रीवा जलप्रपातों की मनोरम भूमि है। सच कहा जाए तो समूचा विन्ध्य निर्मल निर्झरणों, सुरम्य जल-प्रपातों और नाना प्रकार की नदियों के बाहु पाशु में आलिंगनबद्ध है। अतीत को अपने मानस पटल में छिपाये धार्मिक, पौराणिक एवं स्वतंत्रता संग्राम के महत्व के यह नयनाभिराम और प्राकृतिक सौन्दर्य के खजाने विन्ध्य की उपत्यकाओं में विद्यमान हैं।
कदाचित देश में रीवा एक ऐसा स्थान है जहाँ एक ही जगह पाँच जलप्रपात हैं। रीवा-पन्ना पठार के उत्तरी छोर पर स्थित चचाई, क्योंटी, पुरवा, बैलोही, बहुती और पाण्डव आदि प्रपातों की स्थिति संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की प्रसिद्ध प्रपातपंक्ति नियाग्रा के समान ही महत्वपूर्ण है। उपरोक्त पाँच जलप्रपातों में चार रीवा एवं एक पन्ना जिले में स्थित है। इसके अलावा शहडोल अमरकंटक का ‘कपिल धारा’, छतरपुर केन नदी पर स्थित ‘रनेह जल प्रपात’ टीकमगढ़ में कुण्डेश्वर के निकट जमड़ार नदी पर ‘कुण्डेश्वर जल-प्रपात’ एवं दतिया जिला में स्योढ़ा प्रसिद्ध है।
चट्टानों की छाती को चीरता हुआ पानी धवल धारा के रूप में जल अधोगति को प्राप्त होता है तो इन जलप्रपातों के ये सुहावने दृश्य किसे अपनी और बरबस आकर्षित नहीं करेंगे?
कवि वर्ड्सवर्थ ने झरनों से पानी गिरने की आवाज, ऊँची चट्टानों व घने-गहरे वन को अपने मन पर ऐसी तीव्र जागृति की भावना की कल्पना की है जो उनकी भूख के समान है।
कविवर जयशंकर प्रसाद ने झरनों और प्रपातों के अनुपम सौन्दर्य से प्रभावित होकर लिखा है:-
मधुर है स्रोत, मधुर है लहरी,
न है उत्पात छटा है छहरी।
पं. रामसागर शास्त्री के शब्दों में जलप्रपात क्रियाशील जीवन का संदेश देते हैं। वे कहते हैं ‘विन्ध्य भूमि की वनस्थली जलप्रपातों के निर्माण में सिद्धहस्त है।‘स्थान-स्थान पर जलप्रपातों का अनुपम दृश्य देखने को मिलता है। धन्य है विन्ध्य भूमि जिसने अपार प्राकृतिक सौन्दर्य बिखेरकर मानव समाज का बड़ा उपकार किया है। ऊपर से नीचे गिरती हुई शास्वत जलधारा अबाध गति से प्रवाहित होती रहे तभी सफलता मिलती है। जिस प्रकार जब तक जल है, उसी प्रकार तब तक जीवन है तब तक गतिशीलता है अर्थात् मनुष्य जीवन पर्यन्त गतिशील बना रहे। यही जलप्रपातों का मधुर और शाश्वत संदेश है।
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