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जलवायु परिवर्तन
महासागरों पर मंडराता खतरा
Posted on 30 Jun, 2010 12:57 PMजलवायु में व्यापक बदलाव के खतरों से जूझने के साथ ही हमें हमारे महासागरों को भी प्रदूषण से बचाने की ज़रूरत है। अमेरिका के नेशनल ओसिएनिक एंड एटमस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रिेशन के विशेषज्ञ रिचर्ड फ़ीली और इंटरनेशनल मैरीन कंजर्वेशन ऑर्गेनाइज़ेशन ओसिएनिया के जेफ़ शॉर्ट ने अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय सूचना कार्यक्रम ब्यूरो द्वारा आयोजित एक वेबचैट में महासागरों के बढ़ते अम्लीयकरण के खतरों से आगाह किजैवविविधता से ही बचेगी मानवता
Posted on 03 Jun, 2010 03:07 PMरेत की टीलों और रेगिस्तान की अलग ही छटा है। कहीं मीलों तक फैले हरे-भरे घास के मैदान हैं तो कही मीलों तक फैले मरुस्थल। जीवों की बात करें तो नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी। हवा में इठलाती फूलों पर मंडराती तितलियां। जमीन पर विचरने वाले जलचर और हवा में अठखेलियां करते नभचर। इसके अलावा बसने वाले लोग भी तरह-तरह के। जीव-जंतुओं की यही विविधता वैज्ञानिक शब्दावली में जैवविविधता कहलाती है।
हमारी पृथ्वी तो एक ही है। परंतु इस एकता में अनेकता के कई नजारे देखे जा सकते हैं। भांति-भांति के जंगल, पहाड़, नदी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और तरह-तरह के लोग। जंगल व पहाड़ भी एक जैसे नहीं। कई किस्मों के। जंगल की बात करें तो कहीं सदाबहार तो कुछ जगहों पर शुष्क पर्ण पाती। कहीं मिश्रित भी। बर्फ के पहाड़ भी हैं और नग्न तपती चट्टानों वाले पहाड़ भी।रेत की टीलों और रेगिस्तान की अलग ही छटा है। कहीं मीलों तक फैले हरे-भरे घास के मैदान हैं तो कही मीलों तक फैले मरुस्थल। जीवों की बात करें तो नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी। हवा में इठलाती फूलों पर मंडराती तितलियां। जमीन पर विचरने वाले जलचर और हवा में अठखेलियां करते नभचर।
प्रगति की होड़ से उठता विप्लव
Posted on 03 Jun, 2010 03:03 PMमनुष्यों की संख्या जहां बहुत बढ़ गई है, वहीं दूसरी ओर उनके बीच विषमता और भी अधिक बढ़ गई है। उनमें से अनेक की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती हैं। अनेक लोग तरह-तरह के दुख-दर्द से त्रस्त हैं। आपसी संबंध अच्छे नहीं हैं। पारिवारिक संबंधों तक में टूटन व अन्याय है। जो थोड़े से लोग बहुत वैभव की जिंदगी जी रहे हैं, उनका जीवन दूसरों से छीना-छपटी व अन्याय पर आधारित है। इतना ही नहीं, सीमित संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर व ग्रीनहाऊस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन कर यह थोड़े से लोगों की जीवन-शैली भावी पीढ़ियों को खतरे में भी डाल रही हैं।
आज जहाँ एक ओर महानगरों की चमक-दमक बढ़ रही है व चंद लोगों के लिए भोग-विलास, आधुनिक सुख-सुविधाएं पराकाष्ठा पर पहंुच रही हैं, वहां दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग साफ हवा, पेयजल व अन्य बुनियादी जरूरतों से वंचित हो रहे हैं। पशु-पक्षी, कीट-पतंगे व अन्य जीव जितने खतरों से घिरे हैं उतने (डायनासोरों के लुप्त होने जैसे प्रलयकारी दौर को छोड़ दें तो) पहले कभी नहीं देखे गए। इस स्थिति में यह जानना बहुत जरूरी है कि प्रगति क्या है और विकास क्या है? इस पर गहराई से विचार किया जाए और उसके बाद ही सही दिशा तलाश कर आगे बढ़ा जाए।उदाहरण के लिए 100 वर्ग किमी. के महानगरीय चमकदार क्षेत्रों के बारे में यदि हम जान सकें कि आज
पर्यावरण शरणार्थी: एक नई बिरादरी
Posted on 03 Jun, 2010 02:48 PMबांग्लादेश के दक्षिणी तट स्थित कुतुबदिया नामक द्वीप अपने आकार में आज, एक शताब्दी पूर्व का मात्र 20 प्रतिशत रह गया है। इसका कारण है शक्तिशाली व ज्वार की लहरों, एवं समुद्री तूफानों के कारण होने वाला कटाव। समुद्र इस द्वीप में 15 कि.मी.जलमग्न हो गया न्यू मूर द्वीप
Posted on 13 Apr, 2010 10:54 AMबंगाल की खाड़ी में स्थित न्यू मूर नामक छोटा-सा द्वीप पूरी तरह जलमग्न हो चुका है, जिसने इस आशंका को फिर से जन्म दे दिया है कि समुद्र जल स्तर बढ़ने से एक दिन कहीं मॉरीशस, लक्षद्वीप और अंडमान द्वीप समूह ही नहीं, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे मुल्कों का भी अस्तित्व समाप्त न हो जाए।
जलवायु परिवर्तन पर सोचिए
Posted on 10 Apr, 2010 08:43 AMप्रकृति को कार्बन की विषाक्तकारी ताकत की जानकारी पहले ही हो जानी चाहिए थी : यह लाखों वर्षों से गोपनीय तरीके से धरती को विषाक्त करता रहा है। अब इसका उत्सर्जन उस प्राकृतिक निवास को अस्थिर करने लगा है, जिसमें हम सभी को रहना है। विवेकशील लोग कह सकते हैं कि यह उस तेजी से धरती को क्षति नहीं पहुंचा रहा, जितना कि बताया जा रहा है, लेकिन इस बारे में तो कोई मतभेद ही नहीं है कि यह पृथ्वी को नुकसान पहुंच
धरती की किस्मत का फैसला
Posted on 15 Mar, 2010 07:18 PMक्योतो के धरती सम्मेलन में प्रस्ताव हुआ था कि चालीस सबसे बड़े औद्यधरती बचाने की हर पहल उपयोगी है
Posted on 09 Jan, 2010 11:07 AMएक बात मैं शुरू में ही साफ कर दूं कि जब मैं दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और गरम हो रही धरती पर चिंता जता रहा हूं, तो मैं इस विषय के किसी एक्सपर्ट की हैसियत से नहीं बोल रहा हूं, बल्कि मेरी चिंता बिलकुल उस किसान की तरह है, जो अपने खाली और सूखे खेत देखकर माथा पीटता है। मेरी चिंता ठीक उस पुरुष की तरह है, जिसका वीर्य जांचने के बाद उसका चिकित्सक घोषणा करता है कि अब वह कभी पिता नहीं बन सकता। मेरी चिं
कोपेनहेगन की सफलता का आधार कार्बन का कारोबार
Posted on 13 Dec, 2009 02:01 PMजलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना जरूरी है। कोपेनहेगन क्लाइमेट कांफ्रेंस से ठीक पहले भारत अपनी ऊर्जा सघनता में कमी करने का ऐलान कर चुका है। और ये कमी संभव कार्बन ट्रेडिंग द्वारा। दुनिया के कई देश इस विकल्प को अपना रहे हैं।
कैसे होती है कार्बन ट्रेडिंग