पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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बुन्देली में जल का महत्व
Posted on 10 Mar, 2010 08:39 AM अनादिकाल से मनुष्य के जीवन में नदियों का महत्व रहा है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियाँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। भारत में सिन्धु घाटी की सभ्यता इसका प्रमाण है। इसके अलावा भारत का प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास भी गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा तट का इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर वेदों की ऋचायें रची गईं, तमसा नदी के तट पर क्रौंच-वध की घटना ने रामायण संस्कृति को जन्म दिया। आश्रम
मगध क्षेत्र के लिए प्रस्तावित जलनीति
Posted on 08 Mar, 2010 10:42 PM

जमीन एवं जल स्रोतों की स्थिति


‘‘जल ही जीवन है’’ यह उक्ति मगध क्षेत्र के लिए भी उतनी ही सच है जितनी दुनिया के अन्य क्षेत्रों के लिए मगध क्षेत्र से हमारा तात्पर्य उस भौगोलिक क्षेत्र से है जिसके उत्तर में गंगा नदी है और दक्षिण में झारखंड, पूर्व में क्यूल नदी है और पश्चिम में सोन नदी अर्थात संपूर्ण मगही भाषी क्षेत्र।

भौगोलिक बनावट के लिहाज से मगध क्षेत्र की स्थिति काफी विविधतापूर्ण है। इसका दक्षिणी भाग पठारी है, जिसकी तीखी ढाल उत्तर, कहीं-कहीं पूर्वाभिमुख उत्तर की ओर है। उत्तरी भाग मैदानी है। इसकी ढाल भी इसी दिशा की ओर है, लेकिन ढाल कम (लगभग 1.25 मीटर प्रति किलोमीटर) है। उत्तरी भाग में ढाल नहीं के बराबर है। फलतः इस भाग की जमीन लगभग समतल है। पठारी इलाकों में लम्बी घाटियाँ हैं जो मैदान का आकार लिए हुए हैं। सोन एवं पुनपुन के द्वारा बनाया गया मैदान है। इसमें कहीं कम, तो कहीं अधिक गहराई में बालू है जो मुख्य जल स्रोत है। कहीं-कहीं यह जल प्रवाह ऊपर में भी है। यह स्थिति मुख्यतः औरंगाबाद, अरवल और पटना जिले में है।

धरती की प्यास बुझाते हैं तालाब
Posted on 03 Mar, 2010 07:30 AM

छत्तीसगढ़ में जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान हैं। तालाब छत्तीसगढ़ में स्नान, पेयजल और अपासी (आबपाशी या सिंचाई) आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति के साथ जन-जीवन और समुदाय के बृहत्तर सांस्कृतिक संबंध के संदर्भयुक्त बिन्दु हैं। अहिमन रानी और रेवा रानी की गाथा तालाब स्नान से आरंभ होती है। नौ लाख ओडिय़ा, नौ लाख ओड़निन के उल्लेख सहित दसमत कइना की गाथा में तालाब

याद रखें इन जलस्रोतों को
Posted on 28 Feb, 2010 07:44 PM

पहले हम कोइतुरों को जानें


महाकौशल में पानी के स्रोतों तथा सार्वजनिक हित के निर्माण कार्यों को बनवाने और रख-रखाव करने का अधिकतर काम 12-13वीं से 17-18वीं सदी के बीच वहाँ राज करने वाले गोंड राजाओं के जमाने का है। सन् 1801 के मई महीने में इस इलाके का भ्रमण करने वाले एक यूरोपीय पर्यटक कोलब्रुक ने लिखा है कि ‘इस प्रदेश की समृद्धि के लिए, जिसका पता उसकी राजधानी से चलता है तथा जिसकी पुष्टि उन जिलों से होती है। जिनका हमने भ्रमण किया। मैं इस प्रदेश के राजाओं की सराहना अंतर्राज्यीय वाणिज्य के बिना गोंड राजाओं की छत्रछाया में अनेक व्यक्तियों ने उर्वर भूमि में कृषि व्यवसाय अपनाया तथा उसकी समृद्धि के अमिट चिन्ह आज भी साफ-सुथरे भवनों में,
विन्ध्य के जल प्रपात
Posted on 28 Feb, 2010 12:20 PM
रीवा जलप्रपातों की मनोरम भूमि है। सच कहा जाए तो समूचा विन्ध्य निर्मल निर्झरणों, सुरम्य जल-प्रपातों और नाना प्रकार की नदियों के बाहु पाशु में आलिंगनबद्ध है। अतीत को अपने मानस पटल में छिपाये धार्मिक, पौराणिक एवं स्वतंत्रता संग्राम के महत्व के यह नयनाभिराम और प्राकृतिक सौन्दर्य के खजाने विन्ध्य की उपत्यकाओं में विद्यमान हैं।

कदाचित देश में रीवा एक ऐसा स्थान है जहाँ एक ही जगह पाँच जलप्रपात हैं। रीवा-पन्ना पठार के उत्तरी छोर पर स्थित चचाई, क्योंटी, पुरवा, बैलोही, बहुती और पाण्डव आदि प्रपातों की स्थिति संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की प्रसिद्ध प्रपातपंक्ति नियाग्रा के समान ही महत्वपूर्ण है। उपरोक्त पाँच जलप्रपातों में चार रीवा एवं एक पन्ना जिले में स्थित है। इसके अलावा शहडोल अमरकंटक का ‘कपिल धारा’, छतरपुर केन नदी पर स्थित ‘रनेह जल प्रपात’ टीकमगढ़ में कुण्डेश्वर के निकट जमड़ार नदी पर ‘कुण्डेश्वर जल-प्रपात’ एवं दतिया जिला में स्योढ़ा प्रसिद्ध है।

वराहमिहिर का उदकार्गल
Posted on 23 Feb, 2010 04:58 PM सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद वराहमिहिर की बृहत्संहिता में एक उदकार्गल (जल की रुकावट) नामक अध्याय है। 125 श्लोकों के इस अध्याय में भूगर्भस्थ जल की विभिन्न स्थितियाँ और उनके ज्ञान संबंधी संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न वृक्षों-वनस्पतियों, मिट्टी के रंग, पत्थर, क्षेत्र, देश आदि के अनुसार भूगर्भस्थ जल की उपलब्धि का इसमें अंदाज दिया गया है। यह भी बताया गया कि किस स्थिति में कितनी गहराई पर जल
बुन्देलखण्ड की नदियाँ
Posted on 16 Feb, 2010 07:56 AM

बुन्देलखण्ड का पठारी भाग मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग में 2406’ से 24022’ उत्तरी अक्षांश तथा 77051’ पूर्वी देशांतर से 80020’ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इस पठार के अन्तर्गत छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर और भिण्ड जिलों के कुछ भाग आते हैं। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल मध्यप्रदेश के कुल क्षेत्रफल 23,733 वर्ग किलोमीटर का 5.4 प्रतिशत है। इसके पूर्वोत्तर में उत्तर प्रदेशीय बुन्देलखण्ड के जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर और बाँदा, महोबा, चित्रकूट जिले हैं।

बुन्देलखण्ड का पठार प्रीकेम्बियन युग का है। पत्थर ज्वालामुखी पर्तदार और रवेदार चट्टानों से बना है। इसमें नीस और ग्रेनाइट की अधिकता पायी जाती है। इस पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 150 मीटर उत्तर में और दक्षिण में 400 मीटर है। छोटी पहाड़ियाँ भी इस क्षेत्र में है। इसका ढाल दक्षिण से उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर है।

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रुक जाओ, रेगिस्तान!
Posted on 15 Feb, 2010 09:10 AM


झाबुआ 23 किमी.
इन्दौर-अहमदाबाद मार्ग।

desert
सबकी दीदी, राधा दीदी
Posted on 06 Feb, 2010 11:35 AM राधा भट्ट यूं तो पहाड़ की आम महिलाओं जैसी ही नजर आती हैं. लेकिन वे आम नहीं हैं. साधारण तो कतई नहीं. हां, आप उनसे बातचीत करें तो परत दर परत संघर्ष और अनुशासन का एक ऐसा रचनात्मक संसार खुलता चला जाता है, जो उन्हें सबसे अलग करता है.
राधा भट्ट
छत्तीसगढ़ में है नदियों का गुम्फन
Posted on 05 Feb, 2010 12:27 PM

हमारी भारतीय संस्कृति में अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह नदियों का भी अपना एक अलग विशेष महत्व है। वेद पुराणों में नदियों की यशोगाथा विद्यमान है। नदियाँ हमारे लिए प्राणदायिनी माँ की तरह हैं। नदियों के साथ हमारे सदैव से भावनात्मक संबंध रहे हैं औऱ हमने नत-मस्तक होकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व आस्था प्रकट की है। नदियाँ केवल जल-प्रदायिनी एवं मोक्षदायिनी ही नहीं हैं, बल्कि संस्कारदायिनी भी हैं। नदियाँ

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