परिवार कटान से विस्थापित हो गए हैं।
अनेक परिवारों को बंधों के ऊपर व सड़कों पर बंजारों जैसा जीवन बिताना पड़ रहा है। राहत शिविर में अनेक लोग बीमार पड़ रहे हैं। राहत शिविर के बाहर सड़कों या बंधों पर रह रहे लोग राहत सामग्री से वंचित हैं वहीं दूसरी ओर शिविरों में भी सहायता उचित मानकों के आधार पर न मिलने से लोग परेशान हैं। बार-बार दिए गए आश्वासनों को पूरा नहीं किया गया है।
बहराईच जिला भी नदी कटान से बुरी तरह प्रभावित है। नदी के कटान से अनेक परिवार बेघर हो चुके हैं व तटबंधों पर शरण लिए हुए हैं। खेती की जमीन उजड़ गई हैं, इस पर घर भी नहीं बचा, तो जीवन कैसे बिताएं? बच्चे कहते हैं कि हमें यहां नहीं रहना, घर जाना है तो मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं। वजह स्पष्ट है कि जब घर बचा ही नहीं तो किस घर में जाएं।
फखरपुर ब्लाक के सिलौटा गांव के लोगों ने बताया कि उनका गांव कटान से बहुत बुरी तरह तबाह हुआ है। यहां पर लोगों के घर व कृषि भूमि कटान से नष्ट हो गई है। घाघरा नदी ने हाल में कुछ मार्ग बदल कर उनकी पहले वाली भूमि को छोड़ा है। यहां के लोगों को उम्मीद है कि वे इस पर पुनः खेती कर सकेंगे। अतः वे चाहते हैं कि इसकी पैमायश (नप्ती) कर दी जाए। वैसे भी वे अपनी जमीन के नजदीक बने रहना चाहते हैं।
फखरपुर ब्लाक की ही अटोडर पंचायत के लोगों की कृषि भूमि व आवास बाढ़ व कटाव में बुरी तरह नष्ट हो गए। लोगों ने बहुत अभाव की स्थिति में तटबंध पर शरण ली। अपने दुख-दर्द, भूख, अभाव की स्थिति बताते हुए महिलाओं की आंखों में आंसू आ गए। प्रश्न उठता है कि अब प्रशासन यदि उनसे तटबंध से भी हटने को कहता है तो वे कहां जाएंगे।
मुन्सारी गांव (ब्लाक महसी) पूरी तरह कटान की चपेट में आ गया है। इस तरह यह खुशहाल गांव तबाह हो गया व यहां के लोग अब महसी ब्लाक के कोढ़वा गांव में बसे हुए हैं। यहां के अधिकांश परिवार कटान के कारण तीन बार विस्थापित हो चुके हैं। अब वर्तमान रहवास कोढ़वा में भी कटान होने लगा है।
लोग भीषण अभाव की स्थिति में रह रहे हैं और उन पर कर्जा भी हो गया है। अतः इन लोगों ने एक प्रस्ताव यह रखा है कि उन्हें गैर आबाद हो चुके उनके पुराने मुन्सारी गांव में पुनः बसा दिया जाए।
कटान से बुरी तरह प्रभावित मुरौवा गांव (ब्लाक महसी) के दो तिहाई परिवार अपनी मूल बस्ती को छोड़ चुके हैं। इनमें से अनेक परिवार अब करहना पंचायत व कुछ परिवार फलेपुरवा पंचायत में रह रहे हैं। यह सब गांव महसी ब्लाक में आते हैं।
नदी-कटान से प्रभावित लोगों के बारे में एक ऐसी समग्र नीति बननी चाहिए जिससे तय हो सके कि उनकी राहत व पुनर्वास का कार्य किस आधार पर किया जाएगा। इतना ही नहीं जब तक प्रशासन द्वारा उनका ठीक से पुनर्वास नहीं होता है, तब तक उन्हें प्रतिकूल मौसम व भूख से बचाने के समुचित प्रयास किए जाने चाहिए। प्रभावित लोगों से विमर्श नदी कटान की बढ़ती समस्या के संबंध में समझ बनानी चाहिए तथा इसी समझ के आधार पर रोकथाम के उपायों में सुधार लाना चाहिए। इसके साथ पहले से नदी कटान से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने का कार्य उचित मानकों के आधार पर करना चाहिए।
नदी-कटान की समस्या के अतिरिक्त नदियों के आसपास रहने वाले अन्य लोगों की समस्याओं जैसे खनन व प्रदूषण के असर, मछलियों की संख्या में तेजी से कमी आई एवं पानी को ऊपरी क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में मोड़ देने से आई समस्याओं पर भी समुचित ध्यान देने की जरूरत है।
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