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जलवायु परिवर्तन
कोपेनहेगन की सफलता का आधार कार्बन का कारोबार
Posted on 13 Dec, 2009 02:01 PMजलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना जरूरी है। कोपेनहेगन क्लाइमेट कांफ्रेंस से ठीक पहले भारत अपनी ऊर्जा सघनता में कमी करने का ऐलान कर चुका है। और ये कमी संभव कार्बन ट्रेडिंग द्वारा। दुनिया के कई देश इस विकल्प को अपना रहे हैं।
कैसे होती है कार्बन ट्रेडिंग
कार्बन क्रेडिट क्या है और कैसे होती है कार्बन ट्रेडिंग?
Posted on 13 Dec, 2009 01:51 PMकार्बन अपने शुद्धतम रूप में हीरे या ग्रेफाइट में पाया जाता है । यही कार्बन, आक्सीजन, हाइड्रोजन व पानी से मिलकर प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पौधों का भोजन तैयार करता है और यही कार्बन सूर्य की उष्मा को रोककर पृथ्वी का तापमान बढ़ाता रहा है । यह कार्बन इस वातावरण का ऐसा तत्व है जो नष्ट नहीं होता, विज्ञान के अनुसार जो पेड़ व जीव के शरीर का कार्बन था उसने ही जमीन के भीतर जाकर एक ऐसा योगिक बनाया जिसे हाइड्रकोपेनहेगन सम्मेलन पर मंडराया संकट
Posted on 12 Dec, 2009 07:19 AMकोपेनहेगन। विकसित देशों की शह पर डेनमार्क द्वारा तैयार एक मसौदे के लीक होने से कोपेनहेगन सम्मेलन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। विकसित और विकासशील देशों के बीच इस मसौदे को लेकर गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं। यह मसौदा सम्मेलन से पहले तैयार कर लिया गया था और गत एक-दो दिसम्बर को भारत, चीन समेत कुछ गिने-चुने देशों को पढाया गया था। एक ब्रिटिश समाचार पत्र में मसौदे के अंश प्रकाशित होने के बाद जी-77 देश
हिमालय के ग्लेशियरों का साल 2035 तक अदृश्य होने के आसार
Posted on 10 Dec, 2009 09:15 AMनई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर विश्व के किसी अन्य भाग के ग्लेशियरों की तुलना में तेजी से घट रहे हैं और यदि वर्तमान दर जारी रही तो साल 2035 तक उनके अदृश्य हो जाने के आसार हैं और अगर पृथ्वी वर्तमान दर पर गर्म रहती है तो शीघ्र ही यह गर्मी अत्यधिक बढ़ जाएगी।
बढ़ रहा है समंदर का पानी
Posted on 01 Dec, 2009 07:36 AMगांधीनगर. भारत में समुद्री किनारे के जल स्तर व क्षेत्र में वृद्धि के मद्देनजर विश्व बैंक द्वारा गठित इंटिग्रेटेड कोस्टल जोन मैनेजमेंट में अन्य राज्यों के साथ गुजरात को भी शामिल किया गया है। केंद्र को 37.33 करोड़ की मद्द देने के साथ ही इससे संबंधित प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंप दी गई है।जलवायु परिवर्तन पर कोपेन हेगेन सम्मेलन
Posted on 26 Sep, 2009 06:56 AMसन् 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में मानव वातावरण पर एक सम्मेलन हुआ था। सबसे पहले यहीं बदलते पर्यावरण पर विचार-विमर्श हुआ, फिर 1992 में रियो द जनेरो में अर्थ समिट हुआ जहां पर्यावरण को लेकर चिंता जाहिर की गई और यह माना गया कि कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं की गयी तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इस दौरान बैठकों का दौर चलता रहा और अब आने वाले दिसंबर में कोपेन हेगन में
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां
Posted on 09 Jul, 2009 07:19 AMग्लोबल वार्मिंग एक समस्या बनती जा रही हैं इसकी जड़ में है जीवाष्म ईंधन का अंधाधुंध इस्तेमाल, जिससे हमारा वातावरण लगातार गर्म होता जा रहा है। इसके असर से अमीर-गरीब कोई भी देश नहीं बच पाया है। इसलिए ज़रुरत अभी से संभलने की है, क्योंकि कहीं देर न हो जाए।ग्लोबल वॉर्मिंग की गिरफ्त में समुद्र
Posted on 09 Jul, 2009 07:03 AMपृथ्वी के अधिकतर भाग पर फैला समुद्र वायुमण्डल में गैसों के प्राकृतिक संतुलन, मौसम के संचालन और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में अहम भूमिका निभात आता है। ग्लोबल वॉर्मिंग के संदर्भ में समुद्र चर्चा में रहा है। समुद्री जल स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्रों के लिए उपस्थित खतरा, बढ़ते तापमान से उग्र होते समुद्री तूफान और बढ़ती गर्मी से समुद्री जीवन पर मंडराता संकट दुनियाभर के वैज्ञानिकों में चिंता का चर्चित विग्लोबल वार्मिंग के खतरे
Posted on 08 Jul, 2009 10:08 PMवैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते तापमान के अन्य खतरे हो सकते हैं:
दुनिया में भारी वर्षा, बाढ़, सूखा, तूफान, चक्रवात जैसी आपात स्थितियां कही अधिक बढ़ना।
गर्म अक्षांशों में वर्षा घटने से सूखे जैसी स्थिति से कृषि की पैदावार घटना।
बर्फ के सर्दियों में तेजी से पिघलने से गर्मी में नदियों में पानी की कमी हो जाना।
बढ़ता तापमान, डूबते द्वीप
Posted on 08 Jul, 2009 09:01 PMबढ़ते तापमान ने अब तीव्रता से असर दिखाना शुरु कर दिया है। जिसके चलते समुद्र ने भारत के दो द्वीपों को लील लिया है।हिमालय के प्रमुख हिमनद २१ प्रतिशत से भी ज्यादा सिकुड़ गए हैं। यहां तक कि अब पक्षियों ने भी भूमण्डल में बढ़ते तापमान के खतरों को भांप कर संकेत देना शुरु कर दिए हैं। इधर इस साल मौसम में आए बदलाव ने भी बढ़ते तापमान के आसन्न संकट के संकेत दिए हैं। यदि मनुष्य अभी भी पर्यावरण के प्रति ज