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महुआ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सदाबहार पोषक
Posted on 27 Feb, 2019 06:16 PM वनस्पति जगत में ऐसे पेड़-पौधे बहुत कम हैं जिनका हर भाग व अंग जैसे तना, छाल, पत्तियाँ, फूल, फल व बीज किसी-न-किसी रूप में न केवल इंसानों के बल्कि विभिन्न प्रजाति के जीव-जन्तुओं के लिये बहु उपयोगी होते हैं।
महुआ पेड़ की पत्तियाँ
बचपन की छवियाँ
Posted on 25 Feb, 2019 12:14 PM
इजा कहती हैं कि मैं जब पेट में था तो कभी स्थिर नहीं रहा। जब मैं नौ महीने बीत जाने पर भी पैदा नहीं हुआ तो घर में घबराहट शुरू हो गई। पिता जी कहा करते थे कि इस बार भागा की मतारी का बचना मुश्किल ही है। लेकिन मैं हुआ 11वें महीने में और माँ भी बच गई। अब भी इजा कहती है, इस बैरी ने पेट से ही दुःख दिया। दो और चार वर्ष की अवस्था में मैं, बुरी तरह से जला लेकिन बच गया।
गोविंद सिंह
मेरा सोर - कुछ यादें
Posted on 23 Feb, 2019 11:36 AM
व्यापार के सिलसिले में पिताजी काली कुमाऊँ से वड्डा आये। मेरा जन्म वड्डा में हुआ फिर पिताजी ने कुछ सम्पत्ति पिथौरागढ़ में भी ली। प्रारम्भिक शिक्षा पिथौरागढ़ (तिलढुकरी) में शुरू हुई। बड़े भाई की असामयिक मृत्यु के बाद परिवार पिथौरागढ़ की सम्पत्ति बेचकर वड्डा चला गया। वहाँ समीप के चौपखिया प्राइमरी स्कूल से पढ़ाई का सिलसिला चला। तब परगना सोर अल्मोड़ा जिले के अन्त
पुराना पिथौरागढ़ (सोर) का दृश्य
मेरे हिस्से का पिथौरागढ़
Posted on 22 Feb, 2019 01:23 PM

फ्लोरोसिस (फोटो साभार - छत्तीसगढ़ की आवाज) इनरेम फाउंडेशन द्वारा नीति आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई मिशन की एक झलक

मुख्य बिंदु:

- पानी की खराब गुणवत्ता और उससे पैदा होने वाली बीमारियों से लड़ने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम

नैन सिंह ऐर
प्रदेश के दृश्य चित्रकारों का कला एवं पर्यावरण में सार्थक योगदान
Posted on 21 Feb, 2019 05:11 PM
मध्य प्रदेश प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण क्षेत्र है। प्राकृतिक दृश्यों की मनोरमता यहाँ के पर्यावरण में परिलक्षित होती है। एक दृश्य चित्रकार प्रकृति की गोद में पला बढ़ा। उसने सृष्टि के परिदृश्य का अवलोकन कर आत्मसात किया। अपने कैनवस पर रंगों से क्रीड़ा करते हुए प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को साकार किया। किसी भी दृश्य चित्रकार के लिये प्राकृतिक, सांस्कृतिक और कला
Devlalikar
पिथौरागढ़ की भवन निर्माण तकनीकी
Posted on 20 Feb, 2019 01:13 PM
इस आलेख का सम्बन्ध मुख्यतः पर्वतीय जिले पिथौरागढ़ के दूरस्थ ग्राम्यांचलों में निवास करने वाले लोगों व समुदायों के जन-जीवन से है। मैं 1940 के दशक में पिथौरागढ़ कस्बे के समीप रहता था। तब इस पूरे इलाके में मोटर सड़क नहीं थी। दूर-दराज में बिखरे पर्वतीय गाँव सँकरी पगडंडियों से जुड़े थे। नदी घाटी के मुहानों से अजपथ पहाड़ियों की पीठ पर रेंगते चढ़ते और पर्वतशीर्षों
परम्परागत वास्तु शैली में निर्मित भवन
वन्यजीव अभयारण्यों को लेकर बिहार सरकार गम्भीर नहीं
Posted on 18 Feb, 2019 06:04 PM

वन्यजीवों व पर्यावरण को लेकर सरकारी तंत्र की गम्भीरता जगजाहिर है। इस देश ने ‘विकास’ के लिये वन्यजीवों व पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हर दौर में देखा है और अब भी गाहे-ब-गाहे दिख ही जाता है।

राज्य से लेकर केन्द्र की सरकार में इनको (वन्यप्राणियों) को लेकर निष्ठुरता दिखती है।

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व
जोहार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
Posted on 12 Feb, 2019 05:48 PM

वर्तमान का अतीत में समाहित होकर भविष्य में उजागर होना ही इतिहास है। यह आलेख, शिलालेख, गुहा चित्र, ताम्र पत्र, धातु या मृदा भांड, मूर्ति अथवा जीवाश्म के रूप में प्राप्त वस्तुओं के सूक्ष्म अध्ययन के पश्चात निर्धारित किया जाता है। जब आज भी इतिहासकार आर्यों के मूल स्थान तथा उनके भारत आगमन के सम्बन्ध में एक मत नहीं हैं तो हिमालय के सुदूर दुर्गम जोहार घाटी जैसे एक बहुत छोटे क्षेत्र और इस क्षेत्र का

उत्तराखण्ड
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