सफलता की कहानियां और केस स्टडी

Term Path Alias

/sub-categories/success-stories-and-case-studies

सामुदायिक प्रयासों से किया कुलगाड़ में नौले को पुनर्जीवित
Posted on 27 Jul, 2017 04:30 PM

गाँव के उत्तर में एक नौला है, जिसे गाँववासी पनेरा नौला कहते हैं। यह पानी के स्रोत के साथ ग्रामीणों के लिये परम्परा एवं संस्कृति का केन्द्र है। यहाँ के निवासियों की मान्यता है कि नौले के जल में विष्णु का निवास स्थान होता है। शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन नौले में जाते हैं और अपना मुकुट वहाँ स्थापित करके आते हैं। दुल्हन नौले के पानी को भरकर सभी परिवार वालों को पिलाती है और जब भी गाँव में कोई कथा, शीर्वाचन होता है उसकी सामग्री का विसर्जन भी वही होता है।

कुलगाड़, नैनीताल। नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लाक में स्थित है कुलगाड़ गाँव। स्थानीय निवासियों की माने तो, पहाड़ी गधेरे के किनारे छोटे-छोटे खेतों के बीच बसे होने के कारण गाँव का नाम कुलगाड़ पड़ा। यह गाँव छोटा है, जैसे कि लगभग 80 फीसदी उत्तराखण्ड के गाँव हैं, जहाँ केवल 23 परिवार रहते हैं। हल्द्वानी से अल्मोड़ा जाने वाले नेशनल हाइवे नम्बर 87 से कुलगाड़ गाँव दिखता तो पास में है लेकिन कुछ दूर टेढ़े-मेढ़े रास्ते से पैदल चलकर यहाँ पहुँचा जा सकता है।

कुछ साल पहले गाँव के निवासी शहीद मेजर मनोज भण्डारी को श्रद्धांजलि देते हुए गाँव में सड़क पहुँच पाई है, जो अभी कच्ची है। स्थानीय बाजार, सुयालबाड़ी स्थित सड़क से गाँव स्पष्ट दिखाई देता है। जहाँ छोटे-छोटे सीढ़ीनुमा खेतों से ऊपर की ओर बसे गाँव को देखकर पहाड़ी गाँवों को बेहतर समझा जा सकता है।
वाटर हार्वेस्टिंग सहेजें बारिश की बूँदें (Rainwater Harvesting Essay In Hindi)
Posted on 25 Jul, 2017 12:37 PM

 

दुनिया की बड़ी आबादी आज भी पीने के पानी के लिये जद्दोजहद कर रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जल संकट भविष्य में बड़ी समस्या होगी। उस स्थिति से निपटने के लिये अगर अभी से तैयारी नहीं की गई तो परिणाम भयंकर हो सकते हैं। रेन वाटर हार्वेस्टिंग ऐसी ही कोशिश है जिसके जरिए वर्षाजल का संचयन कर उसका इस्तेमाल कर हम अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।

आज दुनिया भर में पानी का संकट तेजी से गहराता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि स्थितियाँ न सुधरीं तो 2025-30 तक विश्व की 50 फीसदी आबादी भयंकर जलसंकट झेलने को मजबूर होगी। जलसंकट से निपटने का सबसे कारगर तरीका है वर्षाजल संचयन। ‘बूँद-बूँद से सागर भरता है’, इस कहावत को सच कर दिखाया है रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से बारिश की बूँदों को सहेजने वाली इन सराहनीय कोशिशों ने-

63 वर्षीय श्यामजी जाधव राजकोट (गुजरात) के बहुत कम पढ़े लिखे किसान हैं पर जल संरक्षण को लेकर उनके प्रयास अच्छे अच्छों को मात देते हैं। उनकी सौराष्ट्र लोक मंच संस्था ने साधारण वर्षाजल संरक्षण संयंत्रों का प्रयोग कर समूचे गुजरात के लगभग 3 लाख खुले कुओं और बोरवेलों को बारिश के पानी से पुनर्जीवित कर दिया है।

वर्षाजल संग्रहण
फतेहपुर में सूखे पर फतेह
Posted on 11 Mar, 2017 01:55 PM
अनुवाद - संजय तिवारी

किसी सरकारी योजना में ऐसा पहली बार हुआ था कि दोहन की बजाय संवर्धन पर सरकारी धन खर्च किया गया था। सरकारें ट्यूबवेल बनाकर धरती का पानी खींचने में सिद्धहस्त होती हैं लेकिन यहाँ इसके उलट किसी छोटी जलधारा को जीवित किया गया ताकि धरती के पेट में पानी भर सके। छोटी जलधाराएँ न केवल स्थानीय भूजल को बनाकर रखती हैं बल्कि जिन नदियों में उनका मिलन होता है उस बड़ी नदी की सेहत के लिये भी ये छोटी नदियाँ वरदायी होती हैं।

यह देश के 250 सर्वाधिक पिछड़े हुए जिलों में से एक फतेहपुर की कहानी है जहाँ सरकारी पैसे के समुचित उपयोग और जन भागीदारी से समाज ने अपनी सूखी नदी को जिन्दा कर लिया।

39 साल के राम ईश्वर फतेहपुर स्टेशन के सामने रिक्शा चलाते थे। खेती करते थे तब भी वो कोई बड़े किसान नहीं थे लेकिन रोजी रोटी चल जाती थी। छोटी जोत में मेहनत से इतना पैदा कर लेते थे कि जीवन चल जाता था। जब पानी की कमी की वजह से छोटी जोत की पैदावार भी जरूरत से छोटी हो गई तो उन्होंंने रिक्शा चलाने का विकल्प चुना। अगर उद्योग धन्धे का विकल्प मिलता तो शायद मिल फैक्टरी में काम भी करते लेकिन फतेहपुर में रोजी रोटी के बहुत सारे विकल्प नहीं हैं। ऐसे में एक सरकारी योजना राम ईश्वर के लिये वरदान बनकर आई।

महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना के तहत फतेहपुर में एक ऐसा काम हाथ में लिया गया जिससे फतेहपुर को सींचने वाली सूखी नदी हरी हो गई। ससुर खदेरी (2) का पुनर्जीवन भारत में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का सफल उदाहरण है जिसने छोटी जोत वाले न जाने कितने किसानों को खेती की तरफ लौटाने का काम किया है।
तालाब सँवरा तो गाँव के अच्छे दिन लौटे
Posted on 12 Feb, 2017 03:51 PM

ग्रामीणों द्वारा डेढ़ महीने की मेहनत से तालाब का आकार खुलने लगा और 10 फीट तक गहरीकरण भी हु

Pond
एक अनूठी अन्तिम इच्छा
Posted on 18 Dec, 2016 11:48 AM

लव तालाब में डेढ़ हेक्टेयर के क्षेत्र में पानी भरा है। इस रमणीक संरचना के आस-पास के किसान

water crisis
अब गाँव-गाँव ठाठे मार रहा नीला पानी
Posted on 08 Nov, 2016 12:53 PM

बीते सालों के मुकाबले इस साल यहाँ के तालाबों में 40 फीसदी से ज्यादा बरसाती पानी इकट्ठा हुआ और यह पानी अब काफी समय तक गाँव के लोगों के उपयोग में आ सकेगा। कुछ गाँवों में तो यह गर्मी के मौसम तक चलने की उम्मीद है। उधर तालाबों में पानी रहने के कारण गाँव के आसपास का जलस्तर भी बढ़ गया है। इससे आसपास के जलस्रोत भी अब तक अच्छा पानी दे पा रहे हैं। इन्दौर जिले में प्रशासन ने जब गाँवों में पुराने और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तालाबों का आँकड़ा ढूँढा तो करीब साढ़े छह सौ तालाब ऐसे मिले जिनको थोड़ी-सी मेहनत से सँवारा जा सकता था।

अब इन्दौर जिले के करीब साढ़े तीन सौ तालाबों में नीला पानी ठाठे मार रहा है। कभी बारिश के बाद पानी के लिये बोरवेल के आसरे रहने वाले इस इलाके में अब तालाबों के इस पानी की बदौलत यहाँ के किसान सोयाबीन की फसल लेने के बाद अब गेहूँ-चने की फसल की तैयारी में जुट गए हैं।

यह नजारा है मध्य प्रदेश के दिल कहे जाने वाले मालवा इलाके के इन्दौर जिले के गाँवों का। हमारी गाड़ी जिस भी पक्की-कच्ची सड़क से गुजरी, हर तरफ यही दृश्य था। दूर-दूर तक हरहराते खेत और उनके बीच बने तालाबों में लबालब नीला पानी। किसान खुश है कि इस साल उन्हें पानी के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। कई किसान तो पहली बार अपने खेतों में दूसरी फसल ले पा रहे हैं। उनके लिये अब गर्मी तक के पानी का इन्तजाम हो गया है।
बनेडिया तालाब
उफरैखाल के नौले-धारे से पानीदार समाज
Posted on 27 Oct, 2016 11:24 AM

2200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित उफरैखाल जैसे खूबसूरत स्थल के आसपास के नौले-धारे सूख चुके थे। ग्रामीणों को हलक तर करने को कई-कई किमी की दूरी पैदल नापकर पानी की व्यवस्था करनी पड़ती थी। खासकर पहाड़ की रीढ़ मानी जानी वाली महिलाओं का अधिकांश वक्त इसमें जाया हो रहा था। हलक तर करने को तो पानी मिल रहा था, लेकिन मवेशियों के लिये इसकी व्यवस्था खासी मुश्किल हो रही थी। साथ ही पास की पहाड़ी भी सूख रही थी। 1986 तक हालात और ज्यादा खराब हो चुके थे।

गंगा और यमुना जैसी नदियों का उद्गम उत्तराखण्ड है। ये नदियाँ न सिर्फ उत्तराखण्ड, बल्कि देश के अन्य राज्यों की प्यास भी बुझा रही हैं। अब विडम्बना देखिए कि गंगा-यमुना के मायके यानी उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों के लोग ही प्यासे हैं। इसे देखते हुए ही बारिश की बूँदों को सहेजने की कोशिशें यहाँ परम्परा का हिस्सा बनी।

ब्रिटिश गढ़वाल से पहले तक गढ़वाल क्षेत्र में ही 3200 से अधिक चाल-खाल और हजारों की संख्या में नौले-धारे जीवित थे। और तो और खालों के नाम ही स्थानों का नामकरण भी हुआ। जयहरीखाल, गूमखाल, रीठाखाल, चौबट्टाखाल, बेदीखाल ऐसे अनेक कस्बाई इलाकों के नाम वहाँ बनी खालों के नाम पर ही पड़े।
×