शोध पत्र

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सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना तंत्र प्रणाली के प्रयोग द्वारा जल संसाधनों का अनुप्रयोग
Posted on 26 Dec, 2011 10:06 AM
जल मानव जीवन के लिए प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अनमोल देन है। जल मनुष्य के जीवन, कृषि तथा जल विद्युत परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधन है। वर्षा जल का सामयिक तथा स्थानिक रूप से असमान होना, बाढ़ एवं सूखा आदि समस्याओं का प्रमुख कारण है। बाढ़ एवं सूखा जैसी समस्याओं सहित अन्य विविध समस्याओं के समाधान तथा जल की निरंतर मांग में वृद्धि होने के कारण, जल संसाधनों का उचित उपयोग तथा प्रबंधन अति आवश्यक है।
जल शुद्धिकरण प्रोजेक्ट | Water Purification Techniques in Hindi
जल शुद्धिकरण प्रोजेक्ट हेतु उपलब्ध आधुनैक तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त करें | Get information about modern technologies available for water purification in hindi. Posted on 24 Dec, 2011 01:04 PM

रिवर्स ऑसमोसिस
अंकीय चित्र प्रणाली द्वारा पोंग (राणा प्रताप सागर) जलाशय का तलछट आंकलन
Posted on 24 Dec, 2011 12:25 PM
जलाशयों के साथ अवसाद या तलछट का होना एक मुख्य घटक है। जो कि जलाशयों की अवधि को हानी पहुँचाता है। अवसाद कण साधारणतः दूर तक फैले आवाह क्षेत्र में नदी बहाव से हुए मृदा अपरदन प्रक्रिया से उत्पन्न होते हैं। जब नदी का बहाव जलाशय में कम होता है तो उसके साथ-साथ अवसाद भी जलाशय में जमा हो जाता है और इसकी जलधारण क्षमता को कम कर देता है। जलाशय की जलधारण क्षमता में सीमा से परे हुई क्षति हमारे मूल उद्देश्
दक्षिण भारत के अर्द्धशुष्क क्षेत्र में पारम्परिक तालाबों पर जल ग्रहण विकास कार्यक्रम का प्रभाव-एक समीक्षा
Posted on 23 Dec, 2011 11:42 AM
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 75% से अधिक जनसंख्या गाँव में रहती है। उसकी जरुरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जल संसाधनों का सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिये। जल संसाधनों के विकास में उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, मौसम तंत्र, मृदा, वनस्पति व अन्य जरुरतों को ध्यान में रखा गया था। यह विकास इस तरह से किया गया था, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में रह
ट्रीटियम टैगिंग तकनीक द्वारा वर्षा से भूजल पुनः पूरण का आंकलन
Posted on 23 Dec, 2011 11:24 AM
जल संसाधनों के उचित प्रबंधन में भू-जल में रिचार्ज का आकलन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू है। सामान्यतः पर्याप्त आंकड़ों की अनुपलब्धता के कारण व्यवहारिक विधियों द्वारा भू-जल में वर्षा जल अथवा/और सिंचाई जल की वजह से रिचार्ज का आंकलन करना कठिन कार्य है। वर्षा जल अथवा सिंचाई जल का भू-जल में रिचार्ज का आकलन करने के लिए समस्थानिक विधि विशेषतः ट्रीटियम टैगिंग तकनीक भारत के कई क्षेत्रों सहित विभिन्न देश
सॉफ्ट कम्प्यूटिंग तकनीकों द्वारा भू-जल स्तर का आंकलन
Posted on 23 Dec, 2011 11:12 AM
देश के विभिन्न भागों में बढ़ती माँग की पूर्ति करने के लिए भूजल का दोहन किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भौमजल स्तर में गिरावट आ रही है इस कारण भविष्य में जल उपलब्धता का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। भूजल संसाधनों की प्रक्रिया को समझने एवं भविष्य की सम्भावित परिस्थितियों में क्या हो सकता है यह जानने के लिए भूजल प्रतिदर्शों का बड़े पैमाने पर प्रयोग हो रहा है। भूजल प्रवाह की जटिल समस्याओं पर का
जल विभाजक के लिए अभिकल्प अपवाह वक्र संख्या का निर्धारण
Posted on 22 Dec, 2011 01:29 PM
अनगेज्ड लघु जल विभाजकों के लिए वृष्टि घटक अपवाह का आंकलन जलविज्ञान की प्रमुख गतिविधियों में से एक है। जल संसाधन एवं सिंचाई अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अनगिनत संगणक निदर्श उपलब्ध हैं तथा इनमें से अधिकांश वृहत एवं लोकप्रिय निदर्श वर्षा घटक से अतिरिक्त वर्षा निर्धारण के लिए मृदा संरक्षण सेवा वक्र संख्या प्रौद्योगिकी (SCS - CN) का प्रयोग करते हैं। इन समस्याओं के सरलतम समाधान के लिए अधिकांशतः उपय
फसलों के लिए जल की आवश्यकता एवं प्रबंधन
Posted on 22 Dec, 2011 01:04 PM
भागीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाये जाने की पौराणिक कथा है, जो सिंचाई के लिए जल प्रभाव द्वारा सिंचाई की व्यवस्था की सफलता का इतिहास है। इससे यह स्पष्ट है कि भारत में प्राचीनकाल से ही सिंचाई पर जोर दिया जाता रहा है। वर्षा से प्राप्त जल-संसाधनों के पूरक के रूप में जल-संग्रह की स्थानीय सुविधाओं नहरों, सामुदायिक तालाबों और अन्य साधनों को न केवल प्राचीन काल के बडे़-बडे़ राजाओं द्वारा, बल्कि मध्य
मृदाओं में अन्तःस्यन्दन दरों का मापन
Posted on 22 Dec, 2011 10:31 AM जलविज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं भूमि उपयोगों की स्थिति में अन्तःस्यन्दन ज्ञान जरूरी है। अन्तःस्यन्दन दर मृदा में जल के प्रवेश कर सकने की अधिकतम दर को निर्धारित करती है। अन्तःस्यन्दन दर प्रारंभ में बहुत तेजी से कम होती है फिर कुछ समय के पश्चात यह एक स्थिर दर पर पहुंच जाती है। यह दर पूर्वगामी मृदा नमी एवं प्रपुण्ज घनत्व में परिर्वतन से
‘‘हिम-ब्रह्मसागर योजना‘‘ जल और विद्युत ऊर्जा का अविरल स्रोत
Posted on 22 Dec, 2011 09:58 AM
भारतीय उपखंड पर एक वर्ष के भीतर जलचक्र के माध्यम से करीब 4000 घन किमी.
स्वाभाविक रचना एवं जल स्रोत और जल विभाजन की स्थितियाँ
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