बीते सालों के मुकाबले इस साल यहाँ के तालाबों में 40 फीसदी से ज्यादा बरसाती पानी इकट्ठा हुआ और यह पानी अब काफी समय तक गाँव के लोगों के उपयोग में आ सकेगा। कुछ गाँवों में तो यह गर्मी के मौसम तक चलने की उम्मीद है। उधर तालाबों में पानी रहने के कारण गाँव के आसपास का जलस्तर भी बढ़ गया है। इससे आसपास के जलस्रोत भी अब तक अच्छा पानी दे पा रहे हैं। इन्दौर जिले में प्रशासन ने जब गाँवों में पुराने और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तालाबों का आँकड़ा ढूँढा तो करीब साढ़े छह सौ तालाब ऐसे मिले जिनको थोड़ी-सी मेहनत से सँवारा जा सकता था।
अब इन्दौर जिले के करीब साढ़े तीन सौ तालाबों में नीला पानी ठाठे मार रहा है। कभी बारिश के बाद पानी के लिये बोरवेल के आसरे रहने वाले इस इलाके में अब तालाबों के इस पानी की बदौलत यहाँ के किसान सोयाबीन की फसल लेने के बाद अब गेहूँ-चने की फसल की तैयारी में जुट गए हैं।यह नजारा है मध्य प्रदेश के दिल कहे जाने वाले मालवा इलाके के इन्दौर जिले के गाँवों का। हमारी गाड़ी जिस भी पक्की-कच्ची सड़क से गुजरी, हर तरफ यही दृश्य था। दूर-दूर तक हरहराते खेत और उनके बीच बने तालाबों में लबालब नीला पानी। किसान खुश है कि इस साल उन्हें पानी के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। कई किसान तो पहली बार अपने खेतों में दूसरी फसल ले पा रहे हैं। उनके लिये अब गर्मी तक के पानी का इन्तजाम हो गया है।
गौरतलब है कि इसी साल मई और जून के महीने में 45-46 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान, लू के थपेड़ों और चिलचिलाती धूप में भी गाँव-गाँव तालाबों को सहेजने और उन्हें गहरा करने का काम स्थानीय रहवासियों ने जोर-शोर से किया था। किसानों ने यहाँ अपना पसीना बहाकर जिस तरह अपने आसपास की जल संरचनाओं और खासतौर पर तालाबों की गाद निकालने और गहरीकरण का काम किया था, उसका फायदा उन्हें इसी साल से मिलने भी लगा है। इसी तरह कुछ किसानों ने यहाँ अपने खेतों पर खेत तालाब भी बनवाए हैं।
दरअसल यहाँ प्रशासन और किसानों ने मिलकर जिले के करीब साढ़े छह सौ पुराने तालाबों के कायाकल्प और डेढ़ सौ से ज्यादा खेत तालाबों को बनाने का बीड़ा उठाया। इसके लिये प्रशासन ने कोई अतिरिक्त बजट या पैसा खर्च नहीं किया, बस थोड़ी-सी समझदारी और लोगों के समझाने भर से ही यह मुहिम आगे बढ़ी और अब रंग लाने लगी है।
बीते सालों के मुकाबले इस साल यहाँ के तालाबों में 40 फीसदी से ज्यादा बरसाती पानी इकट्ठा हुआ और यह पानी अब काफी समय तक गाँव के लोगों के उपयोग में आ सकेगा। कुछ गाँवों में तो यह गर्मी के मौसम तक चलने की उम्मीद है। उधर तालाबों में पानी रहने के कारण गाँव के आसपास का जलस्तर भी बढ़ गया है। इससे आसपास के जलस्रोत भी अब तक अच्छा पानी दे पा रहे हैं।
इन्दौर जिले में प्रशासन ने जब गाँवों में पुराने और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तालाबों का आँकड़ा ढूँढा तो करीब साढ़े छह सौ तालाब ऐसे मिले जिनको थोड़ी-सी मेहनत से सँवारा जा सकता था। अब यदि इस काम को सरकार अपने खर्च पर करवाती तो सरकारी खजाने का करीब 70 करोड़ से भी ज्यादा का बजट खर्च हो जाता, फिर भी शायद इतना अच्छा काम नहीं हो पाता, जो ग्रामीणों के सक्रिय सहयोग से यहाँ सम्भव हो सका। प्रशासन ने तालाबों को गहरा करने के लिये किसानों को यह छूट दे दी कि इन्हें गहरा करने से जो भी मिट्टी निकलेगी, उसे वे अपने खेतों में डालकर खेतों को और भी उपजाऊ कर सकते हैं।
तालाबों की तली से निकलने वाली काली मिट्टी को खेती के लिहाज से बहुत अच्छा और उपजाऊ माना जाता है। इस छूट का फायदा यह हुआ कि गाँव-गाँव लोग अपने यहाँ के तालाब को सँवारने और गहरा करने में जुट गए। इससे किसानों को दोतरफा फायदा होने लगा। एक-उनके खेत उपजाऊ मिट्टी से सँवरने लगे और उनकी उपजाऊ क्षमता बढ़ गई तो दूसरी तरफ उनके गाँव का अब तक अनुपयोगी और उपेक्षित पड़ा तालाब भी अब गहरा होने से उनके काम का हो गया। कुछ जगह तालाबों पर किये गए छोटे-बड़े अतिक्रमण भी प्रशासन ने हटाए। किसानों को मुफ्त मिट्टी देने का फार्मूला चल निकला। इससे पहले ऐसा करना सम्भव नहीं था। तालाब से मिट्टी खोदने पर उन्हें अनुमति लेनी होती थी और रायल्टी जमा करनी होती थी।
जिले में बीते साल 2015 में औसत बारिश 1030 मिमी से घटकर 952 मिमी पर ही सिमट गई थी। इससे इलाके में लोगों की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक था। इधर बारिश कम हो रही थी तो उधर धरती का पानी भी लगातार पाताल में उतरता जा रहा था। बीते पच्चीस सालों में धीरे-धीरे तालाब से किसानों की निर्भरता खत्म होती गई और किसान अपने-अपने खेतों में ट्यूबवेल करवाते रहे। जहाँ पहले 300 से 400 फीट पर ही पानी मिलता था, वहाँ अब 800 से एक हजार फीट तक जा पहुँचा है। इससे इलाके के किसान चिन्तित हुए। साल-दर-साल पानी की कमी किसान तो क्या गाँव के लोग पीने के लिये भी महसूस करने लगे थे।
जिले का सबसे बड़ा बनेडिया तालाब करीब 1030 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। बनेडिया के सरपंच धर्मराज पटेल कहते हैं, ‘यह करीब सौ साल पुराना तालाब है और हमारे बाप–दादा इसी के पानी से हमारे खेतों को सींचते थे। इसके पानी से आसपास के आधा दर्जन गाँवों के किसान फसल लेते थे लेकिन धीरे-धीरे तालाब उपेक्षित हो गया। इलाके के किसानों ने आपस में राय मशविरा किया कि क्यों नहीं हम इस पानी की होड़ से तौबा करें और कुछ ऐसा करें कि पानी का भूजल भण्डार भी बढ़े और हमारे खेतों को भी पानी मिलता रहे। ध्यान गया परम्परागत तालाब से सिंचाई का। पर तालाब तो अब बहुत उथला हो चुका था और जगह-जगह अतिक्रमण भी। एक तरफ झाड़ियाँ उग आई थीं तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस पर खेती करने लगे थे। हालत यह थी कि कभी पूरे साल पानी से भरा रहने वाला तालाब दिवाली यानी बारिश के बाद दो महीने भी साथ नहीं दे पाता था, सूखने लगता था। बात चली तो तय हुआ कि गाँव के तालाब को फिर से जिन्दा करेंगे।’
गाँव के लोग बताते हैं कि यह इतना आसान नहीं था। इसके लिये सरकार और अधिकारियों से गुहार की पर किसी के पास भी इतना पैसा नहीं था कि उथले हो चुके तालाब को फिर से जिन्दा किया जा सके। प्रशासन ने कहा कि यदि किसान चाहें तो खुद इसकी मिट्टी निकालें और अपने खेतों को सुधारें। जिला पंचायत ने पहली बार तालाब के मिट्टी की कोई रायल्टी नहीं ली। इससे किसानों को अपने खेतों के लिये उपजाऊ मिट्टी और बरसाती पानी दोनों मिल सकेगी। किसान इसके लिये राजी हो गए। यहाँ दस जेसीबी मशीनें देर शाम तक लगी रहती। इनकी खोदी गई मिट्टी को हर दिन सवा सौ ट्रालियों से बाहर खेतों में डाला गया। तालाब को 4 से 5 फीट तक गहरा किया जा चुका है।
ग्रामीणों का दावा है कि इससे इसी साल करीब 1200 हेक्टेयर खेतों में सिंचाई सम्भव हो सकी है और आसपास नौ गाँवों के ढाई हजार से ज्यादा छोटे-बड़े किसानों को फायदा हुआ है। वे अब दो या तीन फसल भी ले रहे हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हो रहा है कि पानी धीरे-धीरे जमीन में रिसते हुए जलस्तर भी बढ़ेगा।
इसी तरह 85 एकड़ में फैले हातोद तालाब की पाल पर मिले किसान हरिसिंह बताते हैं कि इससे पहले ऐसा किसी ने नहीं किया। इसे बारिश से पहले तीन फीट तक गहरा किया गया। इससे हातोद कस्बे को पीने के लिये पानी भी आसानी से मिल सकेगा। पार्षद नरोत्तम चौधरी बताते हैं कि तालाब सूखने से जलस्तर गिरता है। कस्बे के बोरिंग और कुएँ भी सूखने लगते हैं। तालाब में पानी भरा है तो लोगों को पीने का पानी मुहैया हो सकेगा।
किसान पोपसिंह कहते हैं, ‘अब हमने बारिश की हर बूँद को थाम लिया है ताकि इस बार हमें और आसपास के गाँव वालों को पानी के लिये मोहताज नहीं होना पड़े। हमने अपनी तालाबों की विरासत भूलाकर ट्यूबवेल अपना लिया था लेकिन अब साल-दर-साल जिस तेजी से भूजल भण्डार नीचे जा रहा है, उससे बारिश के पानी को जमीन तक पहुँचाने और इसके समुचित भण्डारण की जरूरत शिद्दत से महसूसी जाने लगी है।’
इन्दौर जिला पंचायत के सीईओ वरदमूर्ति मिश्रा कहते हैं, ‘हमें खुशी है कि किसानों ने इस बात को समझा। जिले में पहली बार रायल्टी और अनुमति के नियम को शिथिल किया गया। जिले के राजस्व रिकार्ड में दर्ज 639 तालाब, जिनका कैचमेंट एरिया 3-4 एकड़ से लगाकर सैकड़ों एकड़ तक है। 1 मई 16 से 18 जून तक बड़ी तादाद में तालाबों से मिट्टी निकाली गई। इससे इस बार की बारिश में जल संग्रहण क्षमता में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोत्तरी हुई है। इस साल दिसम्बर से हम फिर से इस काम को आगे बढ़ाएँगे। तालाबों के आसपास सौन्दर्यीकरण भी करेंगे।’
जब इन तालाबों को पानी से लबालब देखता हूँ तो छह महीने पहले का सारा घटनाक्रम आँखों के सामने घूमने लगता है। यादों में तस्वीर कौंधती है, जब यहाँ गहरीकरण के काम का कवरेज करने आये थे। तब यहाँ जेसीबी मशीनों और पोकलेन मशीनों की घर्र-घर्र के बीच किसान अपनी ट्रैक्टर-ट्रालियाँ लिये अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे। वे तालाब की काली मिट्टी अपने खेतों में डालकर तालाबों के साथ अपने खेत भी सँवार रहे थे और अब सच में, यहाँ के किसानों ने अपने पसीने से इन तालाबों की दशा बदल दी है। इससे अब उनके खेत और गाँव दोनों की ही किस्मत बदल रही है।
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Post By: RuralWater