जल संसाधनों के उचित प्रबंधन में भू-जल में रिचार्ज का आकलन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू है। सामान्यतः पर्याप्त आंकड़ों की अनुपलब्धता के कारण व्यवहारिक विधियों द्वारा भू-जल में वर्षा जल अथवा/और सिंचाई जल की वजह से रिचार्ज का आंकलन करना कठिन कार्य है। वर्षा जल अथवा सिंचाई जल का भू-जल में रिचार्ज का आकलन करने के लिए समस्थानिक विधि विशेषतः ट्रीटियम टैगिंग तकनीक भारत के कई क्षेत्रों सहित विभिन्न देशों में सफलता पूर्वक प्रयोग में लाई जा चुकी है।
प्रस्तुत प्रपत्र में नर्मदा बेसिन के अन्तर्गत जिला नरसिंहपुर (म.प्र.) के कुछ भागों में वर्षाजल एवं सिंचाई जल के कारण भू-जल में रिचार्ज का आंकलन ट्रीटियम टैगिंग तकनीक द्वारा लगाया गया है। अध्ययन क्षेत्र में जोते हुए तथा बिना जोते हुए खेतों में परीक्षण किये गये हैं। अध्ययन क्षेत्र में मुख्यतः चार प्रकार की मृदायें जैसे मिट्टी, मिट्टी दुमट, दुमट तथा रेतीली दुमट मिट्टी पायी गई हैं। अध्ययन क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 1246 मिमी0 है। अध्ययन क्षेत्र में भू-जल में रिचार्ज का प्रतिशत मृदा के प्रकार तथा अन्य भू-जल विज्ञानीय दशाओं के कारण 7.76% से 22.44% तक पाया गया है। प्रस्तुत प्रपत्र में प्रयुक्त की गई समस्थानिक विधि विशेषतः ट्रीटियम टैगिंग तकनीक की कार्य प्रणाली तथा अध्ययन क्षेत्र की विस्तृत जानकारी दी गई है। अध्ययन क्षेत्र में भू-जल में रिचार्ज का आंकलन मुख्यतः वर्ष 1995 में मानसून की अवधि में किया गया।
ट्रीटियम टैगिंग तकनीक द्वारा वर्षा से भूजल पुनः पूरण का आकलन (Assessment of recharge to groundwater due to rain using Tritium tagging technique)
सारांश:
जल संसाधनों के उचित प्रबंधन में भूजल में रिचार्ज का आकलन एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू है। सामान्यतः पर्याप्त आँकड़ों की अनुपलब्धता के कारण व्यवहारिक विधियों द्वारा भूजल में वर्षाजल अथवा और सिंचाई जल की वजह से रिचार्ज का आकलन करना कठिन कार्य है। वर्षाजल अथवा सिंचाई जल का भूजल में रिचार्ज का आकलन करने के लिये समस्थानिक विधि विशेषतः ट्रीटियम टैगिंग तकनीक भारत के कई क्षेत्रों सहित विभिन्न देशों में सफलतापूर्वक प्रयोग में लाई जा चुकी है। प्रस्तुत प्रपत्र में नर्मदा बेसिन के अंतर्गत जिला नरसिंहपुर (म.प्र.) के कुछ भागों में वर्षाजल एवं सिंचाई जल के कारण भूजल में रिचार्ज का आकलन ट्रीटियम टैगिंग तकनीक द्वारा किया गया है। अध्ययन क्षेत्र में जोते हुए तथा बिना जोते हुए खेतों में परीक्षण किये गये हैं। अध्ययन क्षेत्र में मुख्यतः चार प्रकार की मृदायें जैसे मिट्टी, मिट्टी दुमट, दुमट तथा रेतीली दुमट मिट्टी पायी गई है। अध्ययन क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 1246 मिमी. है। अध्ययन क्षेत्र में भूजल में रिचार्ज का प्रतिशत मृदा के प्रकार तथा अन्य भूजल विज्ञानीय दशाओं के कारण 7.76% से 22.44% तक पाया गया है। प्रस्तुत प्रपत्र में प्रयुक्त की गई समस्थानिक विधि विशेषतः ट्रीटियम टैगिंग तकनीक की कार्य प्रणाली तथा अध्ययन क्षेत्र की विस्तृत जानकारी दी गई है। अध्ययन क्षेत्र में भूजल में रिचार्ज का आकलन मुख्यतः वर्ष 1995 में मानसून की अवधि में किया गया।
Abstract
Estimation of recharge to groundwater is crucial to better water source management particularly in arid and semi-arid regions. In general, it is difficult to estimate recharge to groundwater due to rainfall or irrigation using conventional methods due to nonavailability of adequate data. Nuclear methods, specially tritium tagging technique has been used successfully in different countries including many parts in India. In the present paper, the assessment of recharge to groundwater due to rains has been made using Tritium tagging technique in parts of Narisingpur district (M.P.) lying in the Narmada basin. In the study area, experiments have been carried out in cultivated as well as in uncultivated fields. In the study area, mainly four types of soils were found namely clay, clay loam, loam and sandy clay in which clay is predomianant. The average annual rainfall of the area is 1246 mm. The percentage of recharge to groundwater varies from 7.67% to 22.44% in the study area with respect to the type of soil and other geo-hydrological conditions. In the present paper the details of the methodology followed and details about the area including the results obtained with regard to the values of recharge to groundwater obtained have been described. The assessment of recharge to groundwater has been made mainly due to the monsoon rains of the year 1995.
प्रस्तावना
भू-सतह से मृदा की अनुवर्ती परतों में भूजल में रिचार्ज अंतः स्यंदन की प्रक्रिया द्वारा निंयत्रित होता है जोकि असंतृप्त मृदा में पानी की गति का अध्ययन करने के लिये आवश्यक मुख्य प्राचलों में से एक है। भू-सतह से मृदा में जल के प्रवेश की प्रक्रिया को अन्तःस्यंदन कहते हैं। भूजल संसाधनों के मूल्यांकन के लिये भूजल में रिचार्ज का आकलन आवश्यक है। अधिकतर क्षेत्रों में भूजल में रिचार्ज का मुख्य स्रोत अवक्षेपण होता है। परंतु सिंचित क्षेत्रों में इरीगेशन रिटर्न प्रवाह भी भूजल रिचार्ज में महत्त्वपूर्ण ढंग से योगदान करता है।
अवक्षेपण तथा सिंचाई जल (जोकि भूजल में डायरेक्ट लम्बवत रिचार्ज का योगदान करते हैं) के रिचार्ज का एक पार्श्विक भाग प्राकृतिक जलीय प्रवणता के कारण अधःस्तल क्षैतिज प्रवाह के माध्यम से होता है। समस्थानिक विधियाँ रिचार्ज के लम्बवत भाग का आकलन करने के लिये प्रयोग में लाई जा सकती है। भूजल में रिचार्ज के लम्बवत भाग का प्राकृतिक रूप से इन्जेक्टेड पर्यावरणीय समस्थानिकों जैसे ऑक्सीजन-18 ड्यूटीरियम तथा ट्रीटियम के द्वारा आकलन किया जा सकता है। साथ ही कृत्रिम ट्रीटियम (जिसको चुनिंदा स्थलों पर इन्जेक्ट किया जाता है) भी इस कार्य के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। प्रस्तुत प्रपत्र में, कृत्रिम ट्रीटियम भूजल में रिचार्ज का आकलन करने के लिये प्रयोग में लाया गया है।
अध्ययन क्षेत्र
अध्ययन क्षेत्र नर्मदा नदी बेसिन में स्थित बरगी डैम से निकली नहर के बायीं तरफ के किनारे का कमाण्ड एरिया है। यह दो आब का क्षेत्र पूरब में शेर नदी पश्चिम में बारू रेवा तथा दक्षिण में बरगी नहर के बायें किनारे के बीच स्थित है। इस क्षेत्र का लेटीट्यूड 22डिग्री50’ N से 23डिग्री1’N तथा लाँगीट्यूड 79डिग्री 8’ E से 79डिग्री23’ E है। इसका क्षेत्रफल लगभग 250 किमी. है। यह क्षेत्र मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के पूरब में स्थित तथा स्टेट हाइवे 22 जो की जबलपुर से होशंगाबाद जाता है। और इसके बीचों बीच गुजरता है तथा मुख्य ब्रोडगेज रेलवे लाइन जोकि हावड़ा से मुम्बई जाती है, भी इस क्षेत्र से गुजरती है। सतही मृदा एवं सुलभता को ध्यान में रखते हुए आठ स्थलों को अध्ययन हेतु चुना गया (चित्र 1) दूसरी अन्य जानकारी हेतु इन स्थलों को सारणी 1 में दर्शाया गया है।
अध्ययन क्षेत्र की ऊँचाई समुद्र तल से 313 मी. से 380मी. के बीच है। भौगोलिक स्थिति के हिसाब से नदियों के पास के इलाके को छोड़कर शेष क्षेत्रफल समतल है। यहाँ केवल चार प्रकार की मृदा पायी गई है जैसे मिट्टी, दुमट मिट्टी रेतीली दुमट मिट्टी तथा दुमट। जिसमें मिट्टी एवं मिट्टी दुमट की अधिकता है। क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 1246 मिमी. है। सामान्यतः अध्ययन क्षेत्र का तापमान 20डिग्री से 45डिग्री तक रहता है।
कार्यविधि
क्षेत्र परीक्षण: सतही मृदा तथा स्थल की सुलभता को ध्यान में रखते हुए परीक्षण के लिये स्थलों का चुनाव किया गया। मानसून से पहले ट्रीटियम इन्जेक्शन 8 स्थलों पर किए गए चित्र 1। प्रत्येक परीक्षण स्थल पर ट्रीटियम इन्जेक्शन के दो सैट लगाए गए। प्रत्येक सैट में जमीन में पाँच छेद किये गये। प्रत्येक सैट में एक छेद केन्द्र पर तथा अन्य चार छेद 10 सेमी. की व्यास के वृत्त पर किए गए 70 सेमी. गहरे छेद बनाने के लिये सबसे पहले ड्राइव रॉड (12 मिमी. व्यास) जमीन में हथौड़े से ठोकी गई। इसके बाद ड्राइव रॉड जमीन से बाहर निकाल ली गई तथा छेदों में स्टेनलेस स्टील पाइप (इन्जेक्शन पाइप) डाला गया। इस इन्जेक्शन पाइप के द्वारा प्लास्टिक सिरिंज की सहायता से 2 मिली. ट्रीटियम (विशिष्ट एक्टिविटी-40 माइक्रोक्यूरी/ली.) प्रत्येक छेद में डाला गया। ट्रीटियम इन्जेक्शन करने के बाद प्रत्येक छेद को पूरी तरह से मृदा से भर दिया गया। प्रत्येक परीक्षण स्थल पर कुछ लोहे की कीलें इन्जेक्शन के सैटों की लाइन पर हथौड़े से ठोकी गई तथा जमीन में छोड़ दी गई, जिन्होंने प्रत्येक परीक्षण स्थल के लिये मार्कर का काम किया। परीक्षण स्थल किसानों द्वारा सामान्य उपयोग के लिये छोड़ दिए गए। सैम्पलिंग मानसून के तुरंत बाद अक्तूबर 1995 के दौरान की गई। मृदा सैम्पल एक हैण्ड ऑगर (व्यास-2 इंच) की सहायता से (10 सेमी. सेक्सन) लिये गए। मृदा सैम्पल भू-सतह से लगभग 150/200 सेमी. गहराई तक लिये गए। मृदा सैम्पल सावधानीपूर्वक एकत्रित किए गए तथा ठीक से बंद पॉलीथीन बैग में पैक किए गए, जिससे कि वातावरण की नमी का आदान-प्रदान न हो। ठीक से पैक किए गये मृदा नमूने विश्लेषण के लिये प्रयोगशाला में ले जाए गए।
प्रयोगशाला परीक्षण: जून-जुलाई 1995 के दौरान एकत्रित किए गए मृदा नमूनों का कण आकार विश्लेषण संस्थान की मृदा एवं भूजल प्रयोगशाला में छलनी तथा अवसादन विधि द्वारा किया गया। कण आकार विश्लेषण के परिणाम सारणी 2 में दिए गए हैं।
इसके बाद मानसून काल के बाद अक्तूबर 1995 में एकत्रित किए गए मृदा नमूनों का जलांश आर्द्र वजन के आधार पर भारात्मक विधि द्वारा निकाला गया। प्रत्येक मृदा नमूने का बल्क घनत्व नमूने के आर्द्र वजन को नमूने के आयतन से भाग देकर निर्धारित किया गया। प्रत्येक मृदा नमूने का आयतनी जलांश आर्द्र वजन के आधार पर निर्धारित किए गए जलांश को मृदा सैम्पल के बल्क घनत्व द्वारा गुणा करके निर्धारित किया गया। प्रत्येक स्थल पर आयतनी जलांश का गहराई के साथ परिवर्तन चित्र (2) से चित्र (9) में दर्शाया गया है।
प्रत्येक मृदा नमूने के आयतनी जलांश के निर्धारण के बाद प्रत्येक मृदा नमूने का निम्न दबाव के अंतर्गत आसवन किया गया जिससे जल के साथ एकत्रित होने वाली वाष्पशील अशुद्धियों को रोका जा सके। आसवन द्वारा प्रत्येक मृदा नमूने से जल निकालकर शीशियों में एकत्रित किया गया। इस प्रकार एकत्रित किए गये प्रत्येक जल नमूने में शुद्ध ट्रीटियम काउण्ट प्रति मिनट संस्थान की नाभिकीय जलविज्ञान प्रयोगशाला में उपस्थित नॉरमल लिक्विड सिन्टीलेशन काउण्टर की सहायता से मापे गए। प्रत्येक स्थल पर शुद्ध ट्रीटियम काउण्ट प्रति मिनट का गहराई के साथ परिवर्तन चित्र (2) से चित्र (9) में दर्शाया गया है।
भूजल में रिचार्ज का निर्धारण
प्रत्येक परीक्षण स्थल के लिये निर्धारित शुद्ध ट्रीटियम काउण्ट प्रति मिनट (शुद्ध ट्रीटियम काउण्ट रेट) गहराई अंतराल के विरुद्ध हिस्टोग्राम के रूप में प्लाट किए गए। जिससे इन्जेक्ट किए गये ट्रीटियम की मूल तथा शिफ्टेड पीक की स्थिति ज्ञात हुई। प्रत्येक परीक्षण स्थल पर इन्जेक्ट किए गए ट्रीटियम तथा आयतनी जलांश का गहराई के साथ परिवर्तन चित्र (2) से (9) तक में दर्शाया गया है। शिफ्टेड ट्रीटियम पीक की स्थिति जानने के बाद पीक का गुरूत्वीय केन्द्र निकाला गया तथा इन्जेक्शन की मूल गहराई (70 सेमी.) से ट्रीटियम-पीक के शिफ्ट तक का आकलन किया गया।
प्रत्येक परीक्षण स्थल के लिये भूजल में रिचार्ज का आकलन ट्रीटियम की पीक शिफ्ट तथा पीक शिफ्ट क्षेत्र में औसत आयतनी जलांश (मृदा के नमूने एकत्र करते समय) को गुणा करके किया गया (सारणी 3)। विभिन्न परीक्षण स्थलों पर वर्ष 1995 की मानसून वर्षा के कारण भूजल में रिचार्ज का प्रतिशत भी सारणी 3 में दर्शाया गया है।
परिणाम तथा विवेचना
विभिन्न परीक्षण स्थलों जैसे खैरी, राम पिपरिया, जल्लापुर, बहोरीपार, भूत पिपरिया, चिलाचोन खुर्द, खमतरा तथा कड़ैया खेड़ा पर वर्ष 1995 की मानसून वर्षा के कारण भूजल में रिचार्ज का प्रतिशत क्रमशः 7.67, 22.44, 7.96, 10.08, 11.5, 17.3, 13.8 तथा 10.37 प्रतिशत पाया गया है। खैरी, जल्लापुर, बहोरीपार, भूत पिपरिया तथा कड़ैया खेड़ा स्थलों पर भूजल में रिचार्ज का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम (क्रमशः 7.67, 7.96, 10.8, 11.05 तथा 10.37%) पाया गया। परंतु मृदा में सिल्ट, मिट्टी तथा बजरी के प्रतिशत को ध्यान में रखते हुए भूजल में रिचार्ज प्रतिशत की मात्रा उचित जान पड़ती है। साथ ही भूत पिपरिया तथा कड़ैया खेड़ा स्थल बिना जोते हुए क्षेत्र से संबंधित हैं तथा इन स्थलों पर अपेक्षाकृत कम रिचार्ज होना चाहिए। लेकिन मृदा में सिल्ट तथा मिट्टी का कम प्रतिशत तथा बजरी की अधिक प्रतिशत के कारण खैरी, जल्लापुर तथा बहोरीपार स्थलों की तुलना में, भूजल में रिचार्ज का प्रतिशत इन स्थलों पर उचित जान पड़ता है।
संदर्भ
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सम्पर्क
एस के वर्मा, भीष्म कुमार एवं मौहर सिंह, (SK Verma, Bhishm Kumar & Mohar Singh)
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, (National institute of Hydrology, Roorkee)
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012
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