गाँव के उत्तर में एक नौला है, जिसे गाँववासी पनेरा नौला कहते हैं। यह पानी के स्रोत के साथ ग्रामीणों के लिये परम्परा एवं संस्कृति का केन्द्र है। यहाँ के निवासियों की मान्यता है कि नौले के जल में विष्णु का निवास स्थान होता है। शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन नौले में जाते हैं और अपना मुकुट वहाँ स्थापित करके आते हैं। दुल्हन नौले के पानी को भरकर सभी परिवार वालों को पिलाती है और जब भी गाँव में कोई कथा, शीर्वाचन होता है उसकी सामग्री का विसर्जन भी वही होता है।
कुलगाड़, नैनीताल। नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लाक में स्थित है कुलगाड़ गाँव। स्थानीय निवासियों की माने तो, पहाड़ी गधेरे के किनारे छोटे-छोटे खेतों के बीच बसे होने के कारण गाँव का नाम कुलगाड़ पड़ा। यह गाँव छोटा है, जैसे कि लगभग 80 फीसदी उत्तराखण्ड के गाँव हैं, जहाँ केवल 23 परिवार रहते हैं। हल्द्वानी से अल्मोड़ा जाने वाले नेशनल हाइवे नम्बर 87 से कुलगाड़ गाँव दिखता तो पास में है लेकिन कुछ दूर टेढ़े-मेढ़े रास्ते से पैदल चलकर यहाँ पहुँचा जा सकता है।कुछ साल पहले गाँव के निवासी शहीद मेजर मनोज भण्डारी को श्रद्धांजलि देते हुए गाँव में सड़क पहुँच पाई है, जो अभी कच्ची है। स्थानीय बाजार, सुयालबाड़ी स्थित सड़क से गाँव स्पष्ट दिखाई देता है। जहाँ छोटे-छोटे सीढ़ीनुमा खेतों से ऊपर की ओर बसे गाँव को देखकर पहाड़ी गाँवों को बेहतर समझा जा सकता है।
जल समिति
कुलगाड़ गाँव की सबसे खास बात है, यहाँ की जल समिति एवं सरस्वती स्वयं सहायता समूह। जो महिला नेतृत्व आधारित है, प्रत्येक में 9-9 सदस्य हैं जिसमें 5 महिलाएँ और 4 पुरुष हैं। जल समिति मूल रूप से गाँव में पानी से जुड़े मुद्दों को लेकर चिराग संस्था के सहयोग से बनाई गई। जो 2013 से इस गाँव में प्राकृतिक जलस्रोतों को लेकर काम कर रही है। कुलगाड़ गाँव की जलसमिति की अध्यक्ष सविता भण्डारी कहती हैं कि हमारे गाँव में समिति 2013 से शुरू हुई और 2014 में काम शुरू किया। जिसमें पाँच महिलाओं के साथ चार पुरूष भी हैं। सभी ने मिलकर नौले के जीर्णोंद्धार का काम किया है।
जलग्रहण क्षेत्र में भी काम हुआ है। जल समिति का अपना आर्थिक माॅडल भी है। समिति की कोषाध्यक्ष कुंती देवी के अनुसार, ‘हम सभी सदस्यगण सरस्वती स्वयं सहायता समूह में 50 और जल समिति में 10 रुपए प्रतिमाह जमा करते हैं। इसमें कुल 9 लोग होते हैं। एक और व्यक्ति बाहर से जुड़ जाता है, इस प्रकार कुल 10 लोगों द्वारा प्रतिमाह 100 रुपए जमा किये जाते हैं। इस जमा धन का उपयोग खाल, गड्डों की सफाई, नौले की सफाई आदि कार्यों के लिये किया जाता है।’ समिति में पैसा जमा करने का एक ही उद्देश्य होता है ताकि वो पानी के काम को अपना समझ कर करें। इस प्रकार जल समिति ग्रामीणों के बीच आपसी संचार का माध्यम बना है जिसकी सहायता से सामुदायिक कार्यों को संस्था द्वारा अंजाम दिया जाता रहा है।
विकास का चिराग
चिराग संस्था मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पिछले लगभग 30 सालों से ग्रामीणों के बीच काम कर रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और पेयजल विषयों को लेकर समुदाय को जागरूक करना है। संस्था के मार्गदर्शन में कुलगाड़ के प्राकृतिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम हुआ है। जिसकी मुख्य विशेषता पूर्णतः समुदाय आधारित एवं महिला नेतृत्व प्रधान होना है। ग्रामीण जलस्रोतों, जिसे स्थानीय भाषा में नौला, धारा एवं पनेरा कहा जाता है, के रिचार्ज पर काम किया गया है। यह प्रयास जितना वैज्ञानिक है उतना ही इसमें परम्परागत तकनीकों का प्रभाव है, शायद यही वजह थी कि यह सफल भी रहा। चिराग संस्था में डेवलपमेंट असिसटेंट पद पर कार्यरत कृष्ण चंद भण्डारी नौले को समझाते हुए कहते हैं कि आसपास के पानी को एक स्थान पर एकत्रित करने के लिये नाले का निर्माण किया जाता है। हमारे बुजुर्गों ने स्थानीय पत्थरों, मिट्टी की मदद से पानी के स्रोतों को नौले का रूप दिया। किन्हीं स्थानों पर मांस की दाल को पीसकर या फिर लाल मिट्टी के माध्यम से नौले का निर्माण किया गया।
स्थानीय दास्तकारों द्वारा नौले की आन्तरिक बनावट में सीढ़ी इसलिये बनाई गई ताकि पानी का तल बाहर की ओर न भागे एवं नौले के अन्दर स्वच्छता भी बनी रहे। कुलगाड़ के पनेरा नौला के उन्नयन के लिये 2013 में अर्घ्यम की मदद से चिराग द्वारा तकनीकी सहयोग एवं भूगर्भीय सर्वेक्षण के लिये एक्वाडैम पुणे ने मदद की। आज पाँच साल बाद भी गर्मियों के मौसम में 5 से 6 लीटर पानी एवं बरसात में 15 लीटर पानी रहता है, जो गाँव वालों के लिये पर्याप्त होता है।
पनेरा नौला
गाँव के उत्तर में एक नौला है, जिसे गाँववासी पनेरा नौला कहते हैं। यह पानी के स्रोत के साथ ग्रामीणों के लिये परम्परा एवं संस्कृति का केन्द्र है। यहाँ के निवासियों की मान्यता है कि नौले के जल में विष्णु का निवास स्थान होता है। शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन नौले में जाते हैं और अपना मुकुट वहाँ स्थापित करके आते हैं। दुल्हन नौले के पानी को भरकर सभी परिवार वालों को पिलाती है और जब भी गाँव में कोई कथा, शीर्वाचन होता है उसकी सामग्री का विसर्जन भी वही होता है। स्थानीय वरिष्ठ नागरिक श्री शेर सिंह भण्डारी कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन के 95 साल में कभी नौले को सूखते हुए नहीं देखा, हाँ! ये जबसे गाँव में पाइप लाइन आई है यह गर्मी के दिनों में सूख जाता है। शेर सिंह जी की ये बातें जल संस्थान द्वारा लगाई गई पाइप लाइनों की ओर इशारा कर रही हैं जो पहाड़ी गाँवों में पेयजल मुहैया कराने के लिये किये गए अदूरदर्शी सोच है। पाइप लाइनों से किसी-न-किसी जलस्रोत के माध्यम से ही पानी आता है, हर ग्राम प्रधान जब भी पानी के संकट की बात आती है तो पाइप लाइन तो लगवा देता है लेकिन जलस्रोतों के जलस्तर को बढ़ाने की कोई नहीं सोचता है।
हालांकि शुरुआत में कुछ दिन पाइपों में पानी रहता है लेकिन गर्मी आने के साथ ही ये भी सूख जाते हैं। इसी सन्दर्भ में स्थानीय विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर उत्तराखण्ड राज्य में पानी की आपूर्ति के लिये लगाई गई सभी पाइप लाइनों को आपस में जोड़कर चाँद तक पहुँचा जा सकता सकता है। इस बयान में सत्यता हो न हो लेकिन सवाल जरूर है।
सामुदायिक प्रयास
इन प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग नहीं उपयोग करना चाहिए यह प्रकृति का शाश्वत नियम है, जिसे आज का मनुष्य नहीं समझ पा रहा है। कुलगाड़ जल समिति की सन्दर्भ व्यक्ति एवं पैराहाइड्रोसाइंटिस्ट प्रेमा भण्डारी कहती हैं कि हमारे गाँव का नौला जो कुछ समय पहले सूख गया था उसके संवर्धन के लिये जल समिति ने काम किया है। एक समय नौले का डिस्चार्ज केवल 4 एलपीएम यानी लीटर प्रति मिनट रह गया था। जिसके लिये हमने सामुदायिक प्रयासों से उसके कैचमेंट के 7.3 हेक्टेयर में काम किया। जिसमें लगभग दो बार में छह हजार से ज्यादा पौधों की बुआई की थी। इसके अतिरिक्त कैचमेंट में कंटूर टैंक, खाल, चेकडैम, परकोलेशन पीड बनाए गए। ये सभी कार्य समिति के माध्यम एवं ग्रामीणों के सहयोग से किया गया। यह काम इतना आसान नहीं था इसमें एक विवाद सामने आया जिसमें गाँव के गधेरे के बीच स्थित नौले के कैचमेंट को लेकर आया। नौला कुलगाड़ गाँव की जमीन में है। लेकिन इसका कैचमेंट एरिया दूसरे गाँव की जमीन में है। आपस में चार-पाँच महीने की मीटिंग के बाद उन्हें हम ये बता पाये की स्रोत कितना जरूरी है। उनको भी लगा ये सही काम कर रहे हैं।
कुलगाड़ कैचमेंट एरिया में दो प्रकार के पत्थर हैं। एक है क्वार्टजाइट और दूसरा फ्लाइट एवं यहाँ पत्थरों का उत्तरी पूर्वी ढलान है। क्वार्टजाइट, यह कठोर होता है जो पानी को रोकता है। इसे स्थानीय भाषा में डासी पत्थर बोलते हैं। दूसरा फ्लाइट जिसमें अलग-अलग परतें होती हैं। यह अपनी परतों में पानी को रोककर रखता है और धीरे-धीरे छोड़ता है। फ्लाइट में फैक्चर यानी दरारें हैं जिसके द्वारा पानी धीरे-धीरे नौले की ओर जाता है। पहले नौले में 4 एलपीएम पानी था अब 14 एलपीएम रहता है। इसके साथ प्रतिमाह पानी को नापते हैं और जाँच करते हैं। इसके अम्लीयता और क्षारीयता की जाँच करते हैं। चिराग संस्था के एरिया मैनेजर भीम सिंह नेगी कहते हैं कि समुदाय के माध्यम से इस कुलगाड़ के कैचमेंट एरिया में 2013-15 के बीच हमने खाल-चाल, कंटूर ट्रेंच, वृक्षारोपण का काम किया है। जिसके काफी अच्छे परिणाम आये। ग्रामवासी गर्मी के मौसम मेें आग बुझाने के लिये अपने प्रयास भी करते रहते हैं। आज ग्रामीण पानी, जंगल को लेकर जागरूक हैं यही हमारे काम की सफलता है।
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Post By: Editorial Team