जलवायु परिवर्तन

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Heat waves sweep across India (Image: Maxpixel, CC0 Public Domain)
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Rising temperatures, rising risks (Image: Kim Kestler, publicdomainpictures.net)
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Droughts affect women the most (Image Source: Gaurav Bhosale via Wikimedia Commons)
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An artist's illustration of artificial intelligence (Image: Google Deepmind, Pexels)
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There is a need to enhance extension services to women (Image: India Water Portal Flickr)
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Environmental Sustainability Index gauges movement in corporate sentiment and investment on the sustainability front. (Image: Needpix)
मैं भविष्य देख सकता हूं
Posted on 08 Dec, 2012 03:11 PM हिमयुग हमारी सृष्टि की एक महत्वपूर्ण घटना है जो घटती है अर्थात यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। जैसे गर्मी के बाद ठंड का मौसम आता है और ठंड के बाद गर्मी का मौसम। इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग के बाद हिमयुग आता है।
लगातार बढ़ रहा है मौसमी आपदाओं का खतरा
Posted on 08 Dec, 2012 02:56 PM दुनिया भर में मौसम में होने वाले बदलाव जन जीवन को प्रभावित कर रहे
मौसम में है बड़ी उथल-पुथल
Posted on 05 Dec, 2012 04:41 PM हमारी दुनिया एक ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रही है जिसमें ग्रीष्म लहर हो या शीतोष्ण प्रभाव वह लगातार बढ़ने वाला है। अभी तक हो यह रहा था कि 20 सालों में एक दिन ऐसा होता था जिस दिन गर्मी के रिकार्ड टूटते थे लेकिन अब ऐसा हर दो साल में होने की आशंका होगी।
आएगा बर्फीला युग
Posted on 05 Dec, 2012 01:29 PM हिमयुग को लेकर कई सिद्धांत और परिकल्पनाएं हैं। लेकिन नासा की हाल की रिपोर्ट ने इसे लेकर एक नई बहस शुरू कर दी है। दरअसल ग्लोबल वार्मिंग के चलते ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ तेजी से पिघल रही है जिससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा अब ग्लोबल कूलिंग की ओर बढ़ रहा है।
जलवायु संकट : प्रभावित होती आजीविका, सामाजिक गतिविधियां और कठिनतम होता जीवन
Posted on 12 Nov, 2011 01:17 PM

पड़ोसी गांव पल्ला में आलू, राजमा तथा चौलाई का उत्पदन बढ़ा है और आपदाओं से उनका नुकसान भी कम हुआ है। इसका मुख्य कारण है कि वहां पर आज भी जैविक खेती की जाती है तथा गांव, वनों से घिरा है। अतः जिस संस्था से मैं जुड़ा हूं, वह कुछ सालों से इस दिशा में काम कर रही है। जल व बीज संरक्षण को लेकर पदयात्राएं की गई हैं। विलुप्त पारंपरिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने व स्थानीय वृक्षारोपण का भी काम किया गया है। मुझे उम्मीद है कि इससे कुछ तो बिगड़ती स्थिति की रफ्तार को हम रोक पाएंगे

मैं लक्ष्मण सिंह नेगी गांव पिल्खी, विकासखंड जोशीमठ, जिला चमोली उत्तराखंड का निवासी हूं। करीब 4800 फीट की ऊंचाई पर स्थित, हमारा गांव छोटा ही है जिसमें 14-15 परिवार ही हैं। मैं एक सीमांत कृषक हूं। मेरे परिवार की करीब 15 नाली (करीब 6 बीघा) जमीन है जिसमें हम मिश्रित खेती कर धान, गेहूँ, रामदाना, राजमा, सरसों, खीर, हल्दी, धनिया, मिर्च आदि उगाते हैं। पिछले 10 वर्षों से मैं अपने इलाके में कार्य कर रही एक सामाजिक संस्था, जयनन्दा देवी स्वरोजगार शिक्षण संस्थान ‘जनदेश’ से भी जुड़ा हूं। 9 नवंबर 2000 में स्थापित पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में जनपद चमोली उच्च हिमालयी क्षेत्र है। हमारे जनपद में सदाबहार बर्फीली चोटियों की श्रृंखला है और यहीं हिन्दु धर्म की आस्था के कई तीर्थ स्थित हैं, जिनमें प्रमुख बद्रीनाथ धाम। हमारे जनपद में ही कई प्रमुख नदियों का उद्गम है जिनमें सबसे बड़ी है अलकनंदा। इस नदी में छोटी नदियों के अलावा, पांच बड़ी नदियों का संगम पड़ता है जिनमें से पांचवा संगम देवप्रयाग पर भागीरथी से मिलने के बाद दोनों गंगा कहलाती हैं।
जलवायु संकट : तटीय जीवन पर गहराता संकट
Posted on 10 Nov, 2011 04:40 PM मेरा नाम अजंता है। मैं कराय जिला मछुआरिन संघ, नागई की प्रतिनिधि के रूप में यहां आई हूं। हमारे मछुआरिन संघ में 12000 से अधिक सदस्य हैं।

जलवायु परिवर्तन


पिछले 10-15 सालों में इस क्षेत्र की जलवायु में बहुत अधिक बदलाव देखे जा रहे हैं। बरसात बहुत कम हो गई है व समय पर नहीं आ रही है या गलत समय पर आ रही है जिससे बहुत नुकसान हो रहा है। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है और लू भी चलती है और शीत लहर भी। मानसून पूरी से अनियमित और नाकाम हो गया है। ठंड और गर्मी दोनों की तीव्रता बढ़ी है। वर्षा की मात्रा बहुत ही कम हो गई है। हवा की दिशा व रफ्तार भी अनिश्चित हो गई है और बढ़ गई है।
जलवायु संकट : कृषि, पशुपालन व जीवनयापन की कठिनाइयां
Posted on 08 Nov, 2011 01:46 PM

नदियों का जलस्तर बढ़ जाने के कारण ऐसे उथले स्थान अब कम हो गए हैं जहाँ से ये मछुआरे मछली पकड़ा करते थे। नदियों के किनारों पर मिट्टी और गाद जमा होने के कारण बीच में उनकी गहराई बढ़ गई है। इस क्षेत्र की नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की कई प्रजातियाँ जैसे हिल्सा, पॉम्फ्रेट, मेकरिल, चकलि (क्षेत्रीय नाम), बॉल (क्षेत्रीय नाम), सिम्यूल (क्षेत्रीय नाम), मेड (क्षेत्रीय नाम), तारा आदि की संख्या बहुत कम हो गई है।

मैं जिला 24 परगना, सुंदरवन के बड़े विकासखंडों में से एक पाथर प्रतिमा का किसान नेता अनिमेश गिरि हूँ। यहाँ रहने वाले अधिकांश लोग छोटे किसान और मछुआरा समुदाय के हैं। चक्रवात, मिट्टी की अत्यधिक लवणता और पानी के भराव ने हमारे गांव सहित पूरे सुंदरवन को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है।

सुंदरवन संसार के सबसे असुरक्षित पारिस्थितिकी क्षेत्रों में से एक है। यहाँ किसी न किसी प्राकृतिक आपदा के आने का डर हमेशा ही बना रहता है। यह एक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ मीठा पानी, दलदल और विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों से भरा हुआ जंगल है, जो 10 हजार किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। निम्न स्तर का विकास, आधारभूत संरचनाओं का अभाव, अत्यधिक गरीबी, ऊर्जा की मांग अत्यधिक होने के बाद भी उसकी कम उपलब्धता, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, संक्रामक और पानी से होने वाली बीमारियों डायरिया, मलेरिया आदि की अधिकता इस क्षेत्र की कमजोरियाँ बन चुकी हैं।
क्योटो संधि पर अमल क्यों नहीं हो रहा?
Posted on 31 Jul, 2011 11:34 AM क्योटो संधि के तहत औद्योगिक देश ग्रीन हाउस गैसों से होने वाले प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

इसके अनुसार इन देशों के इन गैसों, विशेष तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को अगले दस साल में 5.2 प्रतिशत के स्तर से नीचे लाना है. इन गैसों को जलवायु के परिवर्तन के लिए दोषी माना जाता है.

अमरीका अड़ा

क्या है क्योटो संधि?
Posted on 31 Jul, 2011 11:22 AM पर्यावरण के संबंध में 1992 में एक समझौते के तहत कुछ मानदंड निर्धारित किए गए थे जिनके आधार पर 1997 में क्योटो संधि हुई.

फिर इस संधि के प्रावधानों में कुछ फेरबदल करने के बाद इसे 2002 में जर्मनी में जलवायु पर हुई वार्ता के दौरान अंतिम रूप दिया गया. इस संधि के तहत औद्योगिक देश ग्रीन हाउस समूह की गैसों से होने वाले प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
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