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पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा
हैदरगढ़ - भूला हुआ सबक
Posted on 03 Jan, 2016 10:35 AMइस सदी की शुरुआत में जब रियासतों के आपसी युद्ध कम हो गए और सुरक्षा का अहसास बढ़ गया तो नवा
पानी तो है पर कब तक
Posted on 02 Jan, 2016 04:05 PMबारिश में जब सरकारी नलों से गन्दा और मटमैला पानी आता है, कुइयों का पानी साफ और निर्मल रहत
चन्द दिनों की ही जिन्दगी बाकी है
Posted on 02 Jan, 2016 04:01 PMसन 1903 से 1916 के बीच तालाबों पर जो काम हुआ, उसमें मजदूरी ‘कुड़याब’ से दी जाती थी यानि मि
अब तो बस यादों में ही बचे हैं उदयपुर के तालाब
Posted on 02 Jan, 2016 03:56 PMचन्द साल पहले पानी के लिये जब हाय-हाय शुरू हुई तो नल-जल योजना वालों ने केवटन नदी से पाइप
सिरोंज तालाब-कभी स्टेडियम तो कभी हेलीपैड
Posted on 02 Jan, 2016 11:40 AMसिरोंज में जहाँ घर-घर खारे पानी के कुएँ हैं, तालाब किनारे और नदी पेटे के इन अमृत कुंडों न
नहीं रख पाये मान, मानसरोवर का सो अब प्यासे हैं
Posted on 02 Jan, 2016 11:34 AMविदिशा में ही विजय मन्दिर और उदयगिरि की गुफाएँ आंशिक रूप से ही सही, पर सुरक्षित तो हैं, ल
बंजारों ने बनाया था इसे
Posted on 02 Jan, 2016 11:29 AMअकेले घटेरा में ही नहीं, जहाँ-जहाँ तालाब नष्ट किये गए हैं, वहाँ-वहाँ उन पर निर्भर भोइयों
चुल्लू भर पानी ही बचता है, पठारी तालाब में
Posted on 02 Jan, 2016 11:24 AMपहला पानी बरसते ही मंगला सिलावट पठारी में डोंडी पीटकर ऐलान करता- ‘खलक खुदा का मुलक बाश्शा
पूरा कुनबा बलिदान किया था तब भरा था बड़ोह का तालाब
Posted on 02 Jan, 2016 11:06 AMपानी के लिये समर्पित लोगों का यह कीर्ति-स्मारक बस अब खत्म होने ही वाला है। अगली सदी में स
तालाब तो कई थे पर
Posted on 01 Jan, 2016 02:46 PMविदिशा में जहाँ ज्यादातर नलकूप सूखे निकलते हैं वहीं इन पौधों को पानी देने के लिये सूखे ता